बिहार चुनाव: तेजस्वी का वक्फ बोर्ड बयान और वो ‘नमाज़वादी’ वाला झगड़ा
अरे भई, बिहार की राजनीति में तो मानो धर्म और साम्प्रदायिकता का तूफ़ान आ गया है! RJD के युवा नेता तेजस्वी यादव ने वक्फ बोर्ड संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन की बात की और बस… BJP वाले तो मानो आग बबूला हो गए। उन्होंने तेजस्वी को ‘नमाज़वादी’ और ‘मुल्ला’ तक कह डाला। सच कहूँ तो, ये सब देखकर लगता है जैसे 2015 के चुनावी माहौल की याद ताज़ा हो गई हो। पर सवाल ये है कि क्या ये विवाद असल में चुनाव का गेम-चेंजर बनेगा, या फिर ये सिर्फ़ वोट बैंक की सियासत का एक और चाल है?
पूरा माजरा क्या है?
देखिए, बात ये हुई कि तेजस्वी ने एक रैली में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के बेहतर इस्तेमाल की बात की। अब BJP वालों को ये बात नागवार गुज़री। उनका तो पहले से ही ’80-20′ का गणित चल रहा है न – यानी हिंदू वोटर्स को एकजुट करने की कोशिश। तेजस्वी का ये बयान उन्हें मुस्लिम वोटर्स की तरफ़ झुकाव लगा। मज़े की बात ये कि ‘मुल्ला’ टैग तो कोई नई बात नहीं – याद है न मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को भी तो यही कहा गया था? पर सवाल ये उठता है कि क्या ये सब प्लान्ड ड्रामा है?
अब तक क्या-क्या हुआ?
विवाद तब और बढ़ गया जब एक BJP नेता ने तेजस्वी को ‘मुल्ला तेजस्वी’ कह दिया। RJD वालों ने तो मानो आग में घी डाल दिया – BJP पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगा दिया। मामला इतना गरमाया कि चुनाव आयोग को बीच में आना पड़ा। और भई, सोशल मीडिया पर तो ये टॉपिक ट्रेंड करने लगा – #SecularVsCommunal और #BiharElection वाले हैशटैग्स तो ट्रेंडिंग लिस्ट में छा गए। क्या बताऊँ, ट्विटर पर तो जैसे आग लगी हुई है!
किसने क्या बोला?
BJP का कहना है कि तेजस्वी सिर्फ़ एक खास समुदाय को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं RJD वाले चिल्ला रहे हैं कि BJP ‘फूट डालो राज करो’ वाली नीति पर चल रही है। कुछ सिविल सोसाइटी वालों ने भी चिंता जताई है – उनका कहना है कि धर्म के नाम पर वोट माँगना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं। कुछ एक्सपर्ट्स तो यहाँ तक कह रहे हैं कि ये विवाद बिहार के पहले से उलझे सियासी समीकरणों को और गड्ढा बना सकता है। सच कहूँ तो, स्थिति काफी ड्रामेटिक हो चुकी है।
अब आगे क्या?
असली सवाल तो ये है कि क्या तेजस्वी का ये बयान मुस्लिम वोटर्स को RJD की तरफ़ खींच पाएगा? या फिर हिंदू वोटर्स में नाराज़गी बढ़ाकर BJP को फायदा पहुँचाएगा? और हाँ, चुनाव आयोग कितना सख़्त रुख अपनाएगा? ये सारे सवालों के जवाब तो चुनाव नतीजे आने पर ही पता चलेंगे। पर एक बात तो तय है – इस बार का बिहार चुनाव किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं!
आखिरी बात: ये विवाद बिहार में ध्रुवीकरण की राजनीति को और हवा दे सकता है। खासकर उन इलाकों में जहाँ हिंदू-मुस्लिम समीकरण पहले से ही नाज़ुक हैं। अब देखना ये है कि आम जनता इन सियासी दाव-पेंच को कितनी गंभीरता से लेती है। एक बात और – चुनावी नतीजे कुछ भी हों, पर ये विवाद तो बिहार की सियासी किताबों में जगह बना ही चुका है!
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तो देखा जाए तो, ** के बारे में हमने कुछ अहम बातें समझीं। अब सवाल यह है कि इसे समझना इतना ज़रूरी क्यों है? असल में, यह हमारे future decisions को बेहतर बनाने में मदद करता है – जैसे कि अगर आपको पहले से पता हो कि रास्ते में गड्ढे हैं, तो आप कार चलाते वक्त और सावधान रहेंगे ना?
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(थोड़ा casual, थोड़ा thoughtful – बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई दोस्त आपसे बात कर रहा हो। और हाँ, English words को वैसे ही छोड़ दिया है, जैसा कि आपने कहा था!)
SEO के बारे में वो सब कुछ जो आप जानना चाहते थे (पर पूछने में हिचकिचा रहे थे)
SEO है क्या बला? और भला ये इतना ज़रूरी क्यों है?
देखिए, SEO यानी Search Engine Optimization… नाम से ही पता चल रहा है न? ये वो जादू है जो आपकी website को Google के पहले पेज पर ला सकता है। सोचिए, अगर आपका business एक दुकान है तो SEO वो नुस्खा है जो उसे high street पर लगा देता है। Traffic बढ़ेगा, ग्राहक बढ़ेंगे… समझ रहे हैं न मेरा मतलब?
क्या SEO के लिए महंगे paid tools खरीदने पड़ते हैं?
सच कहूँ? बिल्कुल नहीं! मैं खुद शुरुआत में free tools से ही काम चलाता था। हाँ, SEMrush या Ahrefs जैसे tools life को आसान बना देते हैं – competitors का क्या चल रहा है, कौन सा keyword काम कर रहा है, ये सब पता चल जाता है। लेकिन याद रखिए, tools से ज़्यादा important है आपकी समझदारी।
On-Page और Off-Page SEO… ये दोनों अलग-अलग क्यों?
इसे ऐसे समझिए – On-Page SEO तो वैसा ही है जैसे आप अपने घर को सजाते हैं। Content, keywords, meta tags… सब कुछ जो आपकी website के अंदर हो रहा है। और Off-Page? वो तो वैसा ही है जैसे पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाना। Backlinks, social media पर चर्चा… समझ आया न फर्क?
SEO में रातोंरात success मिलने की उम्मीद कर रहे हैं? थोड़ा सब्र रखिए!
अरे भाई, SEO instant noodles नहीं है जो 2 मिनट में तैयार हो जाए! मेरे एक client को तो 8 महीने लग गए थे। हालांकि average 3-6 महीने में results दिखने लगते हैं। पर याद रखिए – जितना ज़्यादा मेहनत, उतना जल्दी फल। Slow and steady wins the race, है न?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com