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10 महीने की बच्ची ‘चाइल्ड ऑफ द स्टेट’ बनी! जानिए किसे मिलता है यह खास दर्जा और क्यों?

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10 महीने की बच्ची ‘चाइल्ड ऑफ द स्टेट’ बनी – पर क्या मतलब है ये सब?

सुनकर थोड़ा अजीब लगता है न? हिमाचल सरकार ने एक छोटी सी बच्ची को ‘चाइल्ड ऑफ द स्टेट’ का दर्जा दे दिया। अब सवाल ये है कि आखिर ये टाइटल मिलता किसे है? और असल में इसका मतलब क्या होता है? देखिए, मैं भी आपकी तरह पहले कन्फ्यूज हुआ था, लेकिन जब पूरा मामला समझा तो लगा – वाह! ये तो बहुत बड़ी बात है।

सोशल मीडिया पर तो इसकी खूब चर्चा हो रही है। कुछ लोग तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ सवाल उठा रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे हमारे ग्रुप चैट्स में होता है – कोई किसी बात पर राजी होता है, कोई नहीं। लेकिन चलिए, पूरी कहानी समझते हैं।

‘चाइल्ड ऑफ द स्टेट’ – नाम सुनकर लगता है जैसे कोई फिल्म का टाइटल हो

पर असलियत कुछ और ही है। ये उन बच्चों के लिए है जिनके… कहने को तो कोई नहीं होता। माँ-बाप नहीं हैं, या फिर किसी वजह से सरकार को ही उनकी देखभाल करनी पड़ती है। इस मामले में तो बच्ची के माता-पिता दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे। और सरकार ने उसे गोद देने की बजाय खुद ही अपनाने का फैसला किया।

सोचिए – पूरी सरकारी मशीनरी एक बच्ची की परवरिश की जिम्मेदारी ले रही है। पढ़ाई से लेकर स्वास्थ्य तक, हर चीज का ख्याल। कुछ-कुछ वैसा ही जैसे कोई बड़ा भाई अपनी छोटी बहन का ख्याल रखता है। बस यहाँ ‘बड़ा भाई’ पूरी सरकार है!

हिमाचल सरकार ने क्या-क्या वादे किए?

अरे भई, सिर्फ घोषणा करके छोड़ दिया होता तो बात ही क्या थी! पेंशन का इंतजाम किया है, शिक्षा के लिए विशेष योजना बनाई है। सरकार ने तो यहाँ तक कह दिया कि अब ये बच्ची राज्य की ‘संपत्ति’ है। शब्द थोड़ा अजीब लगा न? पर मतलब अच्छा है – कि पूरी जिम्मेदारी हमारी।

हालांकि ये पहला मामला नहीं है। पर 10 महीने की बच्ची? उसकी तस्वीरें मीडिया में आईं तो लोगों का दिल पसीज गया। सच कहूँ तो मेरा भी पसीजा था!

लोग क्या कह रहे हैं? – जनता की राय हमेशा दो रंग की होती है

मुख्यमंत्री जी तो खुश हैं – बोले ये तो ऐतिहासिक फैसला है। पर सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय थोड़ी अलग है। कोई कह रहा है गोद लेने की प्रक्रिया आसान होनी चाहिए, कोई सरकार की तारीफ कर रहा है। Twitter पर तो #ChildOfTheState ट्रेंड कर रहा है। वहाँ भी दोनों तरह के लोग मिल जाएंगे – जैसे हमारे रिश्तेदारों की बैठक में होता है!

एक सच्ची बात – क्या सरकार हर जरूरतमंद बच्चे को ये सुविधा दे पाएगी? ये सवाल मेरे मन में भी आया। आपके मन में भी आया होगा न?

आगे क्या होगा? – क्रिस्टल बॉल तो मेरे पास नहीं, पर…

एक तो ये कि दूसरे राज्य भी ऐसा कुछ करने पर विचार कर सकते हैं। हिमाचल वालों ने तो कह दिया है – हम इस बच्ची पर नजर रखेंगे। उसका भविष्य संवारेंगे। विशेषज्ञ कह रहे हैं ये फैसला आने वाले समय में नीतियों को मजबूत करेगा।

अंत में इतना ही – ये पहल सराहनीय है। जैसे कोई बड़ा भाई छोटी बहन की जिम्मेदारी लेता है, वैसे ही सरकार ने ये कदम उठाया है। पर लंबे समय तक इस पर नजर रखनी होगी। क्या पता, आने वाले दिनों में ये योजना पूरे देश के लिए मिसाल बन जाए!

क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे फैसले समाज को बेहतर बनाते हैं? मुझे तो लगता है। पर साथ ही ये भी लगता है – काश हर अनाथ बच्चे को ऐसा ही सपोर्ट मिल पाए।

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10 महीने की एक छोटी सी बच्ची का ‘Child of the State’ बनना… सुनने में तो बड़ा अच्छा लगता है, है न? लेकिन असल में ये सिर्फ एक टाइटल नहीं है। ये राज्य की उस जिम्मेदारी को दिखाता है जो अक्सर हम भूल जाते हैं।

अब सवाल यह है कि आखिर ये ‘Child of the State’ होता क्या है? देखिए, ये दर्जा उन बच्चों को मिलता है जिन्हें हमारी सामान्य व्यवस्था में शायद वो प्यार और सुरक्षा नहीं मिल पाती जिसके वो हकदार हैं। और यहां सिर्फ पैसों की बात नहीं है। सच कहूं तो, यह उतना ही जरूरी है जितना किसी पौधे को समय पर पानी देना।

#राज्य_सम्मान के इस पहलू को अगर हम सही से समझ लें, तो शायद हमारे आसपास के हर बच्चे की जिंदगी थोड़ी बेहतर हो सके। क्योंकि अंत में, हर बच्चा हमारा ही तो है… है न?

(Note: मैंने HTML टैग को ऐसे ही रखा है जैसा आपने चाहा था। साथ ही, ‘Child of the State’ और ‘#राज्य_सम्मान’ को original form में ही रखा गया है।)

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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