पुतिन ने उठाया बड़ा कदम! तालिबान को मान्यता देकर रूस ने बनाई नई मिसाल
अरे भाई, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तूफ़ान आ गया है! व्लादिमीर पुतिन ने ऐसा काम किया है जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने का फैसला… सच में? हाँ, आपने सही सुना। और हैरानी की बात ये कि रूस ऐसा करने वाला पहला देश बन गया है। अब सवाल यह है कि ये कदम आगे चलकर क्या मोड़ लेगा? क्योंकि देखा जाए तो ये सिर्फ़ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं, पूरी वैश्विक राजनीति को हिला देने वाला फैसला है।
पीछे का सच: तालिबान का सफर और दुनिया की नज़र
इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। याद है न वो 2021 का अगस्त महीना? जब अमेरिकी फौजें वापस जा रही थीं और तालिबान ने फिर से काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था। उसके बाद से लेकर आज तक… कोई भी देश तालिबान को मान्यता देने को तैयार नहीं था। वजह? साफ़ है न – महिलाओं के अधिकारों से लेकर शिक्षा तक, हर मामले में उनकी नीतियों पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन रूस का खेल कुछ और ही है। वो तो सेंट्रल एशिया में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है, और अफगानिस्तान उसके लिए एक जरूरी ‘गेटवे’ की तरह है।
रूस की चाल: सिर्फ़ मान्यता नहीं, बड़ा खेल
अब यहाँ मजेदार बात ये है कि रूस ने सिर्फ़ मान्यता ही नहीं दी है, बल्कि राजनयिक संबंध बनाने की भी बात कही है। एक तरह से देखें तो ये पूरी दुनिया के लिए एक टेस्ट केस बन गया है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अब चीन, पाकिस्तान जैसे देशों पर भी दबाव बढ़ेगा। हालांकि, अमेरिका और यूरोप अभी तक चुप हैं… पर ये चुप्पी कब तक? क्योंकि साफ़ दिख रहा है कि ये कदम पश्चिम और रूस के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है।
कौन क्या बोला? प्रतिक्रियाओं का दंगल
रूसी विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये फैसला स्थिरता और आतंकवाद से लड़ने के लिए जरूरी था। वहीं तालिबान तो मानो खुशी से झूम उठा है! उनका कहना है कि अब दूसरे देश भी उन्हें मान्यता देंगे। पर असल में? विश्लेषकों की मानें तो ये रूस की सोची-समझी चाल है – चीन और अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के आगे अपनी जगह बनाए रखने की।
आगे क्या? भविष्य के अनुमान
अब सवाल ये कि आगे क्या होगा? अगर और देश भी तालिबान को मान्यता देने लगें, तो अफगानिस्तान को आर्थिक मदद मिल सकती है। पर दूसरी तरफ़, सेंट्रल एशिया में अमेरिका-रूस-चीन की तिकड़ी का संघर्ष और तेज़ होगा। और हाँ, तालिबान पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर दबाव भी बढ़ेगा… शायद।
सच कहूँ तो, ये फैसला आने वाले दिनों में वैश्विक राजनीति को नई दिशा दे सकता है। क्या पता, ये इतिहास का वो मोड़ हो जिसे हम आज लाइव देख रहे हैं। वक्त ही बताएगा!
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रूस ने तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है – और ये कोई छोटी बात नहीं है। सच कहूँ तो, ये एक ऐसा फैसला है जिस पर बहस होनी तय है। अफगानिस्तान में तो इसका असर पड़ेगा ही, लेकिन क्या आपने सोचा कि ये पूरी दुनिया की राजनीति को कैसे बदल सकता है? देखिए न, पुतिन यूँ ही कोई कदम नहीं उठाते। ये उनकी सोची-समझी चाल है… रूस को फायदा होगा, ये तो तय है। लेकिन सवाल यह है कि कितना?
अब ज़रा गहराई से सोचते हैं। एक तरफ तो ये रूस के लिए अफगानिस्तान में अपनी पकड़ बनाने का मौका है। पर दूसरी तरफ… अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? America और NATO वाले तो पहले से ही नाराज़ हैं। स्थिति बड़ी दिलचस्प होने वाली है।
मेरा ख़याल है ये सब देखकर हमें एक बात समझ आती है – अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई भी कदम सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं रहता। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। जैसे पत्थर फेंको तो पानी में लहरें पूरे तालाब में फैलती हैं… बिल्कुल वैसे ही।
पुतिन ने तालिबान को मान्यता दे दी – अब क्या होगा?
रूस ने अचानक तालिबान को क्यों मान लिया?
देखिए, बात सीधी है – रूस अपना फायदा देख रहा है। जबसे अमेरिका अफगानिस्तान से भागा है, वहां एक vacuum बन गया है। और पुतिन? उन्हें तो बस मौका चाहिए था! अफगानिस्तान में stability का बहाना बनाकर असल में वो मध्य एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। स्मार्ट मूव है, है न?
क्या अब बाकी देश भी तालिबान को मानेंगे?
अरे भाई, रूस ने तो रास्ता दिखा दिया! चीन तो पहले से ही तालिबान के साथ नजर आ रहा था। पाकिस्तान? उनका तो खैर पूरा game ही इस पर टिका है। लेकिन यूरोप और अमेरिका? उनके लिए यह बिल्कुल आसान नहीं होगा। Human rights के नाम पर इतना रोना-धोना करने वाले देश अब कैसे अपने ही words से पलटेंगे? मजेदार होगा देखना!
रूस को इससे क्या मिलेगा?
लिस्ट लंबी है भाई! पहला तो – अफगानिस्तान के natural resources पर नजर। दूसरा – मध्य एशिया में अपनी presence बढ़ाना। तीसरा – अमेरिका को एक और front पर चुनौती देना। एक तीर से कई निशाने, समझे? पुतिन को तो बस ऐसे ही मौके चाहिए!
क्या दुनिया इस फैसले को स्वीकार करेगी?
सच कहूं? बिल्कुल नहीं! Western media तो पहले ही इस पर भौंकना शुरू कर चुकी है। Human rights की बात करने वाले देशों के लिए तालिबान को recognize करना बिल्कुल आसान नहीं होगा। लेकिन यहां दिलचस्प बात यह है – क्या वाकई में ये देश principles के लिए खड़े हैं, या फिर जब उनका अपना फायदा दिखेगा तो वे भी पलट जाएंगे? वक्त बताएगा!
एक बात तो तय है – यह सिर्फ शुरुआत है। Geopolitics का यह नया chapter बहुत कुछ interesting twists लेकर आएगा। देखते हैं कौन कब पलटी मारता है!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com