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5 साल तक चल नहीं पाते थे, फिर 100 की उम्र में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड – फौजा सिंह की प्रेरणादायक कहानी

5 साल तक चल नहीं पाते थे, फिर 100 की उम्र में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड – फौजा सिंह की प्रेरणादायक कहानी

बात जालंधर के ब्यास गाँव की है। 103 साल के फौजा सिंह – जिन्हें दुनिया एक मैराथन धावक के तौर पर जानती थी – अब हमारे बीच नहीं हैं। सुबह की वॉक पर निकले थे, और फिर… एक अनजान गाड़ी ने उन्हें ठोक दिया। सिर में चोट, अस्पताल ले जाया गया, लेकिन शाम तक यह दिग्गज एथलीट चल बसा। है ना दिल दहला देने वाली बात? पर इस आदमी की कहानी सुनिए – 100 साल की उम्र में मैराथन दौड़कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाला यह शख्स साबित कर गया कि उम्र तो बस एक नंबर है। असल में, उनकी जिंदगी खुद एक मैराथन थी।

एक संघर्ष से भरा जीवन

सोचिए, 1911 में पैदा हुए फौजा सिंह बचपन में 5 साल तक चल भी नहीं पाते थे! डॉक्टरों ने तो मानो हार मान ली थी – “छोड़ दो, कोई उम्मीद नहीं”। लेकिन यहाँ तो जैसे जिद्द ही जीत गई। धीरे-धीरे, कदम दर कदम, उन्होंने न सिर्फ चलना सीखा बल्कि… भागना भी। और सिर्फ भागना नहीं, 89 की उम्र में पहली मैराथन! फिर 100 साल के होते-होते टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन पूरी करके गिनीज बुक में नाम दर्ज करवा दिया। “टर्बन्ड टॉर्नेडो” का नाम सच में सार्थक था।

दुर्घटना और जाँच

अब सवाल यह है कि आखिर हुआ क्या था? जालंधर पुलिस के मुताबिक, एक अनजान गाड़ी ने टक्कर मारी और… भाग गया। सीसीटीवी फुटेज चेक किए जा रहे हैं, पर अभी तक पकड़ में नहीं आया। सच कहूँ तो, यह खबर सुनकर न सिर्फ उनका परिवार, बल्कि पूरा खेल जगत सन्न रह गया। क्योंकि फौजा सिंह तो किसी एक परिवार के नहीं, पूरी मानवता के हीरो थे।

समाज और परिवार की प्रतिक्रिया

परिवार वाले बताते हैं – “बाबाजी रोज सुबह वॉक पर जाते थे, बिल्कुल नियमित। 100 पार करके भी उनमें जो जोश था, वह तो हम युवाओं में भी नहीं!” सोशल मीडिया पर तो जैसे श्रद्धांजलि का तूफान आ गया। किसी ने लिखा – “सदी का सबसे बड़ा एथलीट”, तो किसी ने कहा – “हमारे दौर का महात्मा गांधी”। पुलिस वाले भी कह रहे हैं कि जल्द ही आरोपी को पकड़ लेंगे। पर सच पूछो तो… क्या इससे फौजा सिंह वापस आ जाएँगे?

एक विरासत जो जीवित रहेगी

अंतिम संस्कार की तैयारियाँ चल रही हैं, और उम्मीद है कि हजारों लोग आखिरी बार उन्हें देखने आएँगे। कई स्पोर्ट्स क्लब्स ने तो उनकी याद में मैराथन आयोजित करने की भी घोषणा कर दी है। सच तो यह है कि फौजा सिंह ने साबित कर दिया कि इंसान की इच्छाशक्ति के आगे कोई सीमा नहीं। उन्होंने न सिर्फ रिकॉर्ड बनाया, बल्कि लाखों लोगों को सिखाया कि जीना कैसे है।

आज वह भले ही नहीं हैं, पर उनकी कहानी हमेशा जिंदा रहेगी। क्योंकि फौजा सिंह सिर्फ एक धावक नहीं थे… वह तो जिंदगी की दौड़ के असली चैंपियन थे। और हाँ, एक बात और – उम्र? बस एक नंबर है, है ना?

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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