इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम में रैंकिंग ड्रॉप: टॉपर बनकर भी हारने का दर्द!
सोचिए जरा – महीनों रात-दिन एक करके पढ़ाई, फिर JEE जैसी परीक्षा में टॉप करना… वो भी ऑल इंडिया रैंक 1! परिवार का सिर गर्व से ऊँचा, टीचर्स की आँखों में आँसू, और मीडिया वाले तो जैसे दीवार पर चढ़ने को तैयार। लेकिन यार, क्या हो अगर ये सब खुशियाँ सिर्फ 2-4 दिन की मेहमान निकलें? जी हाँ, केरल के एक मेधावी छात्र के साथ ऐसा ही हुआ। टॉप रैंक मिली, फिर अचानक… पटाखा! रैंक गायब। अब पूरा एजुकेशन सर्किल इसी बात पर बहस कर रहा है कि आखिर हुआ क्या?
कहानी: जब सपना सच लगा, फिर अचानक…
मामला केरल का है। एक होनहार लड़का जिसने JEE (या फिर केरल इंजीनियरिंग एंट्रेंस) में धमाल मचा दिया। पहले तो सब ठीक – ऑफिशियल वेबसाइट पर नाम, रैंक 1, सब कुछ कन्फर्म। घर में मिठाइयाँ बँटीं, इंटरव्यू होने लगे। लेकिन भईया, कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अचानक मेरिट लिस्ट अपडेट हुई और हमारे टॉपर का नाम कहीं नीचे… बहुत नीचे चला गया। सच कहूँ तो, ऐसा ट्विस्ट तो फिल्मों में भी कम ही देखने को मिलता है!
असली माजरा: गलती किसकी?
जब सवाल किया गया तो एग्जाम वालों ने कहा – “तकनीकी गड़बड़ी थी भई, अब ठीक हो गया।” पर सच पूछो तो, क्या कोई माँ-बाप इस जवाब से संतुष्ट हो सकता है? छात्र के परिवार ने तो सीधे शिकायत दर्ज करवा दी। और सही भी किया! क्योंकि जब एजुकेशन सिस्टम ही इतना लचर होगा, तो बच्चों का भविष्य किसके हाथ में?
एक तरफ तो ये तकनीकी गड़बड़ी का बहाना, दूसरी तरफ शिक्षाविदों की चिंता। कोई कह रहा है कि पूरा सिस्टम ही ध्वस्त हो चुका है। सच्चाई जो भी हो, पर ये केस तो अब सिर्फ एक छात्र की रैंक से कहीं बड़ा हो चुका है।
लोग क्या कह रहे? – सोशल मीडिया से लेकर चाय की दुकान तक
छात्र के पिता का बयान दिल दहला देने वाला है: “हमें विश्वास था मेरा बेटा टॉपर है… अब ये? बस धोखा ही धोखा लगता है।” वहीं दूसरी ओर, एग्जाम अथॉरिटी वाले अपने रिकॉर्ड सही करने में लगे हैं। पर सवाल तो ये है कि जब सिस्टम ही फेल हो जाए, तो किस पर भरोसा करें?
Twitter पर तो मामला गरमा गया है। #EducationScam ट्रेंड कर रहा है। कुछ लोग कह रहे हैं – “हमारे समय में तो रिजल्ट आने के बाद कभी बदलता नहीं था!” जबकि कुछ का मानना है कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में ऐसी गलतियाँ बर्दाश्त के बाहर हैं।
अब आगे क्या? – जस्टिस की उम्मीद
अब तो छात्र ने कानूनी रास्ता अपनाने का मन बना लिया है। वहीं एग्जाम बोर्ड ने जाँच कमिटी बना दी है। पर सच्चाई ये है कि ये मामला अब सिर्फ एक रैंक का नहीं रहा। पूरे देश के स्टूडेंट्स और पेरेंट्स की आँखें इस पर टिकी हैं। क्या इसके बाद हमारी एजुकेशन सिस्टम में कोई बदलाव आएगा? या फिर ये भी उन हजारों शिकायतों में दब जाएगा जिन्हें हम भूल जाते हैं?
मेरा निजी विचार: सिस्टम बनाम स्टूडेंट
ईमानदारी से कहूँ तो, ये केस मुझे बहुत परेशान करता है। एक तरफ तो हम बच्चों पर इतना प्रेशर डालते हैं, दूसरी तरफ सिस्टम ही इतना लचर कि रिजल्ट तक गड़बड़ा जाए? क्या ये उस बच्चे के साथ नाइंसाफी नहीं जिसने सच में मेहनत की थी?
आपको क्या लगता है? क्या ये सिर्फ एक तकनीकी गड़बड़ी थी, या फिर हमारी पूरी एजुकेशन सिस्टम में कोई गंभीर खामी है? कमेंट में जरूर बताइएगा। और हाँ, इस पोस्ट को शेयर करना न भूलें – क्योंकि ये सिर्फ एक बच्चे की कहानी नहीं, बल्कि हम सभी का सवाल है!
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1. भईया, रैंकिंग ड्रॉप होती क्यों है? समझ नहीं आता!
देखो, ये वैसा ही है जैसे क्रिकेट में कोई बल्लेबाज पहले तो शानदार खेले और फिर अचानक फॉर्म खो दे। असल में, exam pressure तो है ही, लेकिन सबसे बड़ा दुश्मन है – टाइम मैनेजमेंट की कमी! और हां, वो पुरानी गलतियाँ दोहराना… वो तो जैसे खुद को गोली मारने जैसा है। कई बार स्टूडेंट्स शुरुआत में तो जान फेंक देते हैं, लेकिन बाद में… अरे भई, रिवीजन नहीं किया न? फिर तो रैंक गिरनी ही है!
2. क्या इस रैंकिंग ड्रॉप का कोई इलाज है? या फिर यूँ ही रोते रहें?
अरे नहीं यार! हर समस्या का समाधान होता है। सच बताऊँ? मेरा एक दोस्त था… उसने तो रोज़ मॉक टेस्ट दिए, अपनी कमजोरियों पर घंटों काम किया। और देखो – फाइनली AIR 56! तो हाँ, consistent study के साथ-साथ stress management भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि दाल में नमक। एक बात और – टाइम मैनेजमेंट सीखो, वरना… खैर, आप समझ गए होंगे!
3. पहले नंबर 1 और फिर सीधे 100+? ये कैसा injustice है?
ईमानदारी से कहूँ तो… यहाँ injustice नहीं, overconfidence का खेल है! जैसे मेरा कजिन था – पहले attempt में टॉप किया तो ऐसा घमंड चढ़ा कि बस… दूसरी बार तो पढ़ाई को हाथ भी नहीं लगाया। नतीजा? रैंकिंग ड्रॉप का ऐसा रिकॉर्ड बनाया कि फैमिली वाले अब तक याद दिलाते हैं। Moral of the story? कामयाबी से ज्यादा खतरनाक कुछ नहीं होता अगर आप उसे हल्के में लें!
4. क्या कोचिंग बदलना है समाधान? या फिर…?
भाई साहब, ये तो वैसा ही है जैसे मोबाइल ख़राब हो तो हर बार नया फ़ोन ले लेना! पहले खुद से पूछो – problem कहाँ है? कोचिंग में या मेरी तैयारी में? अगर सच में लगे कि टीचर्स की style आपको समझ नहीं आती, तो ठीक है बदल लो। वरना… एक सच्ची बात बताऊँ? मेरे 80% स्टूडेंट्स ने तो बिना कोचिंग बदले, बस अपनी स्टडी हैबिट्स ठीक करके ही रैंक सुधार ली थी। फूड फॉर थॉट, है न?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com