पाकिस्तानी आर्मी का दावा: “भारत से अकेले लड़ी” – सच या सियासत?
अरे भाई, क्या आपने पाकिस्तानी सेना के ताजा दावे पर नजर डाली? वो कह रहे हैं कि उन्होंने भारत के खिलाफ पिछली लड़ाइयाँ “अकेले” लड़ी थीं। सुनने में तो बड़ा गर्व महसूस होता है, है ना? लेकिन फिर पाकिस्तान के ही पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कह दिया कि “समर्थन मिला था, पर…”। अब ये ‘पर’ वाला हिस्सा ही तो पूरा खेल बिगाड़ देता है! सरकार ने तुरंत इनकार कर दिया, और बस… नया विवाद तैयार। ये सिर्फ भारत-पाक तनाव की कहानी नहीं, बल्कि पाकिस्तान की उस दोहरी नीति का नंगा नाच है जो अक्सर उनके ही मुँह से निकल जाती है।
पीछे की कहानी: कश्मीर से लेकर बालाकोट तक
देखिए, भारत-पाकिस्तान का झगड़ा कोई नया नहीं। कश्मीर तो जैसे रगड़ता ही रहता है। 2019 की बालाकोट स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद तो तनाव और बढ़ा। अब सवाल यह है कि जब पाकिस्तान हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ समर्थन माँगता रहा है, तो ये “अकेले लड़े” वाला दावा कहाँ से आया? और सबसे मजेदार बात – चीन और तुर्की तो पाकिस्तान के पुराने दोस्त हैं। चीन तो JF-17 fighter jets जैसे हथियार देकर उनकी सेना को मजबूत कर रहा है। फिर ये “अकेले” वाली बात कैसे?
एक तरफ तो सेना का दावा, दूसरी तरफ चीन से मिल रही मदद। कुछ तो गड़बड़ है, है ना?
क्या हुआ असल में? बयानबाजी का खेल
तो कहानी कुछ ऐसी है – पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने दावा किया “बिना किसी बाहरी मदद के लड़े”। बस कुछ दिन बाद, आसिफ अली जरदारी ने इंटरव्यू में कह दिया कि “तुर्की और चीन से मदद मिली, पर छुपाई गई”। अरे भई, ये क्या बवाल खड़ा कर दिया! सरकार तुरंत बोल पड़ी – “ये गलत है”। भारत की तरफ से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, पर मीडिया और एक्सपर्ट्स ने तो जैसे पाकिस्तान को घेर ही लिया।
किसने क्या कहा? प्रतिक्रियाओं का अंदाज़
इस पूरे मामले में सबसे मजेदार है अलग-अलग पक्षों की प्रतिक्रियाएँ। पाकिस्तानी सरकार: “हमने कभी मदद नहीं माँगी”। जरदारी साहब: “मिली थी, पर बताना ठीक नहीं था”। भारतीय विश्लेषकों का कहना है कि ये पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति का खेल है। सच तो ये है कि चीन-तुर्की का समर्थन तो सबको पता है। कुछ लोग तो ये भी कह रहे हैं कि शायद सेना और सरकार के बीच तनाव की ये एक नई झलक है।
अब आगे क्या? राजनीति के नए दाँव
अब ये मामला कहाँ जाएगा? कई संभावनाएँ हैं:
– पाकिस्तान में सेना-सरकार के बीच तनाव बढ़ सकता है
– भारत FATF और UN जैसे मंचों पर इसका फायदा उठा सकता है
– चीन-तुर्की की प्रतिक्रिया देखने लायक होगी (अगर वो जरदारी के बयान की पुष्टि करें तो?)
– क्षेत्रीय सुरक्षा पर नई बहस छिड़ सकती है
एक बात तो तय है – ये विवाद जल्द शांत होने वाला नहीं।
आखिरी बात: ये पूरा मामला पाकिस्तान की उस दोहरी नीति को उजागर करता है जिसमें वो खुद ही उलझ जाता है। सेना कहती है “अकेले लड़े”, पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं “मदद मिली पर छुपाई”। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबकी नजर इस पर है। और हाँ, आने वाले दिनों में ये और भी दिलचस्प होने वाला है। क्या आपको नहीं लगता?
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पाकिस्तानी आर्मी के दावों और आसिफ अली के बयानों को सुनकर एक बात तो साफ है – यहाँ इतिहास को चाय की तरह पकाया जा रहा है, जिसमें तथ्यों की पत्तियाँ छननी से गायब हो गई हैं। है न मजेदार बात? अब सवाल यह है कि जब पाकिस्तान खुद को भारत के खिलाफ “अकेला” बताता है, तो क्या वाकई ऐसा है? देखिए, मैं तो यही कहूँगा कि ये दावे उस बच्चे की तरह हैं जो हारने के बाद रोते हुए कहता है – “मैं तो अकेला था!” जबकि पूरी टीम उसके साथ खेल रही थी।
असल में, अगर आप इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएँगे कि अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सहायता के तथ्यों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया। मतलब साफ है – जब सच आपके मुताबिक न हो, तो उसे ही ignore कर दो! लेकिन ऐसा करके क्या वाकई कोई अपनी credibility बचा पाता है? शायद नहीं।
इस लेख का मकसद आपको एक संतुलित नज़रिया देना है। वैसे भी, आजकल तो propaganda और facts में फर्क करना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना चाय में दूध और पानी को अलग करना। पर कोशिश तो की जा सकती है न?
… [शेष पाठ जारी रखें]
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com