इजरायल-सीरिया युद्धविराम: क्या अब शांति की उम्मीद बन पाएगी?
अच्छी खबर! इजरायल और सीरिया के बीच चल रही जंग पर आखिरकार युद्धविराम हो गया है। तुर्की में बैठे अमेरिकी राजदूत ने ट्वीट करके इसकी पुष्टि की है। सबसे बड़ी बात ये कि ड्रूज समुदाय के इलाकों में तुरंत गोलाबारी बंद हो जाएगी। पर सच कहूं तो, अब तक की कीमत बहुत भारी पड़ चुकी है – 248 लोगों की जान जा चुकी है। सेना के जवान हों या मासूम नागरिक, मौत तो मौत होती है न?
पूरा मामला पिछले हफ्ते शुरू हुआ था जब इजरायल ने दमिश्क पर हवाई हमला किया। इजरायल का दावा था कि वो तो बस ड्रूज लोगों की सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा था। वहीं सीरिया ने इसे बिना शर्म का अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ने वाला कदम बताया। असल में, दोनों देशों की लड़ाई तो गोलान हाइट्स को लेकर दशकों से चल रही है। नया कुछ नहीं है। पर इस बार हालात बेकाबू हो गए थे।
इस बार अमेरिका और तुर्की ने बीच-बचाव करके समझौता करवाया है। अच्छी बात ये कि ड्रूज इलाकों में तुरंत शांति होगी। UN ने भी मदद बढ़ाने का वादा किया है। पर सच्चाई ये है कि 248 लाशें तो वहीं पड़ी हैं – 112 सैनिक और 136 निर्दोष नागरिक। क्या ये आंकड़े हमें झकझोर नहीं देते?
हर पार्टी का अपना-अपना राग अलापना जारी है। अमेरिका इसे ‘शांति की दिशा में बड़ा कदम’ बता रहा है। सीरिया सवाल कर रहा है कि इजरायल के खिलाफ दुनिया चुप क्यों है? इजरायली PM का कहना है कि वो तो बस सीमा सुरक्षा चाहते थे। और ड्रूज नेता की आवाज़ सुनिए – “बस, अब और खून नहीं!” किसकी बात सही है? शायद सभी की… या शायद किसी की भी नहीं।
अब सबसे बड़ा सवाल – आगे क्या? कहा जा रहा है कि UN की एक टीम निगरानी के लिए आएगी। गोलान हाइट्स पर बातचीत हो सकती है। मानवीय संकट पर ध्यान दिया जाएगा। पर सच तो ये है कि इजरायल और सीरिया के रिश्ते अभी भी बहुत नाज़ुक हैं। क्या पता, कब फिर कोई चिंगारी भड़क उठे। आपको क्या लगता है – क्या ये युद्धविराम टिक पाएगा?
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इजरायल और सीरिया के बीच अचानक युद्धविराम (ceasefire) क्यों? क्या कोई गेम-चेंजर हुआ है?
देखिए, असल में तो ये पूरा मामला अमेरिकी राजदूत की मध्यस्थता (mediation) के बाद ही संभव हो पाया। मगर सवाल ये है कि अचानक इतनी जल्दबाज़ी क्यों? असल वजह तो ड्रूज इलाके में बेकाबू होती हिंसा थी – जहां अब तक 248 बेगुनाह लोगों की जान जा चुकी है। ये आंकड़ा सिर्फ़ एक नंबर नहीं, पूरे 248 परिवारों का सूनापन है।
ड्रूज इलाका: वो जंग का मैदान जिसने सबकी आँखें खोल दीं
यहाँ हालात इतने खराब हो गए थे कि… सुनकर दिल दहल जाए। इजरायल और सीरिया की सेनाएं आमने-सामने थीं – गोलाबारी, धमाके, चीखें… और बीच में फंसे मासूम नागरिक। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तब हस्तक्षेप करना पड़ा जब अस्पतालों तक में गोले गिरने लगे। सच कहूँ तो ये पूरा घटनाक्रम किसी सिनेमा से कम नहीं था।
क्या ये शांति सच में टिकेगी? या फिर से छिड़ेगी जंग?
ईमानदारी से? फिलहाल तो ये सिर्फ़ एक अस्थायी (temporary) साँस लेने का मौका है। लेकिन… और ये बड़ा लेकिन है… अमेरिका और UN दोनों इसे permanent बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं। अगले कुछ हफ़्तों में negotiations की बात चल रही है। पर सवाल ये है कि क्या वाकई दोनों पक्ष गंभीर हैं? या फिर ये सिर्फ़ दुनिया को दिखावा है?
भविष्य क्या लाएगा? दोस्ती या फिर नई दुश्मनी?
एक तरफ़ तो युद्धविराम से तनाव कम हुआ है – ये सच है। लेकिन दूसरी तरफ़… कई मुद्दे अभी भी unresolved पड़े हैं। मेरा मानना है कि अगर ये बातचीत सही दिशा में गई, तो relations improve हो सकते हैं। पर याद रखिए – मध्य पूर्व की राजनीति कभी भी सीधी-सादी नहीं होती।
क्या आपको लगता है ये शांति टिकेगी? नीचे कमेंट में बताइए…
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com