हाउस स्टाइल: हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत कैसे लाया जाए? प्रत्यर्पण संधि नहीं होने के बावजूद शहबाज सरकार पर दबाव!
देखिए, मामला फिर गरमा गया है। भारत सरकार ने पाकिस्तान से हाफिज सईद (Lashkar-e-Taiba प्रमुख) और मसूद अजहर (Jaish-e-Mohammed प्रमुख) को सौंपने की मांग फिर दोहराई है। और ये सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब पाकिस्तान की नई शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही अंतरराष्ट्रीय दबावों से जूझ रही है। सबसे दिलचस्प बात? भारत और पाकिस्तान के बीच कोई extradition treaty नहीं है, फिर भी ये मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियां बटोर रहा है। क्यों? इसका जवाब थोड़ा आगे है…
पहले समझते हैं – ये दोनों कौन हैं और क्यों इतने खास?
हाफिज सईद को तो आप जानते ही होंगे – 26/11 मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड, जिसे अमेरिका ने global terrorist घोषित किया है। पाकिस्तान में इसे कई बार गिरफ्तार किया गया, मगर हर बार किसी न किसी तरह छूट जाता है। मजे की बात ये कि अदालतों ने उसे कुछ मामलों में सजा भी सुना दी, लेकिन भारत को सौंपने से साफ मना कर दिया।
वहीं मसूद अजहर – 2019 के पुलवामा हमले और 2001 के संसद हमले का मुख्य आरोपी। United Nations ने इसे प्रतिबंधित तो कर दिया, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से बस एक ही रटा-रटाया जवाब: “वो नज़रबंद है”। हालांकि intelligence reports कुछ और ही कहानी बयां करती हैं।
अब सवाल ये उठता है – जब दोनों देशों के बीच कोई extradition treaty ही नहीं है, तो फिर भारत कैसे इन्हें ला पाएगा?
अंतरराष्ट्रीय दबाव: भारत का चुपके से चल रहा गेम
यहां भारत ने बड़ी चालाकी से काम लिया है। United Nations और FATF (Financial Action Task Force) जैसे मंचों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा रहा है। अमेरिका और European Union भी अब इस मामले में आवाज उठा रहे हैं।
पर एक पेंच है – पाकिस्तान की दोहरी नीति। एक तरफ तो वो इन आतंकवादियों को सजा दे देता है (कागजों पर), लेकिन भारत को सौंपने की बात आते ही पलट जाता है। ऐसा लगता है जैसे वो अपने ही बनाए नियमों में उलझ गया हो।
क्या कह रहे हैं दोनों देश?
भारत सरकार का सीधा आरोप – “पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ईमानदार नहीं”। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया – “हम इस लड़ाई को हर मंच पर लड़ेंगे।”
वहीं पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का जवाब – “हम अपने कानूनों के तहत ही कार्रवाई करेंगे।” यानी साफ मना।
सुरक्षा विशेषज्ञों की राय? जब extradition treaty नहीं है, तो भारत को diplomatic और strategic रास्तों पर ही चलना होगा। बस, ये रास्ता लंबा हो सकता है।
तो आगे क्या? क्या कोई रास्ता है?
FATF की ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान अभी भी फंसा हुआ है – ये भारत के लिए एक बड़ा हथियार हो सकता है। विकल्प? United Nations Security Council (UNSC) या International Court of Justice (ICJ) में मामला उठाना। पर यहां एक दिक्कत – इन सबके लिए पाकिस्तान के सहयोग की जरूरत पड़ेगी।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो शहबाज शरीफ सरकार अगर अमेरिका से रिश्ते सुधारना चाहती है, तो उसे इन आतंकवादियों के मामले में कुछ ठोस करना ही होगा।
अंत में बस इतना – हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत लाना आसान नहीं, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। सही कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव से ये हो सकता है। पर ये सिर्फ दो लोगों को सजा दिलाने की बात नहीं, बल्कि पाकिस्तान के सिस्टमेटिक आतंकवाद को एक सख्त चेतावनी देने का मौका है।
क्या पाकिस्तान इस बार झुकेगा? वक्त बताएगा।
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हाफिज सईद और मसूद अजहर का प्रत्यर्पण – सच्चाई, चुनौतियाँ और वो सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं
1. भारत इन दोनों आतंकियों को वापस ला पाएगा? असलियत क्या है?
देखिए, सीधी बात यह है कि भारत के पास Diplomatic pressure, International alliances (UN और FATF जैसे), और Legal routes (इंटरपोल वगैरह) के विकल्प तो हैं। लेकिन यहाँ दिक्कत क्या है? पाकिस्तान के साथ हमारी कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है। और भाई, जब सामने वाला ही cooperate न करे, तो game थोड़ा tough हो जाता है। सच कहूँ तो यह उतना ही आसान है जितना कि ऊँट को सुई के नाके से निकालना!
2. संधि नहीं है तो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें?
अरे नहीं! Political और Economic pressure तो बनाया ही जा सकता है। Global platforms पर पाकिस्तान को घेरने की कोशिशें तो चल ही रही हैं। पर सवाल यह है कि क्या यह काफी है? मेरा मानना है कि अकेले pressure से काम नहीं चलेगा। हमें smarter strategies की ज़रूरत है। जैसे कि…
3. शहबाज सरकार के सामने हमारे पास क्या-क्या cards हैं?
अभी तक भारत ने Terror funding और Cross-border terrorism के मामले में पाकिस्तान को International organizations के सामने बार-बार expose किया है। FATF को grey list में डालने की मांग भी एक बड़ा हथियार है। पर क्या आपको नहीं लगता कि पाकिस्तान को इन सबकी अब आदत सी हो गई है? शायद हमें कुछ नए तरीके सोचने होंगे।
4. Legal रास्ते? क्या सच में कोई उम्मीद है?
सुनिए, technically तो इंटरपोल और UN sanctions के जरिए कुछ हो सकता है। पर यहाँ मजाक यह है कि Legal routes तभी काम करेंगे जब पाकिस्तान cooperate करे। और हम सब जानते हैं कि उनका cooperate करने का track record कैसा है! ईमानदारी से कहूँ तो, Diplomatic channels ही ज्यादा असरदार हो सकते हैं। पर उनमें भी patience की बहुत ज़रूरत है।
एक बात और – यह सब लिखते हुए मुझे लगता है कि… कभी-कभी Legal और Diplomatic तरीकों से ज्यादा important होता है public opinion। शायद हमें वहाँ भी काम करना चाहिए। आपको क्या लगता है?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com