“मेरे बॉस का दिमाग प्रेशर लेने के लिए नहीं बना…” – केंद्रीय मंत्री का अमेरिका-NATO को जवाब, और क्यों ये बयान खास है?
अब तो आदत सी हो गई है न? जब भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत कोई फैसला लेता है, पश्चिमी देशों की भौंहें तन जाती हैं। लेकिन इस बार केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने जिस अंदाज में जवाब दिया, वो सच में काबिले-तारीफ है! उन्होंने साफ कहा – भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए किसी से भी तेल खरीदेगा, चाहे अमेरिका और NATO को ये कितना भी नागवार क्यों न गुजरे। और फिर उसके बाद तो मजा आ गया जब उन्होंने कहा – “मेरे बॉस (यानी मोदी जी) का दिमाग प्रेशर लेने के लिए नहीं बना है।” एकदम सटीक!
यूक्रेन युद्ध, रूसी तेल और भारत की मुश्किल स्थिति
असल में बात ये है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी देश रूस पर जमकर प्रतिबंध थोप रहे हैं। और अब वो चाहते हैं कि भारत भी उनकी इस लाइन में आकर खड़ा हो जाए। लेकिन सवाल ये है कि क्या हम अपने नागरिकों के हितों को नजरअंदाज कर दें? देखिए, तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं, और रूस से मिल रहा डिस्काउंट हमारे लिए वरदान से कम नहीं। तो फिर क्यों नहीं खरीदेंगे? हालांकि, इससे अमेरिका की नाराजगी भी समझ आती है। पर सच तो ये है कि हर देश अपने हित सर्वोपरि रखता है – और हम भी वही कर रहे हैं।
“हम कहीं से भी तेल खरीदेंगे” – और क्यों ये बयान इतना अहम है?
हरदीप पुरी जी ने जो कहा, वो सुनने में भले ही साधारण लगे, लेकिन इसके मायने बहुत गहरे हैं। उनका ये वाक्य – “हम शुरू से ही स्पष्ट थे कि हमें जहां से भी तेल खरीदना होगा, हम खरीदेंगे” – असल में भारत की नई विदेश नीति का प्रतीक है। और फिर उसके बाद तो उन्होंने चेरी ऑन द केक की तरह जोड़ दिया – “मेरे बॉस का दिमाग प्रेशर लेने के लिए नहीं बना है।” बस, इस एक वाक्य ने पूरी बहस का नजरिया ही बदल दिया!
राजनीतिक गलियारों में क्या चल रहा है?
दिलचस्प बात ये है कि इस मामले में विपक्ष भी पूरी तरह एकमत नहीं है। कुछ नेता तो सरकार के स्टैंड की तारीफ कर रहे हैं, वहीं कुछ को अमेरिका से रिश्ते खराब होने की चिंता सता रही है। और अमेरिका की तरफ से? अभी तक खामोशी! शायद वो भी समझ गए हैं कि भारत अब वो देश नहीं रहा जो उनके इशारों पर नाचे। लेकिन ये खामोशी कब तक रहेगी? क्योंकि अगर हम रूस से तेल खरीदना जारी रखते हैं, तो अमेरिकी प्रतिबंधों की आशंका तो बनी ही हुई है।
आगे की राह – क्या होगा अगला मूव?
अब सवाल ये उठता है कि आगे क्या? कूटनीति के इस चेस गेम में अगला चाल कौन सा होगा? विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर चर्चाएं जारी रहेंगी। लेकिन एक बात तो तय है – मोदी सरकार ने अपना पक्ष साफ कर दिया है। और ये सिर्फ तेल खरीदने की बात नहीं है, ये भारत की आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक है। जैसा कि पुरी जी ने कहा – हमारे निर्णय हमारे नागरिकों के हित में होंगे, न कि किसी और के दबाव में। सच कहूं तो, ये नई भारत की आवाज है – आत्मविश्वास से भरी और दृढ़!
तो क्या आपको लगता है कि भारत का ये स्टैंड सही है? या फिर हमें अमेरिका के साथ रिश्ते बिगड़ने की कीमत पर भी रूस से तेल खरीदना चाहिए? कमेंट में बताइए आपकी क्या राय है!
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