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जलवायु संकट की मार: भारत और दुनिया में खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतें

जलवायु संकट की मार: अब रोटी-दाल भी मुश्किल से मिलेगी?

अरे भाई, आपने भी नोटिस किया होगा – पिछले कुछ महीनों में grocery का बिल देखकर दिल दहल जाता है। गेहूं, चावल, सब्जियां… यहां तक कि दूध-दही जैसी बेसिक चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। और ये सिर्फ हमारी ही समस्या नहीं। पूरी दुनिया में food inflation ने जैसे सबकी कमर तोड़ दी है। असल में, ये सब climate change की वजह से बढ़े हुए मौसम के उतार-चढ़ाव का नतीजा है। सच कहूं तो अब ये सिर्फ ‘मौसम’ नहीं रहा, बल्कि हमारी जेब पर सीधा हमला बन गया है।

परेशानी की जड़ कहां है?

देखिए न, पिछले 10 सालों में बाढ़, सूखा और बेवक्त की बारिशें कितनी बढ़ गई हैं। 2022-23 में तो heat waves ने हमारे गेहूं और सरसों की फसलों को झुलसा कर रख दिया। और भई, सिर्फ हमारी ही नहीं… Ukraine-Russia war और global supply chain की गड़बड़ी ने तो पूरी दुनिया का खाने-पीने का सिस्टम ही बिगाड़ दिया। मिडिल क्लास और गरीब परिवारों की तो खैर… दो जून की रोटी जुटाना भी अब चुनौती बन गया है।

हाल के हालात: क्या कर रही है सरकार?

तो अब सरकार ने क्या किया? गेहूं-चावल के export पर रोक लगा दी ताकि घर में कम से कम दाल-रोटी तो मिल सके। पर United Nations की recent report देखिए – पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों के दाम पिछले 10 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर हैं। और किसान भाइयों की बात सुनी जाए तो untimely rains और temperature fluctuations ने तो उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया। महाराष्ट्र और पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्यों की हालत तो और भी खराब है।

किसका क्या कहना है?

इस मुद्दे पर तो हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। सरकार कहती है national food security उनकी पहली प्राथमिकता है। किसान नेता गुस्से में हैं कि climate-resilient agriculture को लेकर सरकार सोई रही। और आम आदमी? दिल्ली-मुंबई के लोग तो रोज grocery की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं। Economists की चेतावनी तो और डरावनी है – अगर जल्द climate action नहीं लिया गया तो हालात और बिगड़ेंगे।

आगे क्या? कोई उम्मीद?

अब सवाल यह है कि अगर मौसम यूं ही अप्रत्याशित रहा तो? food production और गिरेगा। सरकार को चाहिए कि किसानों को drip irrigation और drought-resistant crops जैसी तकनीकों के लिए प्रेरित करे। वैश्विक स्तर पर food security policies में बड़े बदलाव चाहिए। और सबसे डरावना? Nutrition crisis का खतरा। जब दाल-रोटी ही महंगी होगी तो पौष्टिक आहार की बात करना भी बेमानी है न?

सच तो यह है कि climate change अब सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं रहा। यह सीधे हमारी थाली पर हमला कर रहा है। अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में हालात और भयावह होंगे। सोचिए, क्या आप तैयार हैं इस नई वास्तविकता के लिए?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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