ब्रिटेन की सेवाओं पर ब्रेक्जिट का कहर: सिर्फ अफवाह नहीं, आंकड़े बता रहे हैं सच्चाई!
देखिए न, ब्रिटेन के सेवा क्षेत्र की कहानी बड़ी दिलचस्प है। हां, निर्यात बढ़ा है, लेकिन… यह ‘लेकिन’ बहुत बड़ा है। असल में, यह वृद्धि उम्मीदों से काफी पीछे है। मजे की बात यह कि यह कोई कयास नहीं – हाल के आर्थिक डेटा तो यही कहानी बयां कर रहे हैं। ब्रेक्जिट के बाद से ब्रिटेन की services वैश्विक बाजार में वो धाक नहीं जमा पा रही हैं जो पहले थी। और ये मेरा नहीं, नंबर्स का कहना है!
पूरा माजरा क्या है?
जनवरी 2020 में हुआ ब्रेक्जिट (यानी ब्रिटेन का EU से अलग होना) सीधे तौर पर ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के दिल पर वार कर गया। सोचिए, अर्थव्यवस्था का लगभग 80% हिस्सा services sector पर टिका है – finance, education, technology से लेकर professional services तक। ब्रेक्जिट से पहले? EU के साथ trade agreements की वजह से ब्रिटेन की services को 50 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं थी।
पर अब? स्थिति एकदम बदल चुकी है। नए trade rules, work visa की पाबंदियां और regulatory barriers ने ब्रिटिश services के निर्यात को झटका दिया है। सबसे ज्यादा मार professional services को पड़ी है – law firms, consulting और financial services वालों की तो बल्ले-बल्ले हो गई। क्यों? क्योंकि अब EU market में घुसना पहले जितना आसान नहीं रहा।
आंकड़े क्या कहते हैं?
2023 के आर्थिक डेटा तो और भी चौंकाने वाले हैं। ब्रिटेन की service exports में सिर्फ 5% की बढ़त, जबकि economists ने 8% का अनुमान लगाया था। और EU को तो ब्रिटिश services का निर्यात 30% तक गिर गया है! financial services और IT sector तो जैसे धराशायी ही हो गए।
ब्रिटिश सरकार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों के साथ नए trade deals की बातचीत कर रही है, पर अभी तक कुछ ठोस नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि EU market का विकल्प ढूंढने में कई साल लग सकते हैं। सच कहूं तो, यह कोई रातोंरात होने वाली बात नहीं।
क्या कह रहे हैं लोग?
Industry experts की प्रतिक्रिया साफ है। एक senior trade analyst ने तो सीधे कह दिया – “ब्रिटेन को अब EU market के विकल्प तलाशने होंगे, पर यह मुर्गी के दांत निकालने जैसा काम है। global competition के इस दौर में नए markets ढूंढना आसान नहीं।”
वहीं ब्रिटिश finance minister का दावा है कि “हम नई policies पर काम कर रहे हैं जो services sector को मजबूत करेंगी।” लेकिन EU का तो जैसे मूड ही बदल गया है। उनके एक spokesperson ने साफ कहा – “ब्रिटेन अब हमारी priority list में नहीं।” अरे भई, साफ-साफ कह दिया न!
British Chambers of Commerce तो सरकार पर दबाव बना रहे हैं। उनका कहना है कि “SMEs को इस transition period में खासकर documentation और compliance में मदद चाहिए।” और सच में, उनकी बात में दम है।
आगे क्या होगा?
तो अब सवाल यह है – आगे का रास्ता क्या? ब्रिटिश सरकार Asia और America के साथ नए trade agreements पर जोर दे रही है। services sector के professionals के लिए visa rules में ढील की भी चर्चा है। पर economists की मानें तो अगले 2-3 साल तक ब्रिटेन की services को नुकसान होता रहेगा।
कुछ analysts का मानना है कि अगर ब्रिटेन EU के साथ relations सुधार ले, खासकर services trade में, तो स्थिति बेहतर हो सकती है। पर फिलहाल तो ऐसा कोई संकेत नहीं दिख रहा। सच कहूं तो, गंभीर स्थिति है।
तो क्या निष्कर्ष?
एक बात तो तय है – ब्रेक्जिट ने ब्रिटेन की services economy को झकझोर कर रख दिया है। short term में तो नुकसान साफ दिख रहा है। long term में? यह ब्रिटिश सरकार और businesses की रणनीति पर निर्भर करेगा। मेरा मानना है कि बिना मजबूत planning और international cooperation के, ब्रिटेन के लिए अपनी services sector को पटरी पर लाना मुश्किल होगा। बस, देखते हैं आगे क्या होता है!
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ब्रिटेन की सेवाओं पर ब्रेक्जिट का भूचाल: क्या सच में इतना बुरा हाल?
1. ब्रेक्जिट ने ब्रिटेन की सेवाओं को क्या बना दिया?
सच कहूं तो, ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की healthcare, banking और logistics जैसी बेसिक services ही डगमगा गई हैं। EU से अलग होने का मतलब? सप्लाई चेन का बुरा हाल। आपको पता है न कि अब एक साधारण दवा का इम्पोर्ट भी पहले से ज्यादा महंगा हो गया है। और तो और, services की cost तो ऐसे बढ़ी जैसे बिना ब्रेक के गाड़ी चल रही हो!
2. भारतीयों के लिए ब्रेक्जिट: समस्या या मौका?
देखिए, सच्चाई यह है कि वीजा rules अब पहले जैसे नहीं रहे। मेरा एक दोस्त लंदन में IT professional है – उसका work permit renew करवाने में ऐसी खींचतान हुई कि बताने लायक नहीं। पर क्या यह सबके साथ है? नहीं। कुछ लोगों को नए regulations में भी opportunities मिल रही हैं। है न मजेदार बात?
3. ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था: कितना डूबा, कितना तैरा?
एक तरफ तो GDP growth rate लुढ़क रहा है, दूसरी तरफ inflation आसमान छू रहा है। और बड़ी कंपनियों का क्या? वो तो EU countries की ओर भाग रही हैं। पर क्या सच में सब कुछ इतना बुरा है? कुछ experts कहते हैं यह temporary phase है… पर कब तक? यही सवाल है।
4. ब्रेक्जिट के बाद टूरिज्म: क्या सच में इतना बुरा असर?
आंकड़े तो चौंकाने वाले हैं – EU tourists की संख्या में 30% तक की गिरावट! नए visa rules, travel restrictions… समझ आता है न कि hotel और restaurant वालों का business क्यों मंदा पड़ गया है। पर क्या यह पूरी कहानी है? कुछ लोग कहते हैं अब quality tourists आ रहे हैं। सच क्या है? शायद वक्त ही बताएगा।
Source: Financial Times – Global Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com