“सिवान का सनसनीखेज तेजाब कांड: दो भाइयों को पेड़ से बांधकर नहलाया गया तेजाब से!”

सिवान का वो डरावना तेजाब कांड: जब दो भाइयों को पेड़ से बांधकर उन पर उड़ेला गया तेजाब!

बिहार के सीवान से एक ऐसी खबर आई है जो रोंगटे खड़े कर देती है। चंदा बाबू नाम के एक स्थानीय व्यक्ति के दो बेटों को पेड़ से बांधकर तेजाब से जला दिया गया। और हैरानी की बात ये कि ये घटना 2004 के उस कुख्यात सीवान कांड की याद दिलाती है, जब RJD नेता शहाबुद्दीन के आदमियों ने इसी परिवार के तीन लड़कों की जान ले ली थी। सच कहूं तो, ये सुनकर लगता है जैसे समय चक्र वहीं घूम गया हो। सवाल ये उठता है कि क्या बिहार की राजनीति में अपराधियों का खेल अब भी जारी है?

सीवान का वो काला अध्याय जो दोबारा लिखा जा रहा है

देखिए, सीवान का नाम सुनते ही दिमाग में क्या आता है? अपराध और राजनीति का गंदा गठजोड़। 2004 वाला मामला तो जैसे इसकी मिसाल बन चुका है – जब चंदा बाबू के तीन बेटों को पेड़ से बांधकर तेजाब से मार डाला गया था। और अब? 2025 के चुनाव से ठीक पहले फिर वही दृश्य। वही शिकार। वही तरीका। क्या ये सिर्फ एक संयोग है या फिर कोई सुनियोजित साजिश? ईमानदारी से कहूं तो, ये सवाल मुझे भी परेशान कर रहा है।

ताजा अपडेट: क्या कुछ हुआ अब तक?

परिवार वालों का आरोप है कि शहाबुद्दीन के लोग ही इसके पीछे हैं। पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा भी है, मगर बड़ा नाम अभी तक सामने नहीं आया। और सच बताऊं? जब तक बड़े लोग फंसते नहीं, तब तक लोगों का डर दूर होने वाला नहीं। विपक्ष तो मौके की नजाकत समझ रहा है – सरकार पर हमला बोल दिया है। पर असल सवाल ये है कि आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला?

क्या कह रहे हैं लोग?

चंदा बाबू का दर्द सुनिए: “हमारे साथ फिर वही हुआ…क्या सरकार हमें बचा नहीं सकती?” RJD वाले बचाव में हैं – कह रहे हैं इसे राजनीति मत बनाओ। BJP? वो तो मौका देखकर सरकार पर टूट पड़ी है। और मानवाधिकार वालों की चिंता जायज है – सीवान में इंसाफ की कमी तो साफ दिख रही है।

अब आगे क्या?

2025 के चुनाव में ये मुद्दा बम की तरह फटेगा, इसमें कोई शक नहीं। अगर जांच में शहाबुद्दीन या उनके लोगों का नाम आया तो…समझ लीजिए राजनीति का पूरा समीकरण बदल जाएगा। फिलहाल तो सिवान के लोग डरे हुए हैं। और डरना भी चाहिए – जब एक ही परिवार को दो बार निशाना बनाया जाए, तो किसका विश्वास बचेगा सिस्टम पर?

सच तो ये है कि ये सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लिए शर्म की बात है। क्या हम वाकई 21वीं सदी में जी रहे हैं? या फिर कानून का राज सिर्फ किताबों तक ही सीमित है? सोचने वाली बात है…सच में।

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सिवान का यह तेजाब हमला… सुनकर ही रूह कांप जाती है। सच कहूं तो, ये सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि हमारे समाज का आईना है। और हां, ये सवाल तो उठना ही था – क्या हमारे शहर, हमारी गलियां अब सुरक्षित नहीं रहीं?

लेकिन सिर्फ सवाल उठाने से काम नहीं चलेगा। देखिए न, इस एक घटना ने कितने सारे मुद्दों को उछाल दिया – कानून की धीमी चाल, महिलाओं की सुरक्षा का सवाल, और वो तेजाब की आसान उपलब्धता… जिस पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

पीड़ित परिवार के लिए तो शब्द ही कम पड़ जाते हैं। न्याय? बिल्कुल मिलना चाहिए। पर क्या सिर्फ न्याय मिल जाने से ऐसी घटनाएं रुक जाएंगी? शायद नहीं।

असल में जरूरत है दोहरी रणनीति की – एक तरफ कानून का सख्त हाथ, तो दूसरी तरफ समाज की सोच बदलने की मुहिम। वैसे भी, जब तक हम ‘लड़कियों को संभल कर रहना सिखाएंगे’ की बजाय ‘लड़कों को सही शिक्षा नहीं देंगे’, तब तक… आप समझ ही गए होंगे।

एक बात और – social media पर outrage दिखाना अच्छा है, पर क्या उसी energy को हम ground level पर काम करने में लगा पाएंगे? सोचने वाली बात है।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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