पुतिन का बड़ा दांव: क्या BRICS देश डॉलर की गुलामी से मुक्त हो पाएंगे?
अरे भाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक भूचाल आने वाला है! रूस के मास्टरस्ट्रोक प्लेयर व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में BRICS देशों के सामने एक बमबारी प्रस्ताव रखा है – “भाईयो, अमेरिकी डॉलर के जुए को तोड़कर अपनी-अपनी मुद्राओं में कारोबार शुरू करो।” और तो और, उन्होंने एक independent settlement system बनाने की बात कही है जो सीधे-सीधे अमेरिका के वित्तीय राज को चुनौती देगा। इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव ने डोनाल्ड ट्रंप जैसे लोगों की नींद उड़ा दी है – वो तो इसे अमेरिकी हितों के लिए खतरा बता रहे हैं। सच कहूं तो, ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है!
पीछे की कहानी: जब डॉलर ने सबकी नाक में दम कर दिया
देखिए, BRICS देश (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) तो ये बात काफी समय से चबा रहे थे। पर असली चिंगारी तब लगी जब अमेरिका और EU ने रूस पर प्रतिबंधों की बौछार कर दी। उसके बाद तो पुतिन साहब ने alternative trade routes की तलाश शुरू कर दी। और भई, चीन तो पहले से ही अपने युआन को global currency बनाने के चक्कर में था। अब ये सब मिलकर डॉलर के एकाधिकार को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मजेदार बात ये है कि ये कोई पहली बार नहीं है – पर इस बार गंभीरता ज्यादा दिख रही है।
क्या है प्लान? समझिए पूरा गणित
पुतिन ने सीधे-सीधे कहा है – “भाई लोग, अपनी-अपनी मुद्राओं में लेनदेन बढ़ाओ।” इसके लिए एक नई payment system का प्रस्ताव है जो 100% डॉलर-मुक्त होगी। है न मस्त आइडिया? भारत और चीन जैसे देशों ने इसे गर्मजोशी से लिया है। पर ट्रंप साहब बिदक गए हैं – वो तो अमेरिका को चेतावनी दे रहे हैं कि “इसे हल्के में न लें।” सच पूछो तो, ये प्रस्ताव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक तूफान ला सकता है।
किसका क्या स्टैंड? जानिए सबकी राय
रूस वालों का कहना है कि ये move global financial system को और ज्यादा न्यायसंगत बनाएगा। भारतीय एक्सपर्ट्स की राय? वो मानते हैं कि ये हमारे लिए डॉलर पर निर्भरता कम करने का सुनहरा मौका हो सकता है। चीन वाले तो खुशी से झूम उठे हैं – उनके मीडिया ने इसे युआन को बढ़ावा देने वाला बताया है। लेकिन… हमेशा की तरह पश्चिमी देशों की भौंहें तन गई हैं। उन्हें लग रहा है कि ये उनके वर्चस्व के लिए खतरा है।
आगे क्या? भविष्य के अनुमान
अगर BRICS देश सच में ये प्रस्ताव लागू कर देते हैं, तो डॉलर का दबदबा कमजोर हो सकता है। पर भई, इतना आसान भी नहीं है। नई payment system बनाने में तकनीकी दिक्कतें आएंगी, राजनीतिक दबाव झेलने होंगे। अमेरिका और उसके साथी देश तो विरोध करेंगे ही – जिससे international tensions बढ़ सकते हैं। भारत जैसे देशों को फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी – क्योंकि अमेरिका के साथ रिश्तों पर भी असर पड़ेगा। दिक्कत ये है कि इकॉनमी और पॉलिटिक्स का ये खेल बहुत पेचीदा है।
एक बात तो तय है – अगर ये प्रस्ताव सफल होता है, तो global economy का नक्शा ही बदल सकता है। दुनिया भर के नेता और अर्थशास्त्री बस यही देख रहे हैं कि ये चाल कितनी कामयाब होती है। और हम भारतीय? हमें तो बस इतना सोचना है कि इस खेल में हमारा क्या फायदा हो सकता है। क्योंकि अंत में, राष्ट्रहित सबसे ऊपर होता है – है न?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com