यमन में निमिषा प्रिया को फांसी से कैसे बचाया ग्रैंड मुफ्ती ने? पूरी कहानी जानें

यमन में निमिषा प्रिया को फांसी से कैसे बचाया ग्रैंड मुफ्ती ने? असल कहानी कुछ यूं है…

अरे भई, कभी-कभी जिंदगी में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो सिर्फ एक इंसान की नहीं, पूरे देश की सांसें थाम लेती हैं। केरल की नर्स निमिषा प्रिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ – यमन में फांसी की सजा! सुनकर ही रूह कांप उठती है न? लेकिन फिर क्या हुआ? ग्रैंड मुफ्ती शेख अबु बकर अहमद ने वो कमाल कर दिखाया जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। अब ये केस सिर्फ एक नर्स की जान बचाने की कहानी नहीं रहा, बल्कि इंसानियत, राजनीति और धर्म के बीच के उस नाजुक रिश्ते को दिखा रहा है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।

पूरा माजरा क्या था?

देखिए, निमिषा प्रिया तो बस एक मामूली नर्स थीं जो यमन में नौकरी कर रही थीं। अचानक उन पर हत्या का आरोप! यमन की अदालत ने फांसी की सजा सुना दी। अब यहां से कहानी दिलचस्प होती है – भारत सरकार ने तो कोशिश की, लेकिन असली मोड़ तब आया जब केरल के ग्रैंड मुफ्ती साहब ने मामले में दखल दिया। सच कहूं तो, ऐसे मौकों पर ही पता चलता है कि धार्मिक नेताओं की असली ताकत क्या होती है।

कैसे बच गई निमिषा? असल गेम चेंजर क्या था?

यहां बात सिर्फ कानून की नहीं, बल्कि सियासत और समझदारी की है। ग्रैंड मुफ्ती साहब ने सीधे यमन के धार्मिक नेताओं से बात की। और यहां सबसे अहम बात – उन्होंने इसे मानवाधिकार का मुद्दा बना दिया। क्या आप जानते हैं कि यमन में धार्मिक नेताओं की बात का कितना वजन होता है? शायद उतना ही जितना हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट का! नतीजा? सजा पर रोक और नई जांच का आदेश। है न कमाल की बात?

लोग क्या कह रहे हैं? चाय की दुकान से लेकर संसद तक!

निमिषा के परिवार की खुशी का तो अंदाजा लगाया जा सकता है – उन्होंने तो इसे ‘दूसरा जन्म’ तक कह डाला। केरल के मुख्यमंत्री ने इसे ‘इंसानियत की जीत’ बताया। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि यमन में भी इस फैसले को लेकर दो राय हैं। कुछ कह रहे हैं कि ये सही हुआ, तो कुछ इसे कानून में दखलंदाजी मान रहे हैं। पर सच तो ये है कि जब जान बच जाए, तो बाकी बहसें बाद में हो सकती हैं।

अब आगे क्या? क्या ये केस बदल देगा नियम?

अब तो यमन की अदालत फिर से केस सुनेगी। भारत सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वो निमिषा को सुरक्षित घर लाने की हर कोशिश करेगी। पर मेरी निजी राय? ये मामला सिर्फ एक नर्स तक सीमित नहीं रहा। इसने भारत और यमन के बीच एक नया पुल बना दिया है। और सबसे बड़ी बात – दुनिया को ये याद दिला दी है कि कभी-कभी कानून से ऊपर भी कुछ होता है… इंसानियत!

तो ये थी निमिषा प्रिया की कहानी – जहां एक तरफ कानून था, दूसरी तरफ मानवता। जहां एक तरफ सजा थी, दूसरी तरफ माफी। और बीच में खड़े थे वो लोग जिन्होंने सिर्फ ये साबित किया कि अगर इरादे सच्चे हों तो नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है। अब बस इंतजार है यमन की अदालत के फैसले का… क्या आपको नहीं लगता कि ये केस इतिहास में दर्ज हो जाएगा?

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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