चीन की नींद उड़ा देने वाली 3 ताकतें! क्या शिंजियांग अलग हो जाएगा? और पाकिस्तान की चुप्पी पर ये बड़ा सच…
अभी कुछ दिन पहले ही मैं एक report पढ़ रहा था – चीन के शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है, वो सच में दिल दहला देने वाला है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तो बवाल मचा हुआ है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई कुछ बदलेगा? हैरानी की बात तो ये है कि जिस चीन को पाकिस्तान में आतंकवाद दिखाई नहीं देता, वही चीन अपने ही देश में अल्पसंख्यकों के साथ क्या कर रहा है! सच कहूं तो ये दोहरा चरित्र अब चीन की विश्वसनीयता को लेकर बड़े सवाल खड़े कर रहा है।
शिंजियांग का दर्द: एक पीड़ादायक पृष्ठभूमि
देखिए, शिंजियांग technically तो चीन का “स्वायत्त प्रांत” है, लेकिन ground reality कुछ और ही कहानी बयां करती है। यहां के उइगर मुस्लिम, जो बहुसंख्यक हैं, उन्हें चीनी सरकार क्या-क्या नाम देती है – “अलगाववादी”, “आतंकवादी”… बस लेबल लगाने का सिलसिला चल निकला है। सरकार का दावा है कि ये सब “पुनर्शिक्षण शिविर” हैं, लेकिन UN की reports पढ़ लीजिए – ये तो किसी जेल से कम नहीं! जबरन मजदूरी, धार्मिक पाबंदियां… सच कहूं तो मानवाधिकारों का मजाक बनाया जा रहा है।
और सबसे दिलचस्प बात? जिस चीन को अपने यहां अल्पसंख्यकों से इतनी दिक्कत है, वही चीन पाकिस्तान के साथ गले तक मिला हुआ है। क्या आपने कभी सुना है कि चीन ने पाकिस्तान के आतंकवाद पर एक भी सवाल उठाया हो? नहीं न! यही तो इस पूरे मामले का सबसे बड़ा विरोधाभास है।
अब तक क्या हुआ? अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
पिछले कुछ महीनों में तो मामला और गरमाया है। अमेरिका और EU ने चीन को खुली चुनौती दी है। शिंजियांग में विरोध प्रदर्शन? हां, हुए हैं… लेकिन चीन की तो आदत है न – सभी आवाज़ों को बलपूर्वक दबा देने की।
लेकिन सबसे हैरान कर देने वाली बात? पाकिस्तान की चुप्पी! भाई, कश्मीर पर तो रोज-रोज भाषण देते हैं, लेकिन उइगर मुस्लिमों के मामले में मुंह पर ताला? साफ दिख रहा है न कि आतंकवाद के मामले में इनका रुख कितना “चयनात्मक” है। एकदम दोहरा मापदंड!
कौन क्या कह रहा है?
चीनी सरकार का तो पुराना राग है – “ये सब कानून-व्यवस्था के लिए जरूरी है”। लेकिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसे सीधे-सीधे “मानवता के खिलाफ अपराध” बताया है। और हमारा भारत? वो तो सीधे चीन की इस दोगली नीति पर उंगली उठा चुका है। सही भी है – आतंकवाद की निंदा तो सभी को एक जैसी करनी चाहिए, फेवरिटिज्म तो नहीं चल सकता न!
आगे क्या होगा? कुछ संभावित परिदृश्य
अगर चीन नहीं संभला, तो international sanctions का खतरा तो है ही। शिंजियांग में अलगाववादी आंदोलन और तेज हो सकता है – और ये चीन के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है।
और पाकिस्तान? उसकी ये चुप्पी तो उसके own “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई” के दावों पर ही पानी फेर देगी। अब तो दुनिया भी समझ गई है कि ये लोग किस तरह चुन-चुनकर आतंकवाद की निंदा करते हैं।
असल में ये पूरा मामला चीन की विदेश नीति के दोहरे चरित्र को उजागर कर गया है। सिर्फ economic superpower बनने से कुछ नहीं होता… वैश्विक नेता बनने के लिए नैतिकता भी तो चाहिए होती है। पर क्या चीन ये समझ पाएगा? ये तो वक्त ही बताएगा।
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चीन का शिंजियांग पर कसता शिकंजा और पाकिस्तान की अजीबोग़रीब ख़ामोशी… क्या ये सब सिर्फ़ एक संयोग है? देखा जाए तो शिंजियांग अगर अलग हो गया, तो चीन की ताकत को ऐसा झटका लगेगा जैसे किसी इमारत की नींव हिल जाए। और पाकिस्तान? उसकी ये चुप्पी तो बिल्कुल वैसी है जैसे कोई बच्चा डांट खाने के डर से मुंह चुरा रहा हो।
असल में, ये पूरा मामला सिर्फ़ एशिया की राजनीति नहीं, बल्कि Global पावर गेम को भी पलट सकता है। सोचिए न, जब दो देशों का एक-दूसरे पर इतना निर्भर होना… और फिर ये सिलसिला।
लेकिन सच तो ये है कि अभी बहुत कुछ अनकहा है। तो क्या आप तैयार हैं इस जटिल पहेली को सुलझाने के लिए? हमारे साथ बने रहिए, क्योंकि अगले कुछ दिनों में कुछ बड़े खुलासे होने वाले हैं!
चीन की 3 बड़ी टेंशन और शिंजियांग का भविष्य – कुछ सवाल जो दिमाग में आते हैं
1. चीन को किन 3 बुरी ताकतों से सबसे ज्यादा डर लगता है?
देखिए, चीन का डर असल में तीन चीज़ों से है। पहला तो शिंजियांग में Uyghur अलगाववाद – जो उनके लिए सिरदर्द बना हुआ है। दूसरा, Taiwan की आज़ादी की चाहत। और तीसरा? अमेरिका का इंडो-पैसिफिक region में बढ़ता दखल। सच कहूं तो, ये तीनों मिलकर चीन की नींद उड़ा देने के लिए काफी हैं।
2. क्या शिंजियांग चीन से अलग हो सकता है?
अभी के हालात देखें तो… मुश्किल लगता है। चीन ने वहां जिस तरह की लोहे की मुट्ठी वाली पकड़ बना रखी है, उसे देखकर तो नहीं लगता। Uyghur मुस्लिमों पर नज़र रखने के लिए तो जैसे पूरा सिस्टम ही खड़ा कर दिया है। पर यहां एक ‘लेकिन’ है – अंतरराष्ट्रीय community का दबाव बढ़ता रहा तो क्या पता, कल को कुछ बदल जाए।
3. पाकिस्तान शिंजियांग मुद्दे पर चुप क्यों है?
अरे भई, इसका जवाब तो CPEC प्रोजेक्ट में छुपा है! पाकिस्तान चीन का दोस्त है न, और बहुत ‘खास’ दोस्त। जब आपके पास चीन जैसा दोस्त हो जो आपकी अर्थव्यवस्था को सहारा दे रहा हो, तो आप sensitive मुद्दों पर मुंह क्यों खोलेंगे? सीधी सी बात है – रिश्ते बिगड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते।
4. क्या चीन की ये टेंशन भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है?
इसे ऐसे समझिए – जब बिल्ली अपने ही मुसीबतों में उलझी हो, तो चूहे को फुरसत मिलती है न? कुछ वैसा ही। चीन जितना इन समस्याओं में व्यस्त रहेगा, भारत के लिए सीमा पर दबाव कम होगा और एशिया में influence बढ़ाने का मौका मिलेगा। पर यहां एक चेतावनी – हमें भी सतर्क रहना होगा। चीन कब किस तरफ से वार कर दे, कौन जाने!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com
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