यूरोप में भीषण गर्मी: क्या ये नया ‘नॉर्मल’ बन रहा है?
अभी कल ही की बात है, मैं अपने एक दोस्त से बात कर रहा था जो स्पेन में रहता है। उसने बताया कि उनके यहाँ तो पारा 47°C पहुँच गया! सुनकर लगा जैसे कोई मजाक कर रहा हो। लेकिन सच्चाई यही है – यूरोप आजकल एक मानो चलते-फिरते ओवन में तब्दील हो गया है। इटली से लेकर फ्रांस तक, Red Alert का मतलब अब सिर्फ एक फॉर्मैलिटी नहीं रह गया है। असल में, स्थिति इतनी गंभीर है कि स्कूल बंद, tourist attractions बंद… और दुखद तो ये कि कई जानें भी जा चुकी हैं। ये सिर्फ ‘गर्मी’ नहीं, एक पूरा सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है।
गर्मी या जलवायु परिवर्तन का दंश?
अब सवाल यह उठता है – क्या ये सिर्फ एक heat wave है या फिर climate change हमें अपना बिल पेश कर रहा है? देखा जाए तो यूरोप में पिछले कुछ सालों से गर्मी का कहर बढ़ता ही जा रहा है। पर इस बार? बिल्कुल अलग लेवल। 2003 की याद दिला देता है, जब हजारों लोगों ने जान गँवाई थी। उस वक्त तो सबने सोचा था कि ये एक एक्सीडेंटल केस था। लेकिन अब? अब तो हर दूसरे साल नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। सरकारों ने चेतावनी सिस्टम भी बेहतर किए थे, मगर इस बार की गर्मी ने सबको हैरान कर दिया।
आँकड़े जो डरा देते हैं
तापमान के आँकड़े देखें तो लगता है मानो कोई साइंस फिक्शन मूवी चल रही हो। इटली-फ्रांस में 40°C पार? स्पेन-पुर्तगाल में 47°C? ये वो नंबर्स हैं जो पहले सिर्फ मध्य पूर्व के रेगिस्तानों में सुनने को मिलते थे। emergency services पूरी तरह अलर्ट पर हैं, पर क्या ये काफी है? सबसे ज्यादा मार बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों पर पड़ रही है। सच कहूँ तो, ये सिर्फ मौसम नहीं, एक सामाजिक त्रासदी बन चुका है।
क्या कर रही हैं अथॉरिटीज़?
WHO का कहना है कि अब preventive measures पर ध्यान देना ही एकमात्र रास्ता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये पर्याप्त है? स्थानीय प्रशासन वही पुरानी सलाह दे रहा है – पानी पीते रहो, हल्के कपड़े पहनो, दोपहर में बाहर न निकलो। पर environmentalists सही कह रहे हैं – ये समस्या तो बड़ी है। असली इलाज climate change से लड़ना है, नहीं तो ये heat waves हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाएँगी।
आगे का रास्ता: जुगाड़ या स्थायी समाधान?
अगले कुछ दिनों में स्थिति और खराब होने वाली है। सरकारें cooling centers बना रही हैं, health services को मजबूत कर रही हैं। अच्छी बात है। पर ईमानदारी से कहूँ तो, ये सब तो छोटे-मोटे जुगाड़ हैं। असली मुद्दा? वो तो global warming है। जब तक हम carbon emissions पर कंट्रोल नहीं करेंगे, तब तक ऐसी घटनाएँ बढ़ती ही रहेंगी। एक तरफ तो हम AC चलाते हैं, दूसरी तरफ गर्मी से परेशान हैं। विडंबना नहीं तो और क्या है?
अंतिम बात: वक्त आ गया है जागने का
यूरोप की ये गर्मी सिर्फ यूरोप की समस्या नहीं। ये तो एक ग्लोबल वार्निंग है। हमारे सामने climate change का सबूत है, जो हर दिन और स्पष्ट होता जा रहा है। फिलहाल तो बचाव के उपाय करने ही होंगे। लेकिन लंबे समय में? हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी, वरना… खैर, वरना वाली बात अब सोचने का वक्त नहीं रह गया। एक्शन का वक्त है। क्या हम तैयार हैं?
यह भी पढ़ें:
यूरोप में भीषण गर्मी – जानिए सबकुछ (FAQ)
1. यूरोप में इस बार गर्मी इतनी ज्यादा क्यों है?
अरे भाई, Europe में तो इस बार आग बरस रही है! सच कहूं तो मैंने खुद कभी ऐसी गर्मी नहीं देखी। असल में, climate change और El Niño effect ने मिलकर कमाल कर दिया है। तापमान के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए हैं – और ये लू तो जानलेवा हो चुकी है। सोचिए, अगर यही हाल रहा तो आगे क्या होगा?
2. यूरोप की इस भीषण गर्मी से कैसे बचा जा सकता है?
देखिए, यहां सबसे ज़रूरी है hydration। मतलब, पानी पीते रहो जैसे कोई मराठी पानीपुरी खा रहा हो! सीधी धूप से बचना तो बेसिक है ही, lightweight clothes पहनो और अगर AC नहीं है तो घर के पर्दे गीले करके लगा दो। एकदम ज़बरदस्त ट्रिक है। सच में।
3. क्या यूरोप जाने वाले tourists को कोई special precautions लेने चाहिए?
अरे भूलकर भी दोपहर में बाहर मत निकलना! 12 से 4 बजे तक तो Europe की सड़कें तवे की तरह तपती हैं। मेरा सुझाव? sunscreen लगाओ जैसे कोई बच्चा नहाने से पहले साबुन लगाता है। और हां, water bottle तो हमेशा साथ रखो – वरना पछताओगे। emergency contacts भी सेव करके रखना, कहीं ऐसा न हो कि…
4. क्या ये extreme heat future में और बढ़ सकती है?
ईमानदारी से कहूं तो स्थिति डरावनी है। Experts की मानें तो global warming पर काबू नहीं पाया गया तो Europe में ये heatwaves नई normal बन जाएंगी। एक तरफ तो हम AC चलाते हैं, दूसरी तरफ climate को बर्बाद कर देते हैं। विडंबना देखिए न! इसीलिए अब climate action लेना उतना ही ज़रूरी है जितना कि सांस लेना।
Source: DW News | Secondary News Source: Pulsivic.com