CBI की फोन टैपिंग पर HC का बड़ा फैसला! सीधे कहा – ‘कानून की धज्जियां उड़ाने वालों को माफ नहीं किया जाएगा’
अरे भई, मद्रास HC ने तो आज एक ऐसा फैसला सुनाया है जो सचमुच ऐतिहासिक है! CBI वालों के हाथ-पैर फूल गए होंगे, क्योंकि कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया – “यार, बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी का भी फोन टैप करना… ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी के घर में घुसकर उसकी निजी बातें सुनना।” और हम सब जानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार कितना पवित्र माना जाता है। सच कहूं तो, ये फैसला सरकारी एजेंसियों की मनमानी पर लगाम लगाने वाला है।
पूरा मामला क्या है? CBI ने कहाँ चूक की?
देखिए न, मामला तब शुरू हुआ जब CBI ने कुछ आरोपियों के फोन टैप कर लिए। पर सवाल यह है कि क्या उन्होंने टेलीग्राफ एक्ट के मुताबिक सही प्रक्रिया अपनाई? शायद नहीं! वरना कोर्ट इतना सख्त फैसला क्यों सुनाती? असल में, ये 1885 का कानून आज भी प्रासंगिक है, और इसमें साफ लिखा है कि फोन टैपिंग के लिए खास अनुमति चाहिए। लेकिन हमारी एजेंसियों को ये सब ‘फॉर्मेलिटीज’ अक्सर फालतू लगती हैं। है न मजेदार बात?
कोर्ट ने क्या कहा? दो बड़ी बातें!
अब सुनिए कोर्ट के फैसले की मसालेदार बातें:
1. “भई, कानून तोड़कर फोन टैपिंग? बिल्कुल नहीं चलेगा!”
2. “ये स्पेशल पावर्स सिर्फ गंभीर केसों के लिए हैं, हर छोटी-मोटी जांच में नहीं!”
और सबसे बढ़िया बात – कोर्ट ने ये भी कहा कि अनुच्छेद 21 सिर्फ ‘जिंदा रहने’ का अधिकार नहीं देता, बल्कि ‘इज्जत से जीने’ का भी हक देता है। सच कहूं तो, ये फैसला आने वाले सालों में नागरिक अधिकारों की लड़ाई में एक बेंचमार्क बन जाएगा।
लोग क्या कह रहे हैं? मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
दिलचस्प बात ये है कि इस फैसले पर सबकी अपनी-अपनी राय है। कानून के जानकार ताली बजा रहे हैं, वहीं मानवाधिकार वाले इसे ‘जनता की जीत’ बता रहे हैं। पर सरकारी तंत्र? चुप्पी साधे बैठा है! हालांकि राजनीतिक गलियारों में फुसफुसाहट ज़रूर है कि ये सरकार के लिए बड़ा झटका है। पर सच तो ये है कि जब कोर्ट ऐसे फैसले सुनाती है, तो लगता है कि अभी भी इस देश में न्याय व्यवस्था काम कर रही है।
आगे क्या? ये फैसला कैसे बदलेगा खेल?
अब तो CBI और दूसरी एजेंसियों को फोन टैपिंग के लिए कानूनी रास्ता ही अपनाना होगा। पर मज़ा ये है कि कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। और हाँ, ये फैसला उस बहस को नई दिशा देगा जो डेटा प्राइवेसी बिल और डिजिटल निगरानी को लेकर चल रही है। सोचिए, आज फोन टैपिंग है, कल को सोशल मीडिया पर निगरानी होगी… ये सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा?
आखिर में, मद्रास HC का ये फैसला एक साफ संदेश देता है – “कानून सबके लिए एक समान है, चाहे वो आम आदमी हो या सरकारी एजेंसी।” और ये केस तो अब उन मिसालों में शामिल हो गया है जो भविष्य में सरकारी ताकत और आम नागरिक के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के लिए देखे जाएंगे। सच कहूँ तो, आज का दिन भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा!
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com
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