Sizewell C न्यूक्लियर प्लांट की कीमत ने बना दिया नया रिकॉर्ड – £38 बिलियन! क्या कह रही है ब्रिटिश सरकार?
दोस्तों, अगर आपको लगता है कि महंगाई सिर्फ हमारे यहाँ बढ़ रही है, तो ब्रिटेन की ये खबर आपको हैरान कर देगी। Sizewell C न्यूक्लियर पावर प्लांट की लागत अब £38 बिलियन (यानी लगभग 4 लाख करोड़ रुपये!) को छूने वाली है। सच कहूँ तो ये आँकड़ा देखकर मेरा भी सिर चकरा गया। और ये सिर्फ निर्माण खर्च नहीं, इसमें वो सभी अप्रत्याशित खर्चे शामिल हैं जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। अब सवाल यह है कि ब्रिटिश मंत्री इस पर क्या बोल रहे हैं?
क्या है इस परियोजना की कहानी?
असल में, Sizewell C ब्रिटेन की उस बड़ी योजना का हिस्सा है जहाँ वो अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाना चाहता है और साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी कम करना चाहता है। मजे की बात ये है कि ये प्रोजेक्ट फ्रांस की EDF Energy और ब्रिटिश सरकार की मिली-जुली पहल है। शुरुआत में तो लागत £20-25 बिलियन के बीच बताई जा रही थी, लेकिन… हालात देखिए न! मुद्रास्फीति, सप्लाई चेन की दिक्कतें और न जाने क्या-क्या। नतीजा? लागत में उछाल जो आसमान छू रहा है।
अब तक का सबसे बड़ा झटका: लागत में 50% की छलांग!
सच बताऊँ तो ये आँकड़े देखकर मुझे लगा कि कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई। £38 बिलियन! यानी पिछले अनुमानों से पूरे 50% ज्यादा। कारण? वही जो हर जगह – निर्माण सामग्री महँगी हो गई, मजदूरी बढ़ गई, और प्रोजेक्ट में देरी हुई। लेकिन हैरानी की बात ये है कि ब्रिटिश सरकार अभी भी इस परियोजना को आगे बढ़ाने पर अड़ी हुई है। शायद उनके पास कोई और विकल्प नहीं है?
किसने क्या कहा? जानिए सभी पक्षों की राय
इस मामले पर तो हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है। ब्रिटेन के ऊर्जा मंत्री का कहना है कि “Sizewell C हमारे ऊर्जा भविष्य के लिए जरूरी है, चाहे लागत कुछ भी हो।” वहीं पर्यावरण कार्यकर्ताओं का गुस्सा भी समझ आता है – उनका कहना है कि इतने पैसे तो नवीकरणीय ऊर्जा में लगने चाहिए थे। और विशेषज्ञ? वो बीच का रास्ता निकाल रहे हैं – हाँ, न्यूक्लियर ऊर्जा महँगी है, लेकिन ये लंबे समय तक ऊर्जा सुरक्षा दे सकती है।
आगे क्या? चुनौतियाँ और संभावनाएँ
अब सरकार और EDF के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – इतने पैसे कहाँ से लाएँ? विश्लेषक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अगर लागत और बढ़ी, तो पूरा प्रोजेक्ट ही खतरे में पड़ सकता है। और तो और, ब्रिटिश संसद में इस पर बहस भी तेज होने वाली है। सच कहूँ तो अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या ब्रिटेन सरकार इस ‘महँगे सपने’ को साकार कर पाएगी। क्या पता, शायद हमें यहाँ से भी कुछ सीखने को मिले!
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com