अफगानिस्तान में तालिबान पर कौन जीतेगा दबदबे की जंग?
देखिए न, अफगानिस्तान में तालिबान को लेकर दो बड़े देशों की जो टेंशन चल रही है – वो अब खुलकर सामने आने लगी है। हालांकि नाम तो कोई नहीं ले रहा, पर सबको पता है कि कौन-कौन खिलाड़ी इस मैदान में उतरे हुए हैं। असल में बात ये है कि तालिबान अब भी किसी एक का पिछलग्गू बनने को तैयार नहीं। और यहीं से शुरू होती है असली मुसीबत!
अब सोचिए, जब से तालिबान सत्ता में आया है, अफगानिस्तान अचानक से सबका ‘फेवरेट प्लेग्राउंड’ कैसे बन गया? दिलचस्प बात ये है कि ये दोनों देश वहां पहले से ही एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे थे। लेकिन अब तो बात और भी गंभीर हो गई है – मान्यता देने को लेकर झगड़ा, आर्थिक मदद को लेकर तकरार… सच कहूं तो अफगानिस्तान अब एक जीता-जागता शतरंज का मैदान बन चुका है।
पिछले कुछ दिनों में क्या-क्या हुआ? तालिबान ने तो साफ कह दिया – “हम किसी के भी बाप की जागीर नहीं!” लेकिन यहां मजा ये है कि दोनों देश फिर भी अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं। सुरक्षा समझौते, व्यापार के ऑफर, आर्थिक लालच – सब कुछ तो टेबल पर है! पर स्थानीय स्तर पर? वहां तो हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
अब सुनिए लोग क्या कह रहे हैं। तालिबान का तो स्टैंड क्लियर है – “हमारा एजेंडा सिर्फ अफगान जनता का एजेंडा है।” वहीं एक्सपर्ट्स की राय? “यार, ये तो पहले से ही डूबती नैया को और हिला रहे हैं।” इंटरनेशनल मीडिया भी अलर्ट कर रही है कि ये टकराव आगे चलकर पूरे रीजन के लिए मुसीबत बन सकता है।
तो अब बड़ा सवाल ये है कि आगे क्या? तीन संभावनाएं दिख रही हैं:
- अगर तालिबान अपनी बात पर अड़ा रहा, तो दोनों देशों को नए प्लान बनाने पड़ेंगे
- अफगान जनता फिर से राजनीतिक उठापटक का शिकार होगी
- इंटरनेशनल कम्युनिटी को बीच-बचाव करना पड़ सकता है
पर सच तो ये है कि अभी सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि तालिबान कब तक अपने इस ‘स्वतंत्र रुख’ पर टिका रह पाता है। क्योंकि दबाव तो बढ़ता ही जा रहा है…
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com