“उमर अब्दुल्ला ने उठाया संविधान के वादों का सवाल! अदालतों की असली परीक्षा क्या?”

उमर अब्दुल्ला ने पूछा वो सवाल जिससे बचती है हर सरकार! क्या अदालतें संविधान के वादे निभा पाएंगी?

अरे भाई, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तो बिल्कुल सही मुद्दे पर उंगली रख दी। सार्वजनिक मंच से उन्होंने जो कहा, वो सुनकर लगा जैसे कोई बच्चा राजा के नए कपड़ों की सच्चाई बता रहा हो – “संविधान सिर्फ कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि जनता के अधिकारों की गारंटी है।” सच कहूं तो ये बात तो हम सब जानते हैं, लेकिन जब कोई बड़ा नेता इसे इस तरह कह दे तो… वाह! राजनीति में तूफान आ जाता है।

पूरी कहानी समझिए: धारा 370 वाला मामला क्यों है खास?

देखिए न, ये कोई नई बहस नहीं है। 2019 का वो फैसला याद है न, जब धारा 370 हटाई गई थी? उसके बाद से तो जैसे कश्मीर की राजनीति ही नए दौर में प्रवेश कर गई। Supreme Court ने पिछले साल इस फैसले को सही ठहराया, लेकिन सवाल तो अब भी वही है – क्या संविधान के वादे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाएंगे? उमर साहब ने तो बस यही पूछा है।

क्या कहा उमर ने और किसने क्या जवाब दिया?

उनका मुख्य निशाना थी न्यायपालिका – “अदालतों को केवल कानूनी पचड़े में नहीं उलझना चाहिए…” और बस फिर क्या था, राजनीति गरमा गई! BJP तो मानो तैयार बैठी थी – “न्यायपालिका पर दबाव” वाला रटा-रटाया जवाब दे दिया। Congress ने थोड़ा संतुलित रुख अपनाया। पर असली बात तो ये है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को लगता है कि उनकी आवाज़ दबाई जा रही है।

सिविल सोसाइटी की प्रतिक्रियाएं? वो तो हमेशा की तरह दोनों तरफ। कुछ लोग तालियां बजा रहे हैं, कुछ कह रहे हैं “ये तो सियासत है”। लेकिन सच पूछो तो ये बहस जरूरी है – क्या न्यायपालिका को सिर्फ कानून की किताबें पढ़कर फैसले देने चाहिए, या फिर संविधान की आत्मा को भी समझना चाहिए?

अब आगे क्या? राजनीति गरमाएगी या शांत होगी?

मेरा अनुमान? ये मामला तो अभी और उछलेगा। विपक्ष को तो मिल गया नया हथियार! और Supreme Court में अभी धारा 370 से जुड़े और केस पेंडिंग हैं। यानी… स्टोरी टू बी कंटिन्यूड!

जम्मू-कश्मीर की राजनीति तो पहले से ही रोलरकोस्टर चल रही है। उमर अब्दुल्ला जैसे नेता जब ऐसे सवाल उठाते हैं, तो स्थिति और गंभीर हो जाती है। पर सबसे बड़ा सवाल तो ये है – क्या हमारी न्यायपालिका संविधान के वादों को सच्चाई में बदल पाएगी? ये सवाल सिर्फ कश्मीर का नहीं, पूरे भारत का है।

आखिर में बस इतना कहूंगा – उमर अब्दुल्ला ने एक ऐसी बहस छेड़ दी है जो लंबे समय तक चलने वाली है। देखना ये है कि न्यायपालिका इस “असली परीक्षा” में कैसा प्रदर्शन करती है। और हां, अगले कुछ दिनों में टीवी डिबेट्स में इसी पर चिल्लाहट सुनने को मिलेगी – ये गारंटी है!

उमर अब्दुल्ला और संविधान के वादे: असल मुद्दा क्या है? आइए समझते हैं!

1. उमर अब्दुल्ला ने संविधान के किन promises पर उंगली उठाई?

देखिए, बात यहां सिर्फ राजनीति की नहीं है। उमर साहब ने हमारे संविधान की बुनियादी बातों – fundamental rights और justice के मामले में गंभीर सवाल खड़े किए हैं। खासकर जम्मू-कश्मीर के context में। और सच कहूं तो…क्या वाकई ये सवाल गलत हैं? सोचने वाली बात है।

2. Courts की असली परीक्षा क्या है? सच्चाई जानकर हैरान रह जाएंगे!

अरे भाई, real test तो यह है कि कोर्ट हमारे लिए क्या कर रही है। कागजों में basic principles तो सभी लिख देते हैं, लेकिन असली मुद्दा है – fairness, independence और fast justice का। क्या आम आदमी को न्याय मिल पा रहा है? यही तो है सबसे बड़ा सवाल।

3. राजनीति या संविधान? उमर का बयान किस श्रेणी में आता है?

मजेदार बात यह है कि यह बहस दोनों ही मायनों में सही है। हां, उमर अब्दुल्ला एक politician हैं – इसमें कोई शक नहीं। लेकिन उन्होंने judicial system की कमियों को जिस तरह उठाया है, वह तो हम सभी के लिए सोचने का मौका है। एक तरफ राजनीति, दूसरी तरफ संवैधानिक सच्चाई। दिलचस्प न?

4. Supreme Court की भूमिका: Guardian या Spectator?

अब यहां सबसे दिलचस्प मोड़ आता है। Supreme Court को तो हमारे संविधान का रखवाला माना जाता है। लेकिन सवाल यह है – क्या वह सिर्फ कागजी रक्षक है या असली में हमारे rights की हिफाजत कर रहा है? यही तो है पूरे मामले की जड़।

एक बात और – कानून की किताबें और ground reality में अक्सर फर्क होता है। सच्चाई यही है।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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