महाराष्ट्र में हिंदी विवाद: क्या मराठी अस्मिता पर सचमुच खतरा है?
अरे भाई, महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर भाषा का तूफान आ गया है। सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का फैसला किया है, और बस… मराठी भाषा समिति से लेकर तमाम संगठनों ने जैसे आग पकड़ ली है। असल में देखा जाए तो ये कोई नई बात नहीं – महाराष्ट्र में भाषा को लेकर ऐसी आग कब की जल चुकी है। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए मामला थोड़ा पेचीदा हो गया है। एक तरफ मराठी अस्मिता का सवाल, दूसरी तरफ राष्ट्रीय एकता का दबाव… समझ नहीं आ रहा इनके लिए बैलेंस बनाना और मुश्किल होगा या नहीं!
भाषाई विवाद: पुरानी कहानी, नए अध्याय
देखिए, महाराष्ट्र में भाषा को लेकर तनाव तो 1960 के दशक से चला आ रहा है। उस वक्त के मराठी भाषा आंदोलनों ने राज्य की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया था। अब सरकार ने education policy में बदलाव करके हिंदी को तीसरी भाषा बना दिया है। मतलब साफ है – पहले मराठी और English के साथ regional languages को तरजीह मिलती थी, अब हिंदी आ गई है बीच में। और भई… ये फैसला ऐसा लगा जैसे पुराने ज़ख्म पर नमक छिड़क दिया हो। सच कहूं तो, ये सिर्फ भाषा का मसला नहीं रहा, महाराष्ट्र की पहचान का सवाल बन चुका है।
विरोध की आग: क्या सरकार संभाल पाएगी?
अब सुनिए… मराठी भाषा समिति तो बिल्कुल आगबबूला है। उनका कहना है – “ये सीधा हमला है मराठी अस्मिता पर!” और वापसी की मांग कर रहे हैं। उनका argument समझ में आता है – क्यों बच्चों पर हिंदी थोपी जा रही है? विरोध प्रदर्शनों में शिवसेना (UBT) सबसे आगे दिख रही है। वहीं सरकार का कहना है कि ये फैसला students के national level competition को ध्यान में रखकर लिया गया है। मजे की बात ये कि CM और Deputy CM अभी तक साफ-साफ कुछ कह नहीं पाए हैं। क्या डर है भई? या फिर कोई चाल चल रहे हैं?
राजनीति का खेल: कौन किसके साथ?
इस पूरे मामले ने महाराष्ट्र की जटिल राजनीति को फिर से उजागर कर दिया है। मराठी भाषा समिति वाले तो बिल्कुल clear हैं – “हिंदी थोपना बर्दाश्त नहीं!” शिवसेना (UBT) सरकार पर मराठी संस्कृति से समझौता करने का आरोप लगा रही है। वहीं BJP के एक नेता ने थोड़ा संतुलित बयान दिया है – “हिंदी राष्ट्रभाषा है, लेकिन regional languages को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।” Teachers association वाले तो और भी सीधे हैं – बिना proper discussion के ये फैसला ठीक नहीं। सचमुच… हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है!
आगे क्या? सरकार के पास कितने विकल्प?
अब स्थिति ये है कि सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। Political analysts कह रहे हैं कि जल्द ही सरकार को इस फैसले पर rethink करना पड़ सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो… भई, महाराष्ट्र में बड़े आंदोलन होने की पूरी संभावना है। और तो और, अगले विधानसभा elections में ये एक बड़ा issue बन सकता है। आखिरकार, मराठी अस्मिता का सवाल voters के लिए हमेशा संवेदनशील रहा है। फिलहाल तो बातचीत चल रही है, लेकिन अगले कुछ दिनों में कुछ न कुछ बड़ा होने वाला है। देखते हैं… सरकार इस आंधी में कैसे निकलती है!
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महाराष्ट्र का हिंदी विवाद: फडणवीस साहब के बयान ने क्यों खड़ा किया तूफान?
अरे भई, ये महाराष्ट्र का हिंदी-मराठी विवाद तो जैसे हर दो साल में नए अंदाज़ में सामने आ जाता है। पर इस बार CM एकनाथ फडणवीस के बयान और मराठी भाषा समिति की प्रतिक्रिया ने मामले को गरमा दिया है। चलिए, बिना किसी पक्षपात के समझते हैं कि आखिर मामला क्या है।
1. ये हिंदी विवाद है क्या बला?
देखिए, बात बस इतनी सी है कि महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। मराठी भाषा समिति वाले तो मानो आग बबूला हो गए हैं – उनका कहना है कि हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है। और जब CM साहब ने हिंदी को “राष्ट्रभाषा” बताया, तो सारा मामला और उलझ गया। सच कहूं तो, ये language debate अब political colors लेती जा रही है।
2. मराठी वालों की दिक्कत क्या है?
असल में बात ये है कि मराठी भाषा समिति को लगता है कि उनकी मातृभाषा को दबाया जा रहा है। उनकी मांग? बिल्कुल साफ – महाराष्ट्र में मराठी को priority मिले, हिंदी force न की जाए। और सुनिए, उनकी ये चिंता बिल्कुल नई नहीं है। पिछले कई सालों से वे मराठी को राजभाषा के तौर पर मजबूत करने की मांग करते आए हैं।
3. CM साहब ने आखिर क्या कहा था?
अब यहां मजेदार बात ये है कि फडणवीस जी ने तो बस इतना कहा था कि हिंदी हमारी “राष्ट्रभाषा” है और इसे सीखना चाहिए। पर मराठी समर्थकों को ये बात नागवार गुजरी। उनका तर्क? “अरे भई, महाराष्ट्र में तो मराठी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए ना?” सच तो ये है कि ये statement और reaction का खेल अब बड़ा होता जा रहा है।
4. क्या ये विवाद राजनीति को प्रभावित करेगा?
अरे भाई, सवाल ही क्या पूछते हो! महाराष्ट्र की राजनीति में language issues हमेशा से emotional रही हैं। और देखा जाए तो regional parties इस मौके को हाथ से जाने नहीं देंगी। मराठी अस्मिता का कार्ड खेलकर political mileage लेने की कोशिश तो होगी ही। हालांकि, ये सब कितना काम आएगा, ये तो वक्त ही बताएगा।
एक बात तो तय है – ये विवाद जल्द शांत होता नहीं दिख रहा। क्या आपको नहीं लगता?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com