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HC का बड़ा फैसला: अब क्रिमिनल को पकड़ने के लिए फोन टैप नहीं कर सकती सरकार!

हाईकोर्ट का वो फैसला जिसने फोन टैपिंग को लेकर सबका ध्यान खींचा!

अरे भई, भारतीय न्यायपालिका ने तो इस बार एक ऐसा फैसला सुनाया है जिस पर चर्चा होनी ही थी! मद्रास हाईकोर्ट ने सरकारी एजेंसियों के उस ‘बड़े भाई वाले’ रवैये पर लगाम लगा दी है जहाँ वो किसी का भी फोन टैप कर लेते थे। अब कोर्ट ने साफ कहा है – “जनाब, public safety या real emergency के बिना किसी की निजी बातचीत सुनना… ये तो संविधान के साथ खिलवाड़ है!” दिलचस्प बात ये कि ये मामला एक किशोर की जिद्द के चलते आगे बढ़ा, जिसने सरकार के इस अधिकार को ही चुनौती दे डाली।

असल में मामला क्या है?

देखिए, भारत में फोन टैपिंग का मसला कोई नया नहीं है। सरकार हमेशा से national security और crime control के नाम पर इसे जायज ठहराती आई है। लेकिन इस बार? एक स्कूली बच्चे ने हाईकोर्ट में केस दायर कर दिया क्योंकि उसकी पर्सनल कॉल्स बिना किसी वजह के मॉनिटर की जा रही थीं। है न गजब की बात? हालांकि टेलीग्राफ एक्ट की धारा 5(2) सरकार को ये अधिकार देती है, पर पिछले कुछ सालों में इसके दुरुपयोग के कितने ही मामले सामने आ चुके हैं। सच कहूँ तो, ये ‘बड़े भाई’ वाली स्थिति कब से चल रही थी!

कोर्ट ने क्या कहा – सीधे शब्दों में

अब कोर्ट की बात सुनिए – उन्होंने तो एकदम स्पष्ट भाषा में कह दिया! न्यायमूर्तियों ने कहा कि बिना मजबूत कारण के फोन टैपिंग सिर्फ privacy का उल्लंघन नहीं, बल्कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिले ‘जीने के अधिकार’ पर भी चोट है। और तो और, कोर्ट ने सरकार को सख्त हिदायत दी कि वो सिर्फ गंभीर public threat या real emergency situation में ही ये अधिकार इस्तेमाल कर सकती है। जज साहब ने तो इस मामले में सरकार के आदेश को ही असंवैधानिक ठहरा दिया। साथ ही उन्होंने फोन टैपिंग के लिए नए guidelines बनाने की सलाह भी दी। एकदम सटीक!

लोग क्या कह रहे हैं?

अब इस फैसले पर प्रतिक्रियाएँ तो आनी ही थीं। human rights activists तो मानो झूम ही रहे हैं – उनके लिए ये privacy की बड़ी जीत है। वहीं सरकारी वकीलों का कहना है कि ये फैसला crime control में रोड़ा अटकाएगा। आम जनता की राय? वो तो दो धड़ों में बंटी हुई है। कुछ लोग इसे personal freedom की दिशा में अच्छा कदम मान रहे हैं, तो कुछ को डर है कि कहीं ये criminals को तो नहीं बढ़ावा देगा? सच कहूँ तो, दोनों पक्षों की बात में दम है।

आगे क्या होगा?

अब सवाल यह है कि आगे का रास्ता क्या होगा? विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार supreme court में appeal कर सकती है। हो सकता है फोन टैपिंग के लिए नए नियम बनें जो दुरुपयोग रोक सकें। पर crime investigation में ये फैसला पुलिस के लिए सिरदर्द बन सकता है – अब उन्हें हर टैपिंग के लिए मजबूत कारण दिखाने होंगे। पर एक बड़ी बात – ये फैसला future में right to privacy से जुड़े मामलों में एक benchmark की तरह इस्तेमाल होगा। digital privacy की लड़ाई में ये एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

सच कहूँ तो, ये फैसला government surveillance और civil rights के बीच एक बैलेंस बनाने की कोशिश है। ये सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाले कल के लिए एक मिसाल कायम करता है। और हाँ, अब से कोई आपका फोन टैप करेगा तो आपके पास सवाल पूछने का पूरा हक होगा – यही तो है असली बात!

यह भी पढ़ें:

HC का फैसला और आपका फोन – क्या सरकार अब आपकी बातचीत सुन नहीं पाएगी?

कोर्ट ने सरकार के हाथ क्यों काट दिए?

देखिए, HC ने एक बड़ा फैसला सुना दिया है। अब सरकार बस ऐसे ही किसी के भी फोन को टैप नहीं कर सकती। मतलब यह कि अगर कोई ठोस वजह नहीं है, तो आपकी प्राइवेसी को कोई छेड़ नहीं सकता। एक तरह से यह हम सभी के लिए एक सुरक्षा कवच है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पूरी तरह से बैन है? चलिए समझते हैं…

क्या अब सच में कोई टैपिंग नहीं होगी?

अरे नहीं भई! HC भी तो समझदार है। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मामलों में तो सरकार को यह अधिकार मिला ही रहेगा। पर अब एक पेंच है – proper approval लेना होगा। यानी बिना कागजी कार्रवाई के अब कोई भी आपके फोन पर नजर नहीं डाल सकता। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे बिना वारंट के पुलिस आपके घर में नहीं घुस सकती।

अगर सरकार नियम तोड़े तो?

तो फिर मामला गरम हो जाएगा! HC ने साफ कहा है कि बिना वजह टैपिंग करना अब कोर्ट की अवमानना होगी। और यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। इसकी सजा? कानूनी कार्रवाई हो सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो अब सरकार को भी अपनी हद मालूम रखनी होगी।

पुलिस की जांच पर क्या असर पड़ेगा?

सच कहूं तो थोड़ा असर तो पड़ेगा ही। कुछ केसों में पुलिस को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती है। लेकिन यह फैसला हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए है ना? वैसे भी, जरूरी मामलों में तो approval लेकर टैपिंग की जा सकती है। बस अब थोड़ी ज्यादा पारदर्शिता होगी। और यह बुरी बात तो है नहीं, है ना?

एक बात और – यह फैसला सिर्फ कानूनी बदलाव नहीं है। यह हमारे समाज के सोचने के तरीके में बदलाव की शुरुआत है। थोड़ा सोचिए… क्या सच में हमें अपनी प्राइवेसी के लिए लड़ना चाहिए? मेरा जवाब – बिल्कुल!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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