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भारत का ड्रोन उद्योग: चीन के ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’ जाल में फंसा हुआ सपना?

देखिए, हम सब ‘ड्रोन शक्ति’ के नारे सुन-सुनकर खुश हो रहे हैं। किसानों से लेकर सैनिकों तक – सबको ड्रोन चाहिए। पर सच्चाई ये है कि हमारा यह सपना चीन के हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है। है न मजेदार बात? आत्मनिर्भरता की बातें करते हैं, लेकिन ड्रोन बनाने के लिए जरूरी ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’ के लिए 80% चीन पर निर्भर हैं। ये वही चीन है जिसके साथ हमारे सीमा पर तनाव चल रहा है!

ड्रोन मैनिया और उसकी असली कीमत

2021 की ड्रोन policy ने तो जैसे जादू की छड़ी घुमा दी। अब हर कोई – चाहे Amazon हो या भारतीय सेना – ड्रोन चाहता है। पर एक छोटी सी समस्या है। ये सारे शानदार ड्रोन चीन के बनाए मैग्नेट्स के बिना काम नहीं कर सकते। मोटर्स? चीन। सेंसर्स? चीन। Communication systems? फिर से चीन!

अब सवाल ये है कि क्या हम सच में इतने लाचार हैं? मेरा मानना है कि नहीं, लेकिन हालात देखकर तो यही लगता है। जब तक हम अपने यहाँ इन मैग्नेट्स का उत्पादन नहीं शुरू करते, तब तक हमारी ‘ड्रोन क्रांति’ सिर्फ एक खोखला नारा है।

सरकार की कोशिशें: कागजी हाथी या असली बदलाव?

अच्छी खबर ये है कि सरकार नींद से जागी है। ISRO और DRDO जैसे संस्थान वैकल्पिक तकनीकों पर काम कर रहे हैं। पर सच पूछो तो? अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। हाल ही में एक टास्क फोर्स बनी है – वो भी देखते हैं क्या कर पाती है।

मजेदार बात ये है कि कुछ कंपनियां पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स से मैग्नेट्स recycle करने की कोशिश कर रही हैं। अच्छी पहल है, पर क्या ये काफी होगा? शायद नहीं। हमें बड़े पैमाने पर खनन और उत्पादन की जरूरत है।

उद्योग की चिंताएं: सिर्फ पैसे का सवाल नहीं

मैंने कुछ ड्रोन निर्माताओं से बात की तो पता चला – समस्या सिर्फ महंगे आयात की नहीं है। बल्कि डर ये है कि कभी भी चीन आपूर्ति रोक सकता है। कल्पना कीजिए, युद्ध के समय अगर हमारे ड्रोन चीन के मैग्नेट्स के बिना काम न करें तो?

एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया, “हम विकल्प तलाश रहे हैं।” पर सवाल ये है कि कब तक? समय तो तेजी से निकला जा रहा है।

आगे का रास्ता: मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं

तो क्या हम हार मान लें? बिल्कुल नहीं! हमें तीन चीजें करनी होंगी:
1. ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों के साथ नए समझौते
2. R&D पर भारी निवेश
3. घरेलू उत्पादन को तुरंत बढ़ावा

अगर अभी नहीं जागे, तो आने वाले समय में चीन का दबदबा और बढ़ेगा। और हम? हम बस नारे लगाते रह जाएंगे।

अंत में बस इतना कहूँगा – ये सिर्फ ड्रोन की बात नहीं है। ये हमारी तकनीकी आजादी का सवाल है। और इस बार हमें गलती करने का लक्जरी नहीं है। क्या हम तैयार हैं? वक्त बताएगा।

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देखिए, अगर सीधे-सीधे कहूं तो ** की अहमियत हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में किसी छुपे हुए खज़ाने जैसी है। सच कहूं? मैं खुद पहले इसे हल्के में लेता था, लेकिन जब असल में ट्राई किया तो पता चला – अरे भाई, ये तो गेम-चेंजर है!

इसे अपनाने से सिर्फ़ ** ही नहीं मिलता, बल्कि ** का फायदा तो मानो बोनस ही है। मेरा तो यकीन हो गया है, आपको भी एक बार आज़माकर देखना चाहिए। क्या पता, आपकी ज़िंदगी का वो मिसिंग पीस ही ये हो जो आप ढूंढ रहे थे?

और हां, एक काम ज़रूर करना – कोशिश करने के बाद अपने अनुभव Comments में शेयर करें। मुझे सच में जानने में दिलचस्पी होगी कि आपके लिए क्या काम किया और क्या नहीं। क्योंकि ईमानदारी से? हर किसी का अनुभव अलग होता है!

P.S. – अगर पहले दिन से ही पूरा रिज़ल्ट न दिखे तो घबराएं नहीं। Rome भी एक दिन में नहीं बना था न!

SEO के बारे में वो सब कुछ जो आप जानना चाहते थे (पर पूछने में हिचक रहे थे!)

SEO आखिर है क्या बला? और भला यह इतना ज़रूरी क्यों है?

देखिए, SEO (Search Engine Optimization) कोई रॉकेट साइंस नहीं है। बस यूं समझ लीजिए – जैसे किसी बाज़ार में दुकानदार अपनी दुकान को आगे रखने के लिए जुगाड़ करता है, वैसे ही SEO आपकी website को Google जैसे search engines में ऊपर लाने का जुगाड़ है। और सच कहूं तो आज के digital ज़माने में यह उतना ही ज़रूरी है जितना कि दुकान का अच्छे location पर होना। Traffic बढ़ेगा, business बढ़ेगा – समझ गए न?

क्या SEO के लिए महंगे paid tools खरीदने पड़ते हैं? सच-सच बताइये!

अरे भई नहीं! मैं खुद years तक बिना paid tools के काम चलाता रहा। Google Search Console और Google Analytics जैसे free tools तो हैं ही भगवान की देन। लेकिन… हां एक लेकिन ज़रूर है। अगर आप professional level पर हैं तो Ahrefs या SEMrush जैसे tools की features आपको पसीने से भीगे हुए कपड़े की तरह चिपक जाएंगी। समझ रहे हैं न मेरा इशारा?

Content quality? अरे भई, यह तो SEO की रीढ़ की हड्डी है!

सुनिए, एक किस्सा सुनाता हूं। मेरे एक दोस्त ने 500 articles लिख डाले, सब keyword stuffed। क्या हुआ? 6 महीने बाद Google ने उन्हें ऐसा डंका मारा कि आज तक उभर नहीं पाए। सीख मिली? Google अब smart हो गया है भाई। वो तो अच्छा, original और useful content ही चाहता है। आप users के लिए लिखोगे, ranking अपने आप चढ़ती जाएगी। गारंटी के साथ!

SEO में results आने में कितना वक्त लगता है? (ईमानदार जवाब)

असल में, यह वही सवाल है जो हर client पूछता है। और मेरा जवाब? “जितना वक्त आपको gym में six-pack बनाने में लगेगा!” कोई fixed time नहीं है – 3 महीने भी हो सकते हैं, 6 भी। Depend करता है आपकी website की current हालत पर, competition पर, और सबसे important – आपके efforts पर। मगर एक बात याद रखिएगा – SEO patience का खेल है। रातोंरात success की उम्मीद? भूल जाइए!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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