अगला दलाई लामा कौन? ‘स्वर्ण कलश’ बनाम तिब्बती परंपरा – और चीन बीच में क्यों खड़ा है?
मित्रों, 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो अगले साल 90 के हो जाएंगे। अब सोचिए – जब आपके दादाजी 90 के होते हैं तो घर में उत्तराधिकारी की चर्चा शुरू हो जाती है न? यहां तो बात सिर्फ एक परिवार की नहीं, पूरे तिब्बती बौद्ध समुदाय की है। लेकिन समस्या ये है कि चीन इस पारिवारिक मामले में अपनी दखलंदाजी कर रहा है। सुनने में अजीब लगता है न? पर असल में यह एक गंभीर राजनीतिक संकट है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। दलाई लामा का चुनाव कभी भी ‘सामान्य’ नहीं रहा। यह तो वैसा ही है जैसे कोई दिव्य प्रक्रिया – पिछले लामा के संकेत, सपने, और फिर वरिष्ठ लामाओं की खोज। लेकिन 1995 में चीन ने पंचेन लामा के मामले में पहली बार इस पवित्र प्रक्रिया में छेड़छाड़ की थी। उनका ‘Golden Urn’ वाला तरीका? बिल्कुल वैसा ही जैसे कोई परीक्षा में नकल करवाए। सच कहूं तो उस वक्त से ही तिब्बती समुदाय का गुस्सा कम नहीं हुआ है।
अब हालात और दिलचस्प हो गए हैं। दलाई लामा ने तो यहां तक कह दिया कि अगला लामा भारत में पैदा हो सकता है! सुनकर चीन की क्या हालत हुई होगी, आप समझ सकते हैं। उनका तुरंत जवाब आया – “हमारी अनुमति के बिना कुछ नहीं होगा।” अरे भई, ये तो वैसा ही है जैसे कोई शादी में बिन बुलाए मेहमान आकर मेनू बदलने लगे। अंतरराष्ट्रीय Buddhist organizations तो इस पर आगबबूला हैं।
देखिए, मामला साफ है – एक तरफ तिब्बती परंपरा जो सैकड़ों साल पुरानी है, दूसरी तरफ चीन का राजनीतिक दखल। दलाई लामा का कार्यालय कहता है “हमारी मान्यताओं का सम्मान करो”, चीन कहता है “हमारे कानून सर्वोपरि हैं”। और बीच में फंसा है तिब्बती संस्कृति का भविष्य। क्या आपको नहीं लगता कि यह सिर्फ एक धार्मिक नेता का चुनाव नहीं, बल्कि एक पूरी सभ्यता की आजादी का सवाल है?
तो अब क्या? अगर दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी खुद चुनते हैं (जो उनका पूरा अधिकार है), तो चीन नाराज होगा। और अगर चीन अपना ‘Golden Urn’ थोपता है, तो पूरा तिब्बती समुदाय। एकदम धमाकेदार स्थिति। भारत और अमेरिका जैसे देशों को भी इस मामले में आगे आना पड़ सकता है। सच तो ये है कि यह लड़ाई सिर्फ एक आध्यात्मिक नेता के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो धार्मिक स्वतंत्रता में विश्वास रखता है।
क्या आपको नहीं लगता कि कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होनी चाहिए? खैर, अभी तो यह सिलसिला जारी रहेगा। हम सबकी निगाहें अब दलाई लामा के अगले बयान पर होंगी। क्योंकि यह फैसला सिर्फ तिब्बत का नहीं, पूरी मानवता के लिए एक उदाहरण बनेगा।
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अगला दलाई लामा कौन होगा? यह सवाल सिर्फ तिब्बत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है। लेकिन असल मुद्दा यह है कि इस चुनाव को लेकर स्वर्ण कलश और पारंपरिक विधि के बीच क्या सही है? और फिर चीन की दखलंदाजी तो है ही। सच कहूं तो, यह सिर्फ धार्मिक स्वायत्तता का सवाल नहीं रह गया है – यह तो एक बड़ा राजनीतिक खेल बन चुका है।
तिब्बती बौद्ध समुदाय के लिए यह कितना गंभीर मामला है, यह तो आप समझ ही रहे होंगे। पर क्या आप जानते हैं कि इसका असर सिर्फ तिब्बत तक सीमित नहीं रहेगा? देखा जाए तो, इसका नतीजा पूरी दुनिया के लिए मायने रखेगा। थोड़ा सोचिए – जब धर्म और राजनीति एक साथ आ जाएं, तो क्या होता है? बिल्कुल… यही तो चल रहा है।
(Note: I’ve kept the text open-ended as per the original, while making it more conversational. I’ve added rhetorical questions, broken the flow with shorter sentences, and used phrases like “सच कहूं तो” and “देखा जाए तो” to make it sound more human. The vocabulary is kept simple and relatable, with a mix of Hindi and English words as instructed.)
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com