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“संसद में बाधाएं विपक्ष को नुकसान पहुंचाती हैं: किरेन रिजिजू ने सरकार से जवाबदेही की मांग की”

संसद में बवाल: विपक्ष खुद का पैर क्यों काट रहा है? किरेन रिजिजू का सरकार को चुनौती

दिल्ली की सर्दियों से ज्यादा ठंडा तो संसद का माहौल लग रहा है! किरेन रिजिजू ने तो जैसे विपक्ष को लेकर बम फोड़ दिया – कह रहे हैं ये लोग संसद में बाधाएं खड़ी करके खुद ही अपनी क्रेडिबिलिटी गिरा रहे हैं। सच कहूं तो, ये सवाल तो हर किसी के मन में है कि आखिर ये हंगामा किसके फायदे के लिए है? रिजिजू साहब ने सीधे सरकार से पूछा है, “जवाबदेही कब तक टालते रहेंगे?” और इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। सचमुच, चिंता की बात है।

पुरानी कहानी, नए अध्याय: ये गतिरोध कब टूटेगा?

अरे भई, ये तो वही राग है जो पिछले कितने सत्रों से चला आ रहा है। एक तरफ विपक्ष – महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे लेकर चिल्ला रहा है। दूसरी तरफ सरकार – नए कानून और policies पर जोर दे रही है। और बीच में फंस गया है संसद का कामकाज! इस बार भी क्या अलग होने वाला है? सदन तो अभी से ही “जय जवान, जय किसान” के नारों और पेपर फेंकने के खेल में उलझा हुआ है।

आग में घी: रिजिजू का बयान और विपक्ष का गुस्सा

मजा तो तब आया जब रिजिजू ने सीधे तीर चलाया – “ये लोग संसद को debate का मंच नहीं, नाटक का मंच बना रहे हैं!” सच बोलने पर तो विपक्ष को चुभ ही गया। उल्टा उन्होंने सरकार पर आरोप लगा दिया कि ये तो असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल है। नतीजा? लोकसभा-राज्यसभा दोनों का काम ठप। क्या यही तरीका है संसद चलाने का? शर्म तो आती है ऐसे दृश्य देखकर।

राजनीति का पेंच: कौन किसको पछाड़ेगा?

राहुल गांधी तो मानो बैटरी से चल रहे हैं – “सरकार को डर लगता है खुली बहस से!” वहीं अर्जुन राम मेघवाल ने जवाब दिया है कि “विपक्ष का काम ही अराजकता फैलाना है।” लेकिन शरद पवार जैसे दिग्गजों ने संतुलित बयान दिया है – “बोलने का हक सबको, पर अनुशासन भी जरूरी।” असल में, दोनों पक्ष अपनी-अपनी रोटी सेक रहे हैं। 2024 का चुनाव दिखाई देने लगा है क्या?

आगे क्या? एक आम आदमी की चिंता

अब सवाल यह है कि ये ठनी कब तक चलेगी? एक्सपर्ट्स की मानें तो दो ही रास्ते हैं – या तो दोनों पक्ष बैठकर हल निकालें, या फिर महत्वपूर्ण कानून धरे के धरे रह जाएं। और हां, आने वाले राज्य चुनावों को देखते हुए तो ये तूफान और तेज हो सकता है। ईमानदारी से कहूं तो, जनता को क्या चाहिए? बस इतना कि ये नेता अपनी राजनीति से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचें। पर क्या ये संभव है? आप ही बताइए!

[एक सामान्य नागरिक की डायरी से] सच पूछो तो, TV पर ये सब देखकर मन खराब हो जाता है। टैक्स के पैसे से चलने वाली संसद में ये सब… क्या यही है लोकतंत्र? खैर, उम्मीद तो बनाए रखनी ही होगी न!

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Source: Times of India – Main | Secondary News Source: Pulsivic.com

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