जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: क्या सच में सिर्फ संसद टीवी विवाद की वजह से हुआ?
अरे भई, क्या मजाल है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा आपने नोटिस न किया हो! ये तो वाकई में बड़ी खबर है – खासकर तब जब उनका कार्यकाल अभी पूरा होने में एक साल बाकी था। सच कहूं तो, राजनीति के जानकार भी इस कदम से हैरान हैं। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो एक संवैधानिक पदधारी को इस्तीफा देना पड़ा? जो बात सामने आ रही है, वो ये कि संसद टीवी पर एक जूनियर ऑफिसर की नियुक्ति और अप्रैल में प्रसारित हुई कुछ ‘कहानी’ इसकी वजह बनी। लेकिन क्या सच में इतना भर काफी है? ये सवाल तो अब हर किसी के मन में घर कर गया है।
पूरा माजरा क्या है?
देखिए, धनखड़ साहब ने 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था और उनका कार्यकाल काफी शांतिपूर्ण चल रहा था। पर हाल के कुछ महीनों से संसद टीवी को लेकर विवाद चल रहा था। एक तो जूनियर ऑफिसर की नियुक्ति को लेकर प्रोटोकॉल के उल्लंघन के आरोप… दूसरा, अप्रैल में आई वो ‘कहानी’ जिसने राजनीतिक गलियारों में तूफान ला दिया। अब सवाल ये उठता है कि क्या सच में ये दोनों घटनाएं इतनी बड़ी थीं कि उपराष्ट्रपति को इस्तीफा देना पड़े? ईमानदारी से कहूं तो, मुझे लगता है कि यहां कुछ और भी है जो अभी सामने नहीं आया।
अब आगे क्या होगा?
तो अब स्थिति ये है कि नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी जब मालदीव से लौटेंगे, तो एनडीए की बैठक होगी। और हां, विपक्ष तो मौके की तलाश में ही बैठा है – उन्होंने पहले ही पारदर्शिता की मांग कर दी है। मेरा मानना है कि अगर सच में संसद टीवी विवाद ही वजह है, तो सरकार को जनता को पूरा मामला समझाना चाहिए। वैसे भी, इतने बड़े पद से इस्तीफा कोई छोटी-मोटी बात तो है नहीं!
राजनीतिक हलकों में क्या चल रहा है?
दिलचस्प बात ये है कि सरकार और विपक्ष के बीच इस मामले को लेकर बिल्कुल अलग-अलग राय है। सरकारी सूत्र कह रहे हैं कि ये तो बिल्कुल नॉर्मल प्रक्रिया है। वहीं कांग्रेस के एक नेता ने तो सीधे सवाल खड़ा कर दिया – “उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने की वजह जनता को पता होनी चाहिए।” मेरे हिसाब से, अभी तक जो कुछ भी हुआ है, वो सिर्फ आइसबर्ग का टिप है। असली मामला तो अभी सामने आना बाकी है।
अब क्या होगा आगे?
अब सबकी नजरें एनडीए पर हैं कि वो किसे अपना उम्मीदवार बनाते हैं। और हां, संसद टीवी विवाद की जांच की भी पूरी संभावना है – खासकर अगर विपक्ष जोर देता है। एक बात तो तय है – ये मामला सिर्फ एक इस्तीफे तक सीमित नहीं रहने वाला। ये तो संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल खड़ा कर देता है। आने वाले दिनों में और क्या-क्या सामने आता है, वो तो वक्त ही बताएगा।
आखिरी बात
सच तो ये है कि ये मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। जैसे-जैसे नई जानकारियां सामने आएंगी, तस्वीर और साफ होगी। फिलहाल तो ये विवाद संवैधानिक पदों की गरिमा और राजनीति में पारदर्शिता जैसे गंभीर मुद्दों को उठा रहा है। और ये सवाल तो हर भारतीय के मन में होना चाहिए – क्या हमारे संवैधानिक पद वाकई में स्वतंत्र हैं? सोचने वाली बात है, है ना?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com