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“सुप्रीम कोर्ट ने दी सीख: सास-बहू के झगड़े में पति को कैसे निपटाना चाहिए?”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा दिलचस्प बात: सास-बहू की लड़ाई में पति को क्या करना चाहिए?

अरे भई, भारतीय घरों में सास-बहू की टेंशन तो वैसी ही है जैसे चाय में बिस्कुट – अक्सर साथ ही चलती है! और ये झगड़े कितने शादीशुदा जोड़ों की नींद उड़ा देते हैं, ये तो वही जानते हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक बेहद दिलचस्प टिप्पणी की है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की बेंच ने साफ कहा – भईया, पति को चाहिए कि मां का तो सम्मान करे ही, लेकिन बीवी की भावनाओं को भी ठेंगा न दिखाए। सच कहूं तो, ये बैलेंस बनाना उतना ही मुश्किल है जितना गर्मागर्म समोसे पर चटनी डालकर न खोना। कोर्ट ने एक और अच्छी बात कही – बच्चों का भविष्य देखते हुए रिश्तों को थोड़ा मौका देना चाहिए। समझदारी की बात है, है न?

पूरी कहानी क्या है?

देखिए, ये सारी बातें एक तलाक केस की सुनवाई के दौरान सामने आईं। केस में क्या निकला? कि ज्यादातर लड़ाई-झगड़े की जड़ में थी – आपने ग़लत नहीं सुना – सास-बहू की दुश्मनी! कोर्ट ने गौर किया कि पति ने मां और बीवी के बीच तालमेल बिठाने में नाकामयाबी दिखाई। और हुआ वही जो अक्सर होता है – स्थिति और बिगड़ गई। ईमानदारी से कहूं तो, ये केस उस सामाजिक दबाव को फिर से उजागर कर गया जहां मर्द को अक्सर दोनों तरफ से ताली बजाने की कोशिश करते देखा जाता है। मुश्किल है यार!

कोर्ट ने क्या सलाह दी?

सुप्रीम कोर्ट ने पति को एकदम स्पष्ट निर्देश दिए – “भाई, न्याय की देवी की तरह बीच में रहो!” जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “मां का सम्मान ज़रूरी है, लेकिन पत्नी की भावनाओं को कूड़ेदान में न फेंको।” सच कहूं तो, ये बात सुनने में जितनी आसान लगती है, करने में उतनी ही मुश्किल। कोर्ट ने एक और सुनहरी बात कही – ऐसे मामलों में समझौता करना चाहिए, और बच्चों को सबसे ऊपर रखना चाहिए। ये सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक तौर पर भी बेहद अहम बात है।

लोग क्या कह रहे हैं?

अब इस फैसले पर तो हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है। कुछ वकील साहब तो कोर्ट की सलाह को बिल्कुल सही बता रहे हैं – “जी, ये तो बिल्कुल practical बात कही गई है।” वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का कहना है कि हर परिवार की अपनी अलग कहानी होती है – एक ही दवा सब पर काम नहीं आएगी। महिला संगठन? वो तो खुशी से झूम उठे! उनका कहना है कि आखिरकार पतियों को पत्नियों के प्रति संवेदनशील होने की सलाह मिल ही गई। और कुछ social activists ने तो सीधे कह दिया – “यार, ये तो हमारे घरों का रोज़ का सीरियल है, इनके लिए professional counseling ज़रूरी है।” सच्ची बात है!

आगे का रास्ता क्या है?

इस फैसले से भविष्य में ऐसे केसों के लिए एक मिसाल कायम हो सकती है। Experts कह रहे हैं कि घर-परिवार के झगड़ों के लिए mediation और counseling की बहुत ज़रूरत है। समाजशास्त्रियों की राय? उनका कहना है कि पारिवारिक मामलों में पुरुषों की भूमिका को लेकर awareness बढ़ानी होगी। और उनका सुझाव तो बिल्कुल सही है – marriage counseling और family therapy जैसी चीज़ों को बढ़ावा देना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी सिर्फ कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि हमारे समाज के लिए एक आईना है। ये हमें बताती है कि घर की शांति के लिए थोड़ी सी समझदारी, थोड़ा सा संवाद कितना ज़रूरी है। क्योंकि अंत में, रिश्ते ही तो हैं जो हमें इंसान बनाते हैं। है न?

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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