जर्मन रक्षा मंत्री का बयान: “अब बहाने नहीं चलेंगे!”
अरे भाई, जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने तो आजकल खूब सुर्खियाँ बटोरी हैं। Financial Times को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपने देश के हथियार बनाने वाली कंपनियों को सीधे-सीधे कह दिया – “अब और रोना-धोना बंद करो।” और सच कहूँ तो, ये बयान किसी बम से कम नहीं है! खासकर तब, जब ये उनकी वाशिंगटन यात्रा से ठीक पहले आया है। वहाँ तो NATO और यूक्रेन मुद्दे पर जमकर चर्चा होने वाली है।
असल में बात ये है कि पिछले दो साल से जर्मनी अपनी रक्षा नीति में बड़े बदलाव कर रहा है। ‘Zeitenwende’ यानि युग परिवर्तन का नारा देकर उन्होंने रक्षा बजट भी बढ़ाया है। लेकिन… हमेशा एक लेकिन होता है न? जर्मन defense industry पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वो यूक्रेन को हथियार देने में जानबूझकर देरी कर रही है। और पिस्टोरियस जी तो पहले भी इन कंपनियों को टोक चुके हैं।
अब इस नए बयान में उन्होंने तीन बड़ी बातें कही हैं। पहली – “सरकार ने ऑर्डर और पेमेंट प्रोसेस को आसान बना दिया है, अब बहाने नहीं चलेंगे।” दूसरी – “यूक्रेन को सपोर्ट करना हमारी प्राथमिकता है, और देरी से पूरे यूरोप की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।” और तीसरी, जो सबसे ज़रूरी है – ये बयान उनकी अमेरिका यात्रा से ठीक पहले आया है। क्या ये कोई संयोग है? शायद नहीं।
अब सवाल ये है कि इस पर सबकी क्या प्रतिक्रिया है? defense industry वाले कह रहे हैं – “भई, supply chain की दिक्कतें हैं, कच्चा माल नहीं मिल रहा।” राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शायद जर्मनी अपने रक्षा उद्योग पर निर्भरता कम करना चाहता है। और यूक्रेन? वो तो इस बयान से खुश हो गया है – “अब जल्दी हथियार मिलेंगे!”
तो अब आगे क्या? पिस्टोरियस की वाशिंगटन यात्रा में NATO और यूक्रेन मुद्दा प्रमुख होगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जर्मनी शायद इन कंपनियों पर दबाव बनाए रखे। लेकिन अगर डिलीवरी में सुधार नहीं हुआ तो? तब शायद जर्मनी को दूसरे देशों से हथियार खरीदने पड़ें। देखते हैं आगे क्या होता है। फिलहाल तो Financial Times का पूरा इंटरव्यू पढ़ना और वाशिंगटन यात्रा के नतीजों पर नज़र रखना ही होगा।
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आखिर जर्मन रक्षा मंत्री ने हथियार कंपनियों को फटकार क्यों लगाई?
देखिए, मामला सीधा-सादा है। अभी का global security scenario ऐसा है जैसे किसी ने बत्ती गुल कर दी हो – अंधेरा ही अंधेरा! Russia-Ukraine war ने तो जैसे पूरे यूरोप को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे में जर्मनी और उसके allies को हथियारों की जरूरत भी urgent है, और शायद इसीलिए मंत्री जी का तापमान थोड़ा बढ़ गया।
Bundeswehr के लिए इसका क्या मतलब है? क्या अब उन्हें नए खिलौने मिलेंगे?
एक तरफ तो यह अच्छी खबर है – सेना को modern weapons और equipment जल्दी मिलेंगे। पर दूसरी तरफ… अरे भई, इतनी जल्दबाजी में क्वालिटी तो नहीं कम हो जाएगी? वैसे हां, defense industry वालों की नींद अब उड़ चुकी है। उन पर अब faster delivery का pressure बिल्कुल वैसा ही है जैसे परीक्षा से एक दिन पहले syllabus याद करने का!
क्या यह सब यूक्रेन को लेकर है? जर्मनी की चाल क्या है?
ईमानदारी से कहूं तो – हां, बिल्कुल! जर्मनी यूक्रेन को military aid देने में लगा हुआ है, और इसके लिए उसे खुद के arms manufacturers से timely supplies चाहिए। यह बयान कोई अचानक वाली बात नहीं, बल्कि एक calculated move लगता है। थोड़ा indirect तरीका है support दिखाने का, है न?
हथियार बनाने वाली कंपनियों ने क्या कहा? क्या वो डिलीवरी का दबाव झेल पाएंगी?
अभी तक तो major companies ने official response देना उचित नहीं समझा। लेकिन industry experts की मानें तो… सच कहूं? स्थिति थोड़ी पेचीदा है। supply chain challenges और production delays की वजह से immediate delivery देना उनके लिए वैसा ही मुश्किल होगा, जैसे बिना तेल के गाड़ी चलाना। देखते हैं आगे क्या होता है!
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com