वायरल वीडियो के बाद गड्ढा भरा, पर क्या सच में हल हुआ समस्या?
देखा जाए तो ये viral video वाला मामला बड़ा दिलचस्प है ना? एक तरफ तो सोशल मीडिया की ताकत दिखती है कि कैसे एक वीडियो प्रशासन को हिला देता है। लेकिन दूसरी तरफ, सवाल यह है कि क्या ये सिर्फ नौटंकी थी या असली समाधान? जिस गड्ढे को महीनों से नज़रअंदाज़ किया जा रहा था, वो अचानक वायरल होते ही प्रशासन की प्राथमिकता बन गया। मिट्टी-बालू डालकर काम तो खत्म कर दिया, पर स्थानीय लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ। असल में, ये तो वही पुरानी कहानी है – जल्दबाजी में किया गया काम, बिना दिमाग लगाए!
कहानी उस गड्ढे की, जिसे सब भूल गए थे
ईमानदारी से कहूं तो ये कोई नई बात नहीं। आपके-हमारे शहर की हर गली में ऐसे गड्ढे मिल जाएंगे। इस एरिया के residents तो कह रहे हैं कि ये गड्ढा तो उनके बच्चों की उम्र जितना पुराना है! Municipal office को कितनी ही शिकायतें भेजी गईं, पर वो तो फाइलों में ही दफन हो गईं। अब सोचिए, जब तक कोई passenger घायल नहीं हो जाता और वीडियो वायरल नहीं होता, तब तक किसी को याद ही नहीं आता कि यहाँ कोई गड्ढा भी है। बड़ा अजीब है ना?
जुगाड़ से काम चलाने की कला
प्रशासन ने क्या किया? जैसे ही वीडियो ट्रेंड हुआ, रातों-रात कर्मचारियों को भेज दिया। बजरी की बोरियां, थोड़ी मिट्टी – बस काम खत्म! पर सच पूछो तो ये तो वही हुआ जैसे बुखार में पैरासिटामॉल खा लेना। दर्द तो कम हो गया, पर बीमारी वहीं की वहीं। Local engineers तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अगले दो बारिश में ही ये ‘टेम्पररी सॉल्यूशन’ बह जाएगा। फिर क्या? नया वीडियो बनेगा, नया तमाशा होगा!
किसका बोलता है, किसका नहीं
इस पूरे मामले में सबके अपने-अपने राग अलापने वाले हैं। एक resident तो इतना गुस्से में था कि बोला, “ये नेताओं के पोस्टर लगाने जितना भी काम नहीं हुआ!” वहीं दूसरी तरफ municipal वाले अपनी पुरानी रट लगा रहे हैं – “टेंडर प्रोसेस चल रहा है सर…” Social activist की बात सुनिए तो वो कह रहे हैं कि ये पूरी व्यवस्था ही फेल हो चुकी है। सच कहूँ तो सबकी अपनी-अपनी बातें हैं, पर काम वहीं का वहीं ढाक के तीन पात!
आगे क्या? वही पुराना इंतज़ार!
अब तो हालत ये है कि local residents ने फैसला कर लिया है – social media पर जमकर शोर मचाएंगे। Experts की मानें तो अगले monsoon तक कुछ नहीं हुआ तो फिर से वही हाल होगा। पर सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या हमें हर बार किसी के घायल होने का इंतज़ार करना पड़ेगा? क्या सड़कें बनाना और उनकी मरम्मत करना प्रशासन की बुनियादी जिम्मेदारी नहीं है? शायद हमें ये समझना होगा कि असली बदलाव तभी आएगा जब ये ‘वायरल वीडियो वाला चक्र’ टूटेगा। वरना तो… आप समझ ही गए होंगे!
एक बात तो तय है – इस पूरे घटनाक्रम ने फिर से साबित कर दिया कि social media की ताकत से प्रशासन को हिलाया जा सकता है। पर क्या ये डर ही काम करवाने का एकमात्र तरीका बनकर रह जाएगा? ये सवाल सिर्फ इस गड्ढे का नहीं, बल्कि हमारे पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है। जनाब, असल मुद्दा तो यही है ना?
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Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com