“सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘हम सुनवाई नहीं कर सकते’, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने का निर्देश”

सुप्रीम कोर्ट का साफ जवाब: ‘हम नहीं सुनेंगे’, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट भेजा

एक बेहद संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ मना कर दिया। बोधगया के महाबोधि मंदिर से जुड़े इस केस में कोर्ट ने कहा – “पहले हाईकोर्ट जाइए!” सच कहूं तो ये कोई नई बात नहीं है। दशकों से ये मंदिर हिंदू-बौद्ध संयुक्त प्रबंधन में चल रहा है, लेकिन अब बौद्ध समुदाय चाहता है कि पूरा कंट्रोल उनके हाथ में आ जाए। और यहीं से विवाद शुरू होता है।

पुरानी कहानी, नया अध्याय: 1949 का कानून याद आया

असल में देखा जाए तो ये विवाद 1949 के उस कानून से जुड़ा है जिसमें मंदिर प्रबंधन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। दोनों समुदायों के लोग इसमें शामिल थे। लेकिन सवाल यह है कि जिस जगह पर भगवान बुद्ध को ज्ञान मिला था, क्या वहां सिर्फ बौद्धों का हक नहीं होना चाहिए? याचिकाकर्ता का यही तर्क है। हालांकि… ये बहस नई तो बिल्कुल नहीं है। सालों से चल रही है ये टेंशन।

कोर्ट ने क्या कहा? सीधी बात, बिना लाग-लपेट

सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल साफ शब्दों में कह दिया – “भाई, पहले हाईकोर्ट में जाओ।” और साथ ही ये भी कहा कि अगर वहां से संतुष्टि नहीं मिली तो फिर यहां आना। एक तरह से कोर्ट ने केस को वापस हाईकोर्ट भेजकर सही किया। कानूनी जानकारों की मानें तो अब ये केस पटना हाईकोर्ट में लंबा खिंचेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे हमारे यहां कोई पारिवारिक विवाद सालों चलता रहता है।

दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया: एक खुश, एक नाराज

अब जानते हैं दोनों तरफ के लोग क्या कह रहे हैं। बौद्ध नेताओं को थोड़ी निराशा जरूर हुई, लेकिन उनका कहना है कि वे हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे। वहीं हिंदू समुदाय के लोगों ने कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। उनका कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में सबका हित सुरक्षित है। सच तो ये है कि दोनों ही पक्ष अपने-अपने तर्कों पर अड़े हुए हैं।

अब क्या होगा? पटना हाईकोर्ट पर नजर

तो अब पूरी नजर पटना हाईकोर्ट पर है। याचिकाकर्ता जल्द ही वहां नया केस दायर करेगा। फिलहाल मंदिर का प्रबंधन पहले की तरह ही चलेगा। पर एक बात तो तय है – ये सिर्फ कानूनी मामला नहीं है। ये तो धर्म, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का भी मसला बन चुका है। खासकर तब, जब बात बिहार की राजनीति और विदेशों में बसे बौद्ध समुदाय की हो।

आखिर में कहूं तो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने बोधगया मंदिर के सालों पुराने विवाद में एक नया ट्विस्ट डाल दिया है। अब बस यही देखना है कि हाईकोर्ट इस गंभीर मामले को कैसे हैंडल करता है। क्या ये फैसला इस लंबे विवाद पर विराम लगा पाएगा? वक्त ही बताएगा।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला – जानिए वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं (FAQs)

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका सुनने से मना क्यों कर दिया?

देखिए, यहाँ बात बिल्कुल सीधी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका इसलिए नहीं सुनी क्योंकि मामला पहले से ही हाईकोर्ट में चल रहा था। कोर्ट ने साफ कहा – “भाई, पहले हाईकोर्ट में तो अपनी बात रख लो!” असल में ये judicial hierarchy का मामला है, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं।

क्या अब सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है?

सुनिए, technically तो हाँ… लेकिन पूरी कहानी ये है कि पहले हाईकोर्ट का फैसला आना ज़रूरी है। मान लीजिए हाईकोर्ट का फैसला आपके खिलाफ जाता है – तभी आपको सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का मौका मिलेगा। वरना नहीं। Simple!

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में फर्क क्या है? समझिए आसान भाषा में

अरे, इसे ऐसे समझिए – सुप्रीम कोर्ट तो बॉस ऑफ ऑल बॉस है! पूरे देश का सबसे top-level का court, जिसका फैसला final होता है। वहीं हाईकोर्ट… उन्हें अपने-अपने राज्य की चिंता रहती है। एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट constitutional issues और बेहद गंभीर मामले सुनता है, वहीं हाईकोर्ट state-level के झगड़े निपटाते हैं। समझ आया न?

हाईकोर्ट भी न सुने तो क्या करें? ये है विकल्प

अब ये स्थिति तो बड़ी ही खराब है! लेकिन घबराइए नहीं – अगर हाईकोर्ट भी मामला नहीं सुनता (जो कि बहुत rare है), तो आपके पास एक हथियार है – special leave petition यानी SLP। पर एक बात याद रखिए – SLP accept करना या न करना पूरी तरह कोर्ट की मर्जी पर निर्भर करता है। कभी-कभी तो लोगों को ये कहकर टाल दिया जाता है कि “इसमें कोई constitutional question ही नहीं है!”

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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