1971 की जंग से आज तक: भारत का वो ‘भाई’ बांग्लादेश अब गुस्से में क्यों?
अजीब विडंबना है न? जिस बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत ने अपना खून बहाया, आज वही बांग्लादेश हमारे खिलाफ नारेबाजी कर रहा है। सोशल मीडिया हो या मुख्यधारा का मीडिया, भारत-विरोधी बयानों की बाढ़ सी आई हुई है। सच कहूं तो ये देखकर दिल दुखता है। पर सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या वाकई 1971 की वो भाईचारे वाली भावना खत्म हो गई? चलिए, इसकी पड़ताल करते हैं।
प्यार-झगड़े की ये कहानी: जानिए पूरा बैकग्राउंड
याद कीजिए 1971 को। पाकिस्तानी फौज के जुल्मों के खिलाफ बांग्लादेशियों का संघर्ष… और भारत ने तब न सिर्फ 10 लाख शरणार्थियों को पनाह दी, बल्कि अपने जवानों का खून भी बहाया। मुजीबुर रहमान के दौर में तो लगता था जैसे दोनों देश एक ही हैं। लेकिन फिर? फिर वो हुआ जो अक्सर होता है – राजनीति ने रिश्तों पर पानी फेर दिया।
असल में देखा जाए तो ये रिश्ता कभी भी 100% मीठा नहीं रहा। सीमा पर तस्करी हो या तीस्ता नदी का विवाद, मतभेद तो हमेशा से थे। पर पिछले कुछ सालों में चीन ने इस आग में घी का काम किया है। है न मजेदार बात? जिस पाकिस्तान से आजादी दिलाई, उससे ज्यादा अब चीन हमारे लिए सिरदर्द बन रहा है।
हाल के झगड़े: आखिर चिंगारी कहां से भड़की?
CAA विवाद तो जैसे पहला बड़ा झटका था। बांग्लादेश को लगा कि भारत उनके अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है। और फिर? फिर तो जैसे बांध टूट गया। सीमा पर गोलीबारी, भारतीय कंपनियों पर नए प्रतिबंध… स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती गई।
मजे की बात ये है कि बांग्लादेशी मीडिया में भारत के खिलाफ जो प्रचार चल रहा है, वो किसी ‘वेल प्लांटेड कैंपेन’ जैसा लगता है। क्या आपको नहीं लगता कि इसमें किसी तीसरे खिलाड़ी का हाथ हो सकता है? हम्म… सोचने वाली बात है।
दोनों तरफ के तर्क: कौन क्या कह रहा?
भारत सरकार तो बड़ी संयमित लग रही है। “बातचीत से हल निकलेगा” वाली पॉलिटिकली करेक्ट भाषा। पर गंभीरता से सोचिए – क्या सच में सिर्फ बातचीत से काम चलेगा? जब तक चीन बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर पैसा बहा रहा है, तब तक?
वहीं बांग्लादेश में तो हालात और भी खराब हैं। शेख हसीना के अपने समर्थक भी अब भारत को ‘दखलअंदाज’ बताने लगे हैं। और विपक्ष? उनके लिए तो भारत एक आसान निशाना है। राजनीति, है न?
आगे क्या? एक अहम सवाल
सच तो ये है कि ये तनाव अभी जल्दी खत्म होता नहीं दिख रहा। व्यापार पर असर पड़ना तय है। पर सबसे बड़ा खतरा? वो है चीन का बढ़ता दखल। अगर बांग्लादेश पूरी तरह चीन के कैंप में चला गया, तो भारत के लिए ये सुरक्षित नहीं होगा। सीधे शब्दों में कहूं तो – बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
अंत में दिल की बात
एक जमाना था जब बांग्लादेश में भारत को ‘मुक्तिदाता’ माना जाता था। आज? आज हालात बदल चुके हैं। पर याद रखिए – इतिहास को पूरी तरह मिटाया नहीं जा सकता। दोनों देशों को समझदारी दिखानी होगी। वरना… वरना इसका खामियाजा पूरे क्षेत्र को भुगतना पड़ेगा।
क्या आपको नहीं लगता कि ये सिर्फ राजनीति है, और आम लोगों के बीच अभी भी भाईचारा कायम है? कमेंट में बताइए।
1971 की जंग ने बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई थी, ये तो हम सब जानते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आज वही बांग्लादेश भारत के खिलाफ नज़र क्यों आ रहा है? असल में, यहां कई पेंच हैं – राजनीति, अर्थव्यवस्था, और समाज के ताने-बाने का एक ऐसा उलझा हुआ गोरखधंधा जिसे समझने के लिए थोड़ा गहराई में जाना पड़ेगा।
तो चलिए, इसे थोड़ा खोलते हैं। एक तरफ तो चीन का बढ़ता दखल है, जो बांग्लादेश को अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रहा है। दूसरी ओर, सीमा पर छोटे-मोटे विवाद और घरेलू राजनीति का दबाव। ईमानदारी से कहूं तो, ये सारे मुद्दे मिलकर रिश्तों में दरार डाल रहे हैं।
लेकिन इतना सब होने के बावजूद, एक सच्चाई यह भी है कि हमारे बीच का इतिहास और संस्कृति का रिश्ता आज भी ज़िंदा है। बंगाली भाषा, संगीत, सिनेमा – ये सब तो हमें जोड़े हुए हैं। सवाल बस यह है कि क्या हम इसे आगे ले जा पाएंगे? समझदारी और सहयोग से ही इसका जवाब मिल सकता है।
एक बात तो तय है – रिश्ते बनाने में सालों लगते हैं, लेकिन बिगड़ने में बस पल भर। सोचने वाली बात है, है न?
(Note: HTML tags preserved as instructed, conversational tone with rhetorical questions, slight imperfections in flow, and a mix of sentence lengths to sound human. English words like ‘Online’ would remain as-is if present in original.)
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com