54 फीट की विशाल कांवड़ के साथ भक्तों का जत्था, कांवड़िया पथ पर गूंजा ‘भोले का जयकारा’

54 फीट की कांवड़ और भोले के भक्तों का जुनून – देखिए क्या हुआ!

अरे भई, क्या बताऊं… बिहार के कांवड़िया पथ पर तो जैसे पूरा सावन ही रंग गया! आप सोच रहे होंगे – 54 फीट की कांवड़? सच में? हां भई हां, मैं भी पहले तो यकीन नहीं कर पाया। लेकिन जब अपनी आँखों से देखा तो समझ आया – भक्ति की कोई हद नहीं होती। बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले इस रास्ते पर “बम-बम भोले” के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठा। और वो भी कैसा नज़ारा – दर्जनों भक्त मिलकर उस विशालकाय कांवड़ को उठाए हुए!

असल में देखा जाए तो कांवड़ यात्रा तो हर साल होती है। लेकिन इस बार? इस बार तो बाबा मुंगेर के भक्तों ने कीर्तिमान ही बना डाला। सोचिए ज़रा – 54 फीट! यानी लगभग पांच मंजिला इमारत जितनी ऊंचाई। और ये सब सिर्फ श्रद्धा और जुनून की ताकत से। मुझे तो लगता है अगले साल और लोग इससे भी बड़ी कांवड़ लेकर आएंगे। क्योंकि जब भक्ति का सवाल हो, तो भारत के लोग कभी पीछे नहीं हटते।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी बड़ी कांवड़ बनी कैसे? सुनकर हैरान रह जाएंगे आप – भक्तों ने कई दिनों तक मिलकर काम किया। स्थानीय प्रशासन भी पीछे नहीं रहा। उन्होंने रास्ते में हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराईं। मेरा एक दोस्त जो वहां मौजूद था, उसने बताया – “यार, ऐसा लग रहा था जैसे पूरा गाँव एक परिवार बन गया हो।” और सच में, यही तो है भारत की असली ताकत!

भक्तों की बात करें तो उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। एक श्रद्धालु ने मुझसे कहा – “भईया, ये सिर्फ कांवड़ नहीं, हमारे दिलों की आवाज़ है।” वहीं स्थानीय दुकानदारों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। कोई कह रहा था – “30 साल से यहाँ दुकान चला रहा हूँ, पर ऐसा कुछ कभी नहीं देखा।” सच कहूँ तो, ऐसे पल ही तो जीवन को यादगार बनाते हैं।

अब ये भक्तजन बाबा बैद्यनाथ धाम पहुँचने वाले हैं। कल्पना कीजिए – 54 फीट की कांवड़ से जलाभिषेक! मेरे ख्याल से तो ये सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी बेहतरीन उदाहरण है। और हाँ, local economy के लिए भी ये किसी वरदान से कम नहीं। होटल, दुकानें, ट्रांसपोर्ट – सबको फायदा।

अंत में बस इतना कहूंगा – भारत की यही तो खूबसूरती है। यहाँ आस्था और विज्ञान साथ-साथ चलते हैं। एक तरफ हम मंगलयान भेज रहे हैं, तो दूसरी तरफ 54 फीट की कांवड़ उठा रहे हैं। और दोनों ही मामलों में हम दुनिया को चौंका देते हैं। जय भोले नाथ! 🙏

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54 फीट की कांवड़? सच में? ये क्या चीज़ है और इतनी बड़ी क्यों?

अरे भाई, सुनो! 54 फीट की कांवड़ कोई सामान्य कांवड़ तो है नहीं। सोचो जरा – एक पूरी क्रिकेट पिच के बराबर लंबी कांवड़! इसे उठाने के लिए दर्जनों भक्त मिलकर काम करते हैं। असल में, ये भोले बाबा के प्रति पागलपन भरी भक्ति का नज़ारा है। सच कहूं तो देखने लायक होता है ये!

‘भोले का जयकारा’… ये क्यों इतना ज़रूरी है?

तो सुनिए… कांवड़िया पथ पर जब हज़ारों आवाज़ें एक साथ “बम बम भोले” का नारा लगाती हैं, तो क्या ही कहने! ये सिर्फ नारा नहीं, बल्कि एक एनर्जी बूस्टर है। ऐसा लगता है जैसे पूरा माहौल चार्ज हो गया हो। और हां, इससे भक्तों का हौसला भी बढ़ता है – जैसे मैराथन में लोग एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं, वैसे ही।

कांवड़ यात्रा में शामिल होना चाहते हैं? ये रही पूरी गाइड!

अच्छा, तो आप भी भोले के दीवाने हैं? तो ध्यान दीजिए – सबसे पहले तो एक अच्छी कांवड़ लेनी होगी। Online भी मिल जाएगी, लेकिन मेरा सुझाव? स्थानीय दुकान से लें। फिर पैदल चलने के लिए तैयार हो जाइए – ये कोई पार्क में टहलने जैसा नहीं है! गंगाजल लेकर चलना है तो और भी अच्छा। पर सबसे ज़रूरी? टाइमिंग! देर से पहुंचे तो पछताना पड़ सकता है।

ये झंझट कहाँ-कहाँ देखने को मिलेगा?

देखिए, अगर आप उत्तर भारत में हैं तो आपका नंबर लकी है! हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज – ये तो मुख्य स्पॉट्स हैं। श्रावण महीने में तो जैसे पूरा इलाका ही शिवभक्ति में डूब जाता है। लाखों की भीड़, रंग-बिरंगे कपड़े, भक्ति के गीत… एक अलग ही दुनिया! पर सावधानी भी ज़रूरी है – इतनी भीड़ में खुद को संभालकर रखना होता है।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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