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कांवड़ मार्ग पर QR कोड अनिवार्य: क्या दुकानदार की धार्मिक पहचान स्कैन हो पाएगी?

कांवड़ मार्ग पर QR कोड अनिवार्य: क्या दुकानदार की धार्मिक पहचान स्कैन हो पाएगी?

अभी-अभी एक नया नियम आया है जिसने सबको हिला दिया है – कांवड़ यात्रा वाले रास्तों पर दुकानदारों के लिए QR कोड लगाना ज़रूरी कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि ये पारदर्शिता के लिए है और श्रद्धालुओं को ठगने से रोकेगा। लेकिन सच कहूँ तो, यहाँ एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्या इससे दुकानदारों की निजी जानकारी, खासकर उनका धर्म, सार्वजनिक हो जाएगा? अब तो ये मुद्दा सरकार, दुकानदारों और NGO वालों के बीच गरमा-गरम बहस का विषय बन चुका है।

मामले की पृष्ठभूमि: QR कोड की ज़रूरत क्यों पड़ी?

कांवड़ यात्रा… शिवभक्तों के लिए सिर्फ एक सफर नहीं, बल्कि आस्था का महासागर है। हर साल लाखों लोग गंगाजल लेकर हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों से चलते हैं। पर पिछले कुछ सालों में कुछ बुरी खबरें आई हैं – कुछ दुकानदार भक्तों को ठग रहे हैं, दाम ज़्यादा वसूल रहे हैं या नकली सामान बेच रहे हैं। सरकार ने सोचा कि क्यों न एक सिस्टम बनाया जाए जहाँ हर दुकान पर QR कोड लगा हो, जिसमें उसका रजिस्ट्रेशन और सामान की असली कीमतें दिखें। सुनने में तो बढ़िया आइडिया लगता है, है ना?

लेकिन नया झगड़ा क्या है?

एक तरफ तो ये सिस्टम पारदर्शिता लाएगा, ये सबको मानना है। पर दूसरी तरफ… कुछ लोगों को डर सता रहा है। देखिए न, QR कोड में दुकानदार का नाम-पता तो होगा ही। और यहीं से शुरू होती है मुसीबत। क्या आप जानते हैं कि कई बार नाम या इलाके से किसी के धर्म का अंदाज़ा लगाया जा सकता है? जी हाँ! और यही चिंता इस पूरे मामले को और जटिल बना रही है। सवाल ये उठ रहा है कि कहीं ये नया सिस्टम भेदभाव को ही बढ़ावा देने वाला तो नहीं?

क्या कह रहे हैं जुड़े हुए लोग?

इस मुद्दे पर हर कोई अलग राय रखता है। सरकार वालों का कहना है – “अरे भई, इसमें सिर्फ दुकान की जानकारी होगी, धर्म-जाति का कुछ नहीं!” लेकिन कुछ दुकानदारों की चिंता समझ आती है। उनका डर है कि अगर किसी तरह से उनकी धार्मिक पहचान लीक हो गई, तो उनका धंधा चौपट हो सकता है। वहीं मानवाधिकार वाले भी चेतावनी दे रहे हैं – “Technology तो अच्छी है, पर Privacy का ख्याल रखना ज़रूरी है।” सच्चाई ये है कि इस मामले में सबकी अपनी-अपनी बातें हैं।

आगे क्या? संतुलन बनाने की ज़रूरत

अभी ये सिस्टम UP और Uttarakhand में टेस्ट के तौर पर चल रहा है। सरकार ने थोड़ी छूट भी रखी है, फीडबैक के हिसाब से बदलाव करने को। एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं? वो कहते हैं कि इसमें संतुलन बनाना होगा। एक तरफ श्रद्धालुओं को सुरक्षा चाहिए, तो दूसरी तरफ दुकानदारों की Privacy भी तो महत्वपूर्ण है। असल में, भारत में अभी डेटा प्रोटेक्शन को लेकर स्पष्ट कानून नहीं हैं, जो इस मसले को और उलझा रहा है। सरकार को चाहिए कि सभी पक्षों को बैठाकर एक ऐसा रास्ता निकाले जिससे सबका भला हो।

अब देखना ये है कि आने वाले दिनों में ये मामला किस दिशा में जाता है। Technology और Tradition के बीच संतुलन बनाना… ये कोई आसान काम तो है नहीं। पर एक बात तो तय है – जब तक सभी की चिंताओं को दूर नहीं किया जाता, तब तक ये बहस जारी रहेगी। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे मामलों में जल्दबाजी से बचना चाहिए?

यह भी पढ़ें:

कांवड़ मार्ग पर QR कोड – वो सारे सवाल जो आप पूछना चाहते थे!

1. भईया, ये QR कोड वाली नौटंकी क्यों शुरू की गई?

देखिए, असल में ये पूरा system एक तरह का डिजिटल चौकीदार है। जैसे आपके मोहल्ले में गार्ड हर आने-जाने वाले को चेक करता है, वैसे ही! फर्क सिर्फ इतना है कि ये online होगा। Illegal कामों पर लगाम लगाने का ये एक स्मार्ट तरीका है – और हाँ, थोड़ा टेक-सैवी भी।

2. अरे भई, कहीं QR कोड स्कैन करते ही मेरा धर्म तो नहीं चल जाएगा?

अबे ऐसी कौन सी बात कर दी! (हंसते हुए) नहीं यार, ये कोड आपका Aadhaar कार्ड तो नहीं है। बस नाम-पता और दुकान का रजिस्ट्रेशन नंबर दिखाएगा। धर्म-जाति वाली बातें तो इसमें हैं ही नहीं। सच कहूँ तो मेरा नन्हे भाई का मोबाइल भी इतना डिटेल नहीं दिखाता!

3. मेरे पास तो smartphone ही नहीं… अब मैं क्या करूँ?

अरे घबराइए मत! हर टेक्नोलॉजी का एक देसी जुगाड़ तो होता ही है। आपके लिए वहाँ volunteers होंगे – जैसे रेलवे स्टेशन पर टिकट के लिए हेल्पर मिलते हैं। कुछ जगहों पर तो पुराने ढंग से मैनुअल चेकिंग भी होगी। एकदम आसान।

4. सच-सच बताओ, इस QR कोड से हमें फायदा क्या होगा?

सुनिए, एक तरफ तो ये पूरा सिस्टम और पारदर्शी हो जाएगा – जैसे पार्सल ट्रैक करते हैं न? दूसरी तरफ, अगर कभी emergency हो (भगवान न करे), तो authorities को लोगों का पता लगाने में आसानी होगी। और हाँ, नकली दुकानदारों की दाल भी नहीं गलने वाली। कुल मिलाकर, सुरक्षा के साथ-साथ थोड़ी सुविधा भी।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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