“नितिन गडकरी का दिल्ली पर चौंकाने वाला बयान: ‘जब यहाँ आता हूँ, सोचने लगता हूँ कि कब जाऊँगा'”

नितिन गडकरी ने फिर दिल्ली को लेकर कह दी बड़ी बात – ‘आते ही जाने का मन करता है!’

अरे भई, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो हर बार कुछ न कुछ ऐसा बोल देते हैं जो सुर्खियाँ बटोर लेता है। इस बार उन्होंने दिल्ली की हवा पर ऐसी टिप्पणी की कि सुनकर ही साँस फूलने लगी! ‘एक पेड़ मां के नाम’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “यार, जब भी दिल्ली आता हूँ, बस यही सोचता हूँ कि कब यहाँ से निकलूँगा।” और सच कहूँ तो, उनकी ये बात दिल्लीवालों के दिल की आवाज़ है। कौन चाहेगा ऐसी जहरीली हवा में साँस लेना जो धीरे-धीरे ज़िंदगी को छोटा कर रही है?

असल में देखा जाए तो दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण कोई नई बात नहीं। साल दर साल यही कहानी – सर्दियाँ आते ही AQI (Air Quality Index) आसमान छूने लगता है। पराली, गाड़ियों का धुआँ, फैक्ट्रियों का कचरा… सब मिलकर क्या बना देते हैं? एक जहरीला कॉकटेल जिसे हम सब मजबूरी में पी रहे हैं। गडकरी जी तो लंबे समय से इलेक्ट्रिक वाहनों और बायो-फ्यूल की बात कर रहे हैं। शायद वक्त आ गया है कि हम भी गंभीरता से सोचें।

मजेदार बात यह है कि गडकरी ने जो कहा, वो तो हर दिल्लीवासी रोज सोचता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ बयान देने से काम चलेगा? सरकार की तरफ से तमाम योजनाएँ तो चल रही हैं – इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी, मेट्रो का विस्तार, पेड़ लगाने के अभियान। पर क्या ये काफी है? ईमानदारी से कहूँ तो… शायद नहीं।

अब देखिए न, इस मामले में हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है। पर्यावरणविद् कह रहे हैं – “सही बात है, लेकिन कार्रवाई कहाँ?” विपक्ष वालों को तो मौका मिल गया सरकार पर हमला बोलने का। और आम आदमी? वो तो बस इस उलझन में है कि क्या सच में कुछ बदलेगा या ये सब सिर्फ चुनावी जुमले हैं।

एक तरफ तो यह बयान अच्छा है क्योंकि इसने प्रदूषण की बहस को फिर से जिंदा कर दिया है। लेकिन दूसरी तरफ… अरे भाई, बहस से क्या होगा? अब तो काम चाहिए! क्या पता, शायद इस बार सच में कोई ठोस कदम उठे। वरना… वैसे भी दिल्लीवालों की जिंदगी के 7-8 साल तो प्रदूषण ने पहले ही खा लिए हैं।

सच पूछो तो गडकरी जी ने जो कहा, वो हम सबकी आवाज थी। पर अब देखना यह है कि यह आवाज सिर्फ शोर बनकर रह जाती है या फिर कोई ऐसा समाधान निकलता है जिससे हमारे बच्चों को कम से कम साफ हवा में साँस लेने का मौका मिले। वरना… जैसा चल रहा है, वैसे तो दिल्ली जल्द ही गैस चैम्बर बन जाएगी। सच कहूँ तो!

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नितिन गडकरी का यह बयान, दिल्ली के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है। सच कहूँ तो, यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि हमारे सामने एक सख्त सवाल खड़ा कर देता है – क्या हम वाकई ऐसे शहर बना रहे हैं जहाँ रहना मुश्किल होता जा रहा है?

देखिए, प्रदूषण, ट्रैफिक जाम… ये सब तो हम रोज़ भुगत रहे हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या हम इसे ‘महानगरीय जीवन’ का हिस्सा मानकर चुप बैठ जाएँ? गडकरी जी ने जो कहा, वो तो बस आईने में झाँकने जैसा है।

और सच बात तो यह है कि अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले कुछ सालों में स्थिति और भी भयानक हो सकती है। आप खुद सोचिए – रोज़ दो घंटे ट्रैफिक में फँसे रहना, साँस लेने के लिए शुद्ध हवा का मोहताज होना… यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है।

विकास की इस दौड़ में हम कहीं न कहीं अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। गडकरी का बयान शायद एक चेतावनी है – या फिर शायद हमारी आँखें खोलने वाला एक सच। आखिर कब तक?

नितिन गडकरी का वो बयान जिसने दिल्लीवालों को सोचने पर मजबूर कर दिया!

1. भईया, गडकरी साहब ने आखिर क्या कहा दिल्ली के बारे में?

सुनकर हैरान रह जाओगे! नितिन गडकरी ने दिल्ली के बारे में कुछ ऐसा कहा कि सुनने वालों के होश उड़ गए। उनका कहना था – “यहाँ आते ही मन करता है कि कब निकलूँ इस शहर से।” सच कहूँ तो, हम सब जानते हैं ये बात traffic और pollution को लेकर ही होगी। वैसे भी, दिल्ली में रहने वाला हर इंसान रोज़ यही सोचता है न?

2. क्या ये सियासी चाल है या सच्ची बात?

असल में देखा जाए तो… ये तो गडकरी साहब ही बता सकते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि ये उनका personal experience है। वैसे भी, ये कोई नई बात नहीं – infrastructure और environment पर तो वो हमेशा ही सच बोलते आए हैं। राजनीति? हो सकता है। पर सच्चाई? ज़रूर है!

3. गडकरी साहब की नज़र में दिल्ली की कौन-कौनसी समस्याएँ हैं?

एक तरफ तो traffic का वो जानलेवा जाम… दूसरी तरफ सांस लेने लायक हवा तक नहीं! गडकरी साहब शायद इन्हीं दो मुख्य समस्याओं की तरफ इशारा कर रहे हैं। और सुनो, quality of life की बात करें तो… अरे भई, जिंदगी जीने का मज़ा ही कहाँ रह गया है यहाँ?

4. क्या दिल्लीवालों को इस बयान से घबराना चाहिए?

सच पूछो तो… हाँ! जब एक senior minister खुद ऐसा कह रहा है, तो समझ लो बात गंभीर है। ये कोई साधारण complaint नहीं, बल्कि एक तरह का wake-up call है। सरकार के लिए भी और हम आम लोगों के लिए भी। Solution? जल्दी चाहिए वरना… खैर, आप समझदार हैं!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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