BRICS की डॉलर-विरोधी मुहिम: भारत क्यों खेल रहा है ‘मौन खिलाड़ी’ की भूमिका?
अब तो आपने भी सुना होगा – BRICS समिट 2025 में फिर से डॉलर के खिलाफ जंग का ऐलान हुआ! ब्राज़ील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका तो जैसे एक सुर में बोल रहे थे, लेकिन हमारा भारत? सिर्फ मुस्कुरा रहा था। ‘ब्रिक्स पे’ नाम के इस नए डिजिटल पेमेंट सिस्टम पर बाकी देशों का जोश देखते बनता था, पर हमारे प्रतिनिधि जी बस ‘वेट एंड वॉच’ मोड में लगे रहे। है न मजेदार? अब सवाल यह है कि यह चुप्पी क्या सच में सोची-समझी रणनीति है या फिर हम अमेरिका से डर रहे हैं?
डॉलर का राज: एक कहानी जो आपको पता होनी चाहिए
देखिए, डॉलर की दादागिरी कोई नई बात तो है नहीं। जैसे हमारे बचपन में क्लास का सबसे ताकतवर लड़का सब पर हुकुम चलाता था, वैसे ही डॉलर ने पूरी दुनिया की economy को अपने मुट्ठी में कर रखा है। 2008 के financial crisis के बाद से BRICS देश इस एकछत्र राज को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। भारत भी बहुध्रुवीय व्यवस्था की बात करता है, लेकिन… हमेशा एक ‘लेकिन’ रहता है न? अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते, हमारे IT sector का निर्यात, हमारे छात्रों के visa – ये सब मिलाकर एक ऐसी पहेली बन जाती है जिसे सुलझाना इतना आसान नहीं।
‘ब्रिक्स पे’: क्या यह सच में गेम-चेंजर होगा?
इस बार का सबसे जोरदार प्रस्ताव था यह ‘ब्रिक्स पे’ सिस्टम। सोचिए, जैसे Paytm या UPI, लेकिन पूरे BRICS देशों के लिए! चीन और रूस तो मानो इस पर जान छिड़क रहे थे, पर हमारे भारतीय प्रतिनिधि? उनका रुख देखकर लगा जैसे कोई बच्चा जिससे मम्मी ने कहा हो – “बेटा, मेहमानों के सामने ज्यादा बोलना नहीं।” न खुला विरोध, न पूरा समर्थन। क्या यह सच में हमारी सूझबूझ है या फिर हम दो नावों पर पैर रखकर बैठे हैं?
विश्लेषक क्या कह रहे हैं? और… राजनीति तो होगी ही!
अब तो आप जानते ही हैं – जहां अंतरराष्ट्रीय मामले, वहां राजनीति तो होगी ही! एक तरफ तो विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत अभी डॉलर पर निर्भर है और हमें अमेरिकी प्रतिबंधों का जोखिम नहीं लेना चाहिए। वहीं दूसरी ओर विपक्ष वालों ने तो मानो सरकार को ही घेर लिया है। राहुल गांधी का वह ट्वीट तो आपने देखा ही होगा – सीधा सवाल पूछा, “भारत किसके साथ है?” हालांकि, अमेरिकी मीडिया ने हमारे रुख की तारीफ करते हुए इसे ‘smart diplomacy’ बताया है। Wall Street Journal ने तो कहा कि भारत दोनों तरफ से मार खाने से बच रहा है। सच कहूं तो, यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे दो जिद्दी सासुओं के बीच संतुलन बनाना!
आगे क्या? भारत का अगला चाल क्या होगा?
अगर यह ‘ब्रिक्स पे’ सिस्टम सच में लागू हो जाता है, तो भारत के लिए यह उतना ही मुश्किल होगा जितना कि एक ही समय पर दो शादियों में जाना! एक तरफ BRICS के साथी, दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोप। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत शायद धीरे-धीरे डॉलर से दूरी बनाए, लेकिन एकदम से बगावत नहीं करेगा। यह हमारे ‘मल्टी-अलाइंस’ नीति के अनुरूप होगा। पर सच तो यह है कि अभी तक कोई नहीं जानता कि आखिरकार यह सब कहां जाकर रुकेगा। एक बात तय है – अगर डॉलर का विकल्प सच में उभरता है, तो international trade की दुनिया हमेशा के लिए बदल जाएगी।
अंतिम बात: क्या भारत सही कर रहा है?
ईमानदारी से कहूं तो, भारत का यह रुख उसकी मजबूरी भी हो सकती है और ताकत भी। जैसे एक अक्लमंद बच्चा दो लड़ते हुए बड़ों के बीच में नहीं पड़ता, वैसे ही हम भी अपने रिश्तों को संभाल रहे हैं। BRICS की इस मुहिम में न तो हम पूरी तरह शामिल हो रहे हैं, न ही अलग हो रहे हैं। शायद यही समझदारी है। आखिरकार, अंतरराष्ट्रीय राजनीति कोई कबड्डी का मैच तो है नहीं जहां आप एकदम से ‘स्टंप’ लगा दें। धीरे-धीरे चलो, पर मजबूती से – शायद यही हमारी रणनीति है। और देखा जाए तो, अभी तक तो यह काम कर रही है!
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BRICS की डॉलर-विरोधी मुहिम में भारत का चुप रहना… दिलचस्प है, है ना? अब सोचिए, जहां चीन और रूस जोर-शोर से अपनी बात रख रहे हैं, वहीं भारत की चुप्पी क्या वाकई सिर्फ चुप्पी है? मेरा मानना है कि मोदी सरकार ने यहां चालाकी से काम लिया है। एक तरह का ‘साइलेंट स्ट्रैटेजी’।
असल में देखा जाए तो, भारत ने हमेशा अपने हितों को प्राथमिकता दी है। Global Economy में हमारी पोजीशन अलग है – न तो हम चीन की तरह आक्रामक हैं, न ही रूस जैसे सैन्य ताकत पर निर्भर। तो फिर क्यों न एक स्मार्ट मिडिल पाथ चुना जाए?
और सच कहूं तो, यह चुप्पी हमें लंबे समय में फायदा देगी। आज नहीं तो कल, दुनिया को समझ आएगा कि भारत ने सही कदम उठाया। एक तरह से यह हमारी ‘स्टेट्समैनशिप’ को दिखाता है – बिना शोर मचाए, बिना दबाव में आए।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह स्ट्रैटेजी काम करेगी? वक्त बताएगा। पर एक बात तो तय है – अगर किसी को लगता है कि भारत की चुप्पी कमजोरी है, तो वह गलत है। बिल्कुल गलत।
BRICS की डॉलर-विरोधी मुहिम और भारत की चुप्पी – क्या है पूरा माजरा?
अरे भई, सुना आपने? BRICS देश डॉलर के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं, और हमारा भारत… खामोश! क्यों? क्या हमारी सरकार कोई चाल चल रही है या फिर यह सिर्फ एक सोची-समझी रणनीति है? आज हम इसी पहेली को सुलझाएंगे।
1. भारत चुप क्यों? क्या डर है हमें?
देखिए, मामला इतना सीधा नहीं है। हमारी foreign policy हमेशा से ही थोड़ी… कहें तो ‘घर-मुर्गी दाल-चावल’ वाली रही है। एक तरफ तो हम US और Europe के साथ business कर रहे हैं – बड़े-बड़े deals, technology transfer, वगैरह-वगैरह। ऐसे में सीधे डॉलर के खिलाफ खड़े हो जाना? थोड़ा risky नहीं लगता आपको?
असल में बात यह है कि हमारी economy अभी इतनी strong नहीं हुई कि हम dollar system को चुनौती दे सकें। समझदारी इसी में है कि चुपचाप अपना काम करते रहो!
2. क्या भारत आखिरकार BRICS के साथ जुड़ेगा?
अरे, यह तो बिल्कुल वैसा ही सवाल है जैसे पूछो – “क्या मोदी जी अगले चुनाव जीतेंगे?” जवाब है – “हां… लेकिन…”
हमारी सरकार कोई commitment तो नहीं दे रही, पर यह भी सच है कि BRICS के साथ हमारे relations काफी अच्छे हैं। मेरा personal अनुमान? हम शायद कुछ ऐसे steps लेंगे जो दोनों तरफ के लिए acceptable हों। जैसे कि… हो सकता है कुछ bilateral trade में local currencies का इस्तेमाल बढ़ा दें। एकदम धीरे-धीरे, बिना शोर मचाए।
3. अगर डॉलर के खिलाफ चले तो क्या होगा हमारी economy का?
सच कहूं? Short-term में तो हालात थोड़े डरावने हो सकते हैं। आपने देखा होगा न, जब petrol के दाम बढ़ते हैं तो सबकी नब्ज़ तेज हो जाती है? वैसा ही कुछ हो सकता है rupee के साथ।
लेकिन! यहां एक बड़ा लेकिन है। Long-term में यह move हमारे लिए game-changer हो सकता है। कल्पना कीजिए – China, Russia, Brazil के साथ trade में dollar की जगह direct rupee में लेन-देन? एक तरह से हमारी currency को global boost मिलेगा। पर यह सब धीरे-धीरे, step by step होगा।
4. मोदी सरकार की असली चाल क्या है?
बिल्कुल वैसी ही जैसी एक अच्छी बहू की होती है – ससुराल और मायके, दोनों को खुश रखना!
सरकार की strategy समझने के लिए बस याद रखिए – हम BRICS को नाराज़ नहीं कर सकते, क्योंकि वे हमारे strategic partners हैं। लेकिन US और Europe को भी नहीं, क्योंकि हमारी 40% से ज्यादा trade तो उन्हीं के साथ है। तो हम क्या कर रहे हैं? एक तरह का diplomatic yoga – दोनों तरफ stretch करना, बिना टूटे!
अंत में एक बात – यह सब कुछ बहुत ही calculated है। हमारे policy makers को पता है कि वे क्या कर रहे हैं। बस हमें थोड़ा patience रखना होगा। क्या पता, अगले कुछ सालों में हम dollar पर निर्भरता कम करने की कोई जबरदस्त योजना लेकर आएं!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com