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उत्तरकाशी में बादल फटने से तबाही: यमुनोत्री मार्ग पर 9 मजदूर लापता, NDRF-SDRF की तलाश जारी

उत्तरकाशी में बादल फटा, फिर मची तबाही: यमुनोत्री रूट पर 9 मजदूर गायब!

उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला एक बार फिर प्रकृति के गुस्से का शिकार हुआ है। मंगलवार को बड़कोट-यमुनोत्री रूट के पास बालिगढ़ में अचानक बादल फटने से हाहाकार मच गया। और सबसे डरावनी खबर? एक बन रहे hotel में काम कर रहे 9 मजदूरों का कोई अता-पता नहीं। NDRF और SDRF की टीमें तो जुट गई हैं, पर मौसम की मार के आगे रेस्क्यू ऑपरेशन भी थम सा गया है।

सच कहूं तो, ये कोई नई बात नहीं। पहाड़ों पर बारिश का मौसम आता है, और साथ लाता है ऐसी ही कई त्रासदियां। बालिगढ़ वाला इलाका तो यमुनोत्री जाने वाले भक्तों का मुख्य रास्ता है – यहां तो construction का काम चलता ही रहता है। पर एक सवाल जो मन को कचोटता है: क्या पहाड़ों को काट-छाँटकर बनाई जा रही इन इमारतों की कीमत हमें ऐसी ही आपदाओं से चुकानी पड़ेगी? 2013 की केदारनाथ वाली तबाही के बाद से तो ये सिलसिला और भी तेज हो गया लगता है।

अभी की बात करें तो, rescue operations जारी हैं। पर स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। मौसम विभाग ने heavy rainfall की चेतावनी दी है, और स्थानीय प्रशासन भी अलर्ट मोड में है। NDRF के एक जवान ने बताया, “मलबा इतना ज्यादा है कि… और ऊपर से लगातार बारिश। पर हम हार नहीं मानेंगे।” उनकी आँखों में थकान थी, पर हिम्मत भी।

इस घटना पर राजनीति भी गर्मा गई है। सीएम धामी ने ट्वीट कर दुख जताया है, पर स्थानीय लोगों का गुस्सा साफ झलक रहा है। एक बुजुर्ग ने कहा, “ये लोग पहाड़ को खोखला कर रहे हैं, और हमें भुगतना पड़ रहा है।” वहीं पर्यावरण कार्यकर्ताओं की मांग है कि sustainable development को गंभीरता से लिया जाए। सच तो ये है कि अब बहस करने का वक्त नहीं, कुछ करने का वक्त है।

आने वाले दिनों के लिए ये घटना एक बड़ा सवाल छोड़ गई है। disaster management system को मजबूत करना अब विकल्प नहीं, जरूरत बन चुका है। मौसम विभाग ने अगले दो दिनों में और बारिश की भविष्यवाणी की है – स्थिति और भी बिगड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि construction guidelines पर फिर से सोचने का वक्त आ गया है।

फिलहाल तो सबकी निगाहें उन 9 मजदूरों पर टिकी हैं जो कुदरत के इस कोप का शिकार हुए हैं। पर एक बात तो तय है – प्रकृति को चुनौती देने की कीमत हमेशा इंसान को ही चुकानी पड़ती है। शायद अब वक्त आ गया है कि विकास और पर्यावरण के बीच सही संतुलन खोजा जाए। वरना… अगली बार किसका नंबर आएगा, कोई नहीं जानता।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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