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IIT से M.Tech, 25 साल का अनुभव और अब IIM की कमान – एक प्रेरणादायक सफर

IIT से M.Tech, 25 साल का अनुभव और अब IIM की कमान – ये कहानी है एक सच्चे गुरु की!

दोस्तों, कभी सोचा है कि असली सफलता की पहचान क्या होती है? IIM काशीपुर ने हाल ही में प्रो. नीरज द्विवेदी को अपना नया निदेशक बनाया है, और ये सिर्फ एक नियुक्ति नहीं, बल्कि एक मिसाल कायम करने वाली घटना है। अब सवाल यह है कि आखिर क्या खास बात है इस शख्स में? IIT खड़गपुर से M.Tech, IIM लखनऊ से FPM और 25 साल से ज्यादा का अनुभव… ये तो बस शुरुआत है। असल कहानी तो इन आंकड़ों के पीछे छिपी है – एक ऐसी यात्रा जो हर उस युवा के लिए मार्गदर्शक बन सकती है जो सच्ची उत्कृष्टता की तलाश में है। चलिए, आज हम उनके इस सफर को थोड़ा करीब से जानते हैं।

शुरुआत: जब एक बच्चे ने सीखने का जुनून पाला

ईमानदारी से कहूं तो, प्रो. द्विवेदी की कहानी उनके बचपन से ही दिलचस्प हो जाती है। एक ऐसा परिवार जहां किताबों की खुशबू रोटी से ज्यादा महत्वपूर्ण थी। स्कूल के दिनों से ही उनकी analytical skills देखकर टीचर्स हैरान रह जाते थे। मजे की बात ये कि उन्होंने problems को सिर्फ solve ही नहीं किया, बल्कि उन्हें अलग तरीके से देखना सिखाया।

और फिर IIT खड़गपुर का वो मोड़… जहां technical knowledge से ज्यादा important था वो मानसिक क्रांति। प्रो. द्विवेदी अक्सर कहते हैं – “IIT ने मुझे सिखाया कि सवाल पूछना जवाब देने से ज्यादा जरूरी है।” यहीं से शुरू हुई थी उनकी असली यात्रा।

करियर का रोचक मोड़: जब इंडस्ट्री छोड़ शिक्षा को चुना

यहां एक दिलचस्प बात – क्या आप जानते हैं प्रो. द्विवेदी ने शुरुआत में industry में काम किया था? लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि उनका दिल तो क्लासरूम में धड़कता है। सच कहूं तो ये फैसला उस समय unconventional था, पर आज देखिए कहां पहुंच गए!

IIM लखनऊ से FPM करने का फैसला तो जैसे उनके जीवन का game-changer साबित हुआ। Research के दौरान उन्होंने जो सीखा, वो सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं था – बल्कि समस्याओं को root level से समझने की कला थी।

25 साल: सिर्फ समय नहीं, अनुभवों का खजाना

दोस्तों, 25 साल… ये सिर्फ एक अंक नहीं है। इतने सालों में प्रो. द्विवेदी ने जो किया, वो किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं। Teacher, researcher, administrator – एक साथ कितनी भूमिकाएं! पर उनकी असली strength तो छात्रों को guide करने में है। मानिए या न मानिए, लेकिन उनके पढ़ाए सैकड़ों students आज top positions पर हैं।

एक बात जो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है – उनका ये विश्वास कि हर student में कुछ खास है, बस उसे पहचानने की जरूरत है। शायद यही वजह है कि उनके students उन्हें सिर्फ teacher नहीं, बल्कि life coach मानते हैं।

IIM काशीपुर की कमान: नई चुनौतियां, नई संभावनाएं

अब जबकि प्रो. द्विवेदी ने IIM काशीपुर की कमान संभाली है, तो expectations तो sky-high हैं ही। लेकिन वो कहते हैं न – pressure ही तो diamond बनाता है! उनकी vision में industry connect से लेकर global exposure तक सब कुछ शामिल है।

सबसे मजेदार बात? वो चाहते हैं कि IIM सिर्फ degrees नहीं, बल्कि ऐसे leaders तैयार करे जो समाज को बदल सकें। और हां, entrepreneurship को लेकर उनका जुनून देखने लायक है। कहते हैं – “क्लासरूम से boardroom तक का सफर हर student का अपना unique story होना चाहिए।”

जीवन के वो सबक जो कोई किताब नहीं सिखाती

प्रो. द्विवेदी की life से हम क्या सीख सकते हैं? पहली बात तो ये कि success overnight नहीं मिलती। दूसरी बात – failures हैं क्या? बस learning के नए chapters हैं। और तीसरी सबसे important बात – work-life balance को लेकर उनका नजरिया।

एक बार उन्होंने मजाक में कहा था – “अगर आपका काम आपका passion है, तो आपको जीवन में कभी work नहीं करना पड़ेगा।” और यकीन मानिए, ये सिर्फ एक quote नहीं, बल्कि उनके जीवन का सार है।

अंतिम बात: सपनों की उड़ान का मतलब

तो दोस्तों, प्रो. द्विवेदी की ये कहानी हमें क्या सिखाती है? ये कि IIT से IIM तक का सफर कोई accident नहीं होता। ये तो passion, perseverance और purpose का combination है।

आज जब वो युवाओं को inspire करते हैं, तो उनकी आंखों में वही चमक दिखती है जो कभी उनके अपने सपनों में थी। शायद success का असली मतलब यही है – अपनी यात्रा से दूसरों को रास्ता दिखाना। तो क्या आप तैयार हैं अपनी खुद की कहानी लिखने के लिए?

IIT से M.Tech और फिर IIM तक – मेरा सफर, मेरी गलतियाँ और कुछ सीख

1. IIT से निकलकर IIM की कुर्सी तक – ये रास्ता कितना आसान था?

सच कहूँ तो, IIT से M.Tech करने के बाद मैंने industry में पूरे 25 साल गुज़ारे। और हाँ, ये साल सिर्फ नौकरी करने में नहीं बल्कि खुद को गढ़ने में निकाले। Technical skills तो थी ही, लेकिन असली मजा तब आया जब managerial skills पर काम शुरू किया। कभी गलतियाँ कीं, कभी सीखा – पर आखिरकार IIM जैसे institute की बागडोर संभालने लायक बन पाया। बताऊँ? मुश्किल तो बहुत था, लेकिन हर कदम पर कुछ न कुछ सीखने को मिला।

2. Engineering वाले को Management में कैसे घुसपैठ करनी चाहिए?

देखिए, एक बात तो clear है – आज के जमाने में सिर्फ technical knowledge काफी नहीं। मुझे ये बात engineering के दिनों में ही समझ आ गई थी। Industry में काम करते हुए मैंने project management और team handling पर खास ध्यान दिया। छोटे-मोटे management courses भी join किए। एक तरफ तो technical depth बनाए रखी, दूसरी तरफ management की दुनिया में भी कदम रखा। Transition? बिल्कुल smooth नहीं था, लेकिन impossible भी नहीं!

3. IIM की कुर्सी पर बैठकर सबसे ज्यादा किस बात की टेंशन रहती थी?

अरे भई! ये कोई आसान काम नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती थी – एक तरफ academic standards को maintain करना, दूसरी तरफ industry की expectations पूरी करना। मेरा मानना है कि classroom की पढ़ाई और real-world challenges के बीच एक पुल बनाना जरूरी है। Students को सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि practical exposure भी चाहिए। और यही balance बनाना सबसे मुश्किल काम था। कभी-कभी तो रातों की नींद हराम हो जाती थी!

4. नौजवान engineers के लिए मेरी 2 पैसे की राय

सुनो जनाब, technical skills तो basic requirement है ही। लेकिन आजकल soft skills के बिना चलने वाला नहीं। Networking करो, लोगों से connect रखो। सीखना कभी बंद मत करो – चाहे online courses हों या weekend workshops। और सबसे important – adaptable बनो। आज का जमाना interdisciplinary skills का है। Depth अपनी field में रखो, पर दूसरी fields की basic समझ भी बनाओ। एक काम और करो – गलतियाँ करने से मत डरो। मैंने तो ढेर सारी की हैं, और आज उन्हीं का फल मिल रहा है!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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