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तुर्की के खलीफा का BRICS सपना धराशायी! भारत-चीन ने क्यों बंद किए दरवाजे? पाकिस्तानी दोस्त एर्दोगन से नाराज़!

तुर्की का BRICS सपना धरा का धर रह गया! भारत-चीन ने क्यों किया ‘ना’?

अरे भाई, क्या बताऊं… एर्दोगन साहब का BRICS में घुसने का ख्वाब अचानक ही चकनाचूर हो गया है। और सबसे मजेदार बात? ये कामयाबी भारत और चीन ने मिलकर हासिल की है! है ना आश्चर्य की बात? असल में, BRICS में किसी नए देश को एंट्री देने के लिए सभी सदस्यों की हामी चाहिए होती है – और भारत ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल कर दिया। बस, गेम ओवर!

अब सवाल यह है कि तुर्की को BRICS में क्यों नहीं आने दिया गया? देखिए, ये कोई एक दिन की कहानी नहीं है। तुर्की तो सालों से इस ग्रुप में घुसने की कोशिश कर रहा था। पर भारत और तुर्की के बीच कश्मीर मसले पर जो तनातनी चल रही है, वो तो सब जानते हैं। तुर्की हमेशा पाकिस्तान का साथ देता आया है – और यही उसकी सबसे बड़ी भूल रही। भारत सरकार को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई, और उन्होंने BRICS में तुर्की का एंट्री कार्ड ही रिजेक्ट कर दिया।

लेकिन यहाँ ट्विस्ट ये है कि चीन ने भी इस बार भारत का साथ दिया! अरे भई, ये तो वही चीन है जो हमेशा पाकिस्तान और तुर्की का चहेता रहा है। पर इस बार उसने अपने फायदे को देखते हुए अलग रास्ता चुना। ब्राजील के एक अधिकारी ने तो इस पूरे मामले को “कूटनीतिक चेकमेट” तक कह डाला! और पाकिस्तान? वो तो फूट-फूट कर रो पड़ा। उसने BRICS के इस फैसले को “अन्याय” बताया है। हाँ, जैसे उन्हें न्याय की परिभाषा आती हो!

अब सबसे मजेदार सवाल – आगे क्या? मेरे हिसाब से तो एर्दोगन अब OIC या G20 जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भारत के खिलाफ जहर उगलेंगे। ये तो होना ही है। पर असली मसला ये है कि BRICS का विस्तार तो जारी रहेगा, लेकिन अब हर नए देश के लिए ये टेस्ट और भी कठिन हो जाएगा। और हाँ, भारत-तुर्की के बीच जो ट्रेड और डिफेंस डील्स चल रही हैं, उन पर भी असर पड़ सकता है। बड़ा दिलचस्प मोड़ आने वाला है!

सच कहूँ तो, ये पूरा मामला साबित करता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी स्थायी नहीं होती – फायदे होते हैं। और BRICS का ये फैसला तुर्की-पाकिस्तान-भारत के जटिल रिश्तों को एक बार फिर उजागर कर गया है। अब देखना ये है कि एर्दोगन इस झटके के बाद क्या चाल चलते हैं। क्या वो BRICS के दरवाजे पर दोबारा दस्तक दे पाएंगे? मेरा अनुमान? अगले कुछ सालों तक तो नहीं!

[एक छोटी सी बात] – अगर आपको लगता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति उबाऊ होती है, तो इस कहानी को देखिए। यहाँ हर दिन नया ड्रामा, नया ट्विस्ट! क्या पता अगली बार कौन किसके साथ खड़ा मिल जाए… है ना मजेदार?

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तुर्की के BRICS में शामिल होने का सपना… और धड़ाम! भारत और चीन ने कंधे से कंधा मिलाकर एर्दोगन के इस ख्वाब को चकनाचूर कर दिया। सच कहूं तो, यह तुर्की के लिए बिल्कुल वैसा ही झटका था जैसे किसी को मुंह में पानी भरके बर्फ़ गोली खाने का मौका मिले और अचानक वो गोली हाथ से छूट जाए।

लेकिन सबसे मजेदार बात? पाकिस्तान का अपने ‘यार-ए-ग़र’ तुर्की से नाराज़ होना! अब आप ही बताइये, जब दोस्त ही दोस्त को कोसने लगे तो मामला कितना ज़्यादा मसालेदार हो जाता है?

असल में, इस पूरे घटनाक्रम से BRICS की असली रणनीति साफ़ झलकती है। देखा जाए तो, यह कोई आम संगठन नहीं जहां कोई भी आकर शामिल हो जाए। सदस्य देशों की अपनी प्राथमिकताएं हैं… और अपने नियम।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यह नया मोड़ क्या संकेत देता है? वो तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि…

तुर्की के BRICS सपने पर सवाल? जानिए पूरी कहानी

तुर्की का BRICS ड्रीम क्यों हुआ चकनाचूर?

देखिए, मामला सीधा है। भारत और चीन ने मिलकर तुर्की का प्रस्ताव ठुकरा दिया। कारण? तुर्की का पाकिस्तान के साथ बहुत प्यार-मोहब्बत और कुछ ऐसी नीतियाँ जो BRICS देशों को पचीं नहीं। सच कहूँ तो, यह उतना ही हैरानी की बात नहीं जितना लगता है।

एर्दोगन का गेम प्लान कैसे फेल हुआ?

असल में BRICS में नया मेम्बर जोड़ना कोई रेस्टोरेंट में टेबल बुक करने जैसा तो है नहीं! हर मौजूदा सदस्य की हाँ जरूरी है। और भारत-चीन ने साफ़-साफ़ ‘ना’ बोल दी। नतीजा? तुर्की का सपना… धड़ाम!

एक दिलचस्प बात – क्या आप जानते हैं BRICS में वीटो पावर नहीं होती? लेकिन सहमति जरूरी है। थोड़ा अजीब सिस्टम है, है न?

पाकिस्तान को क्यों लगी ठेस?

अरे भई, पाकिस्तान तो खुद बरसों से BRICS का टिकट कटवा रहा है। अब जब उसका ‘यार-दोस्त’ तुर्की भी बाहर का रास्ता देखने लगा, तो उनकी नाराजगी समझ आती है। मानो दोस्त के साथ पार्टी में एंट्री न मिलने जैसा फील हो रहा होगा!

क्या तुर्की को मिलेगा दूसरा मौका?

ईमानदारी से कहूँ तो… मुश्किल। एर्दोगन की इच्छा तो साफ़ है, पर जब तक तुर्की:

  • पाकिस्तान के साथ रिश्ते में बैलेंस नहीं लाएगा
  • चीन को लेकर अपनी स्ट्रैटेजी क्लियर नहीं करेगा

तब तक भारत जैसे देशों का सपोर्ट मिलना नामुमकिन सा लगता है। पर राजनीति में कुछ भी तो हो सकता है, है न?

फिलहाल तुर्की के लिए BRICS का दरवाज़ा… बंद। लेकिन कल क्या होगा? वही तो राजनीति का मजा है!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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