राजस्थान के टाइगर रिजर्व की ‘राजमाता’: वो बाघिन जिसने इतिहास बदल दिया!
28 जून 2024… सरिस्का टाइगर रिजर्व का वो दिन जब एक मूर्ति नहीं, बल्कि एक कहानी साकार हुई। ‘राजमाता’ – ये नाम सुनते ही क्या आपके ज़हन में कोई शाही महिला की तस्वीर उभरती है? असल में ये तो एक बाघिन थी, जिसने पूरे रिजर्व को नया जीवन दिया। और अब उसकी याद में एक स्टैच्यू? सच में, ये किसी फिल्मी कहानी जैसा लगता है न?
कहानी शुरू होती है 2004-05 से, जब सरिस्का में एक भी बाघ नहीं बचा था। सोचिए, टाइगर रिजर्व बिना टाइगर के! ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जंगल की आत्मा ही छीन ली हो। लेकिन 2008 में हुआ कुछ ऐसा जिस पर यकीन करना मुश्किल था – रणथम्भौर से एक बाघिन (एसटी-2) को यहाँ लाया गया। और यहीं से शुरू हुई राजमाता की कहानी।
क्यों ‘राजमाता’ नाम पड़ा? सीधी सी बात है – इस बाघिन ने यहाँ इतने शावकों को जन्म दिया कि पूरा रिजर्व फिर से जीवंत हो उठा। एक तरह से देखें तो ये सरिस्का का दूसरा जन्म था। क्या आप जानते हैं? आज जो भी बाघ यहाँ दिखते हैं, वो कहीं न कहीं राजमाता की ही संतानें हैं।
28 जून को हुआ वो भावुक पल जब वन मंत्री संजय शर्मा ने इस बाघिन की प्रतिमा का अनावरण किया। सच कहूँ तो ये कोई साधारण मूर्ति नहीं, बल्कि एक संदेश है। रिजर्व के प्रवेश द्वार पर लगी ये प्रतिमा हर आने वाले visitor को याद दिलाएगी कि संरक्षण की ताकत क्या होती है। उस दिन वहाँ मौजूद लोगों की आँखों में आँसू देखने लायक थे!
वन मंत्री ने ठीक ही कहा – “राजमाता ने साबित कर दिया कि असंभव कुछ भी नहीं।” और सच में, ये सिर्फ़ एक बाघिन की कहानी नहीं है। ये तो उम्मीद की कहानी है। आने वाले सालों में सरिस्का और intensive efforts करेगा, नई policies बनेंगी। पर राजमाता की ये विरासत? ये तो हमेशा ज़िंदा रहेगी। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी कहानियाँ हमें प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को फिर से समझने का मौका देती हैं?
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राजस्थान के टाइगर रिजर्व की ‘राजमाता’… क्या नाम था उनका? वैसे नाम से ज़्यादा, उनकी मौजूदगी ने पूरे इलाके को एक अलग ही पहचान दी थी। सिर्फ़ एक बाघिन नहीं, बल्कि जंगल की दुनिया की एक लीजेंड। और सच कहूँ तो, उनकी कहानी सुनकर लगता है जैसे प्रकृति खुद हमसे कुछ कह रही हो।
अब देखिए न, उनकी याद में बनाया गया स्टैच्यू सिर्फ़ पत्थर की मूर्ति नहीं है। ये तो एक सबक है – हमें याद दिलाता है कि इंसान और जानवर, दोनों का साथ-साथ रहना कितना ज़रूरी है। वैसे भी, क्या हम भूल गए हैं कि जंगल हमारे घर हैं, या हम उनके?
राजमाता की विरासत… अरे भाई, ये तो हम सबकी कहानी बन चुकी है। अगली पीढ़ी को ये बात समझानी होगी – जीवों के साथ दया और सम्मान, यही तो असली इंसानियत है। और हाँ, ये स्टैच्यू सिर्फ़ देखने की चीज़ नहीं, बल्कि महसूस करने वाली बात है। सच में।
रणथंभौर की ‘राजमाता’ – जिसके बारे में हर कोई जानना चाहता है!
1. कौन थीं ये ‘राजमाता’ और क्यों हैं इतनी मशहूर?
असल में बात ये है कि 90s के दशक में रणथंभौर की जंगलों में एक ऐसी बाघिन छाई हुई थी जिसने सबको हैरान कर दिया। नाम था ‘राजमाता’ – और नाम से ही पता चलता है कि ये कोई आम बाघिन नहीं थी। है न मजेदार बात? उनकी hunting skills और dominance ऐसी थी कि पूरा रणथंभौर उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता नजर आता था। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे किसी राज परिवार की मुखिया होती है।
2. कहाँ मिलेगी ‘राजमाता’ की याद?
अरे भाई, अगर आप रणथंभौर घूमने जाएँ तो एक खास जगह जरूर देखें – वहाँ ‘राजमाता’ की एक शानदार मूर्ति लगी हुई है। सच कहूँ तो ये सिर्फ मूर्ति नहीं, बल्कि उनकी पूरी कहानी है जो चुपचाप खड़ी हुई बताती है। टूरिस्ट्स की तो ये पहली पसंद बन चुकी है। आप भी जाइएगा, फोटो खिंचवाइएगा – इंस्टाग्राम पर लाइक्स की बौछार होगी!
3. क्या खास था ‘राजमाता’ में?
देखिए, आम बाघिनों से ये कितनी अलग थीं, ये समझना हो तो एक example देता हूँ। कल्पना कीजिए – एक working mother जो अपने बच्चों को पालने के साथ-साथ पूरे ऑफिस को संभालती हो। ठीक वैसे ही! अपने cubs को पालना, territory की रखवाली करना, और सबसे बढ़कर वो unique hunting style… अद्भुत थी वो। कहने को तो बाघिन थीं, पर जैसे पूरे जंगल की CEO थीं।
4. क्या आज भी जिंदा है ‘राजमाता’ की legacy?
अब यहाँ दिलचस्प बात ये है कि हाँ! उनकी पूरी पीढ़ी आज भी रणथंभौर में घूम रही है। सच बताऊँ तो जंगल का ecosystem भी कमाल का है – राजमाता के वंशजों को देखना ऐसा ही है जैसे किसी celebrity family के members को real life में spot कर लेना। वैसे अगर आप lucky हुए तो शायद safari पर इनमें से किसी को देख भी पाएँ। क्या पता?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com