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“Barak-8 डिफेंस सिस्टम पर इजरायल का धोखा? DRDO की मेहनत को नजरअंदाज कर अकेले मुनाफा कमाने की साजिश!”

बाराक-8 डिफेंस सिस्टम: क्या इजरायल ने भारत के साथ खेला धोखे का खेल?

अरे भाई, एक बड़ा ही दिलचस्प मामला सामने आया है। वो भी हमारे DRDO और इजरायल के बीच! आपको याद होगा बाराक-8 मिसाइल सिस्टम, जिस पर भारत और इजरायल ने साथ मिलकर काम किया था। लेकिन अब पता चला है कि इजरायली कंपनी IAI इसे पूरी तरह से अपनी खुद की तकनीक बता रही है। सच में? हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत को ऐसे नजरअंदाज कर दिया जाए?

कैसे शुरू हुआ ये सब?

देखिए, कहानी तो 2006 की है। उस वक्त दोनों देशों ने मिलकर एक ऐसा डिफेंस सिस्टम बनाने का फैसला किया जो बैलिस्टिक मिसाइलों से लेकर advanced drones तक को मार गिरा सके। सोचिए, हमने सिर्फ पैसे ही नहीं लगाए, बल्कि DRDO के वैज्ञानिकों ने missile guidance system और radar technology में अहम योगदान दिया। अब सवाल यह है कि क्या सच में इजरायल हमारे योगदान को भूल गया?

क्या है विवाद की जड़?

बात ये है कि IAI ने अज़रबैजान और मोरक्को जैसे देशों को ये सिस्टम बेचा – और हैरानी की बात ये कि कहीं भी भारत या DRDO का नाम तक नहीं लिया! ऐसा लगता है मानो हमारे वैज्ञानिकों ने कभी इस प्रोजेक्ट पर काम ही न किया हो। क्या ये सच में साझेदारी का सही तरीका है? भारतीय रक्षा मंत्रालय भी अब इस मामले में सख्त हो गया है।

क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?

DRDO के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. राजन मिश्रा तो बिल्कुल साफ कहते हैं – “ये साझेदारी के बुनियादी नियमों का उल्लंघन है।” और सच भी तो है न? हमने 50% फंडिंग की, तकनीक दी, फिर भी हमारा नाम गायब? रक्षा विश्लेषक अरुण प्रकाश का कहना है कि अगर ये सच साबित हुआ तो भारत को इजरायल के साथ भविष्य के सभी डिफेंस डील्स पर फिर से सोचना चाहिए। वहीं इजरायल की तरफ से बस एक फॉर्मल सा जवाब – “हम जांच कर रहे हैं।” हंसी आती है न?

अब आगे क्या?

अब भारत सरकार के पास कई रास्ते हैं:
– पहला, इजरायल से सीधी बातचीत करके DRDO के योगदान को मनवाना
– दूसरा, अगर गलती साबित हो तो पहले हुए डील्स से रॉयल्टी वसूलना
– और सबसे जरूरी – भविष्य में किसी भी संयुक्त प्रोजेक्ट में IPR को क्लियर करके रखना

एक बड़ा सबक मिला है हमें। अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों में तकनीकी स्वामित्व को लेकर साफ-साफ बात करनी चाहिए। वरना ऐसे ही मामले सामने आते रहेंगे।

ये केवल एक डिफेंस डील का मामला नहीं है। ये हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत और भारत की तकनीकी क्षमता को वैश्विक पहचान दिलाने का सवाल है। देखते हैं, हमारी सरकार इस चुनौती का कैसे सामना करती है। आपको क्या लगता है – क्या इजरायल सच में गलत है, या फिर कोई misunderstanding है?

Barak-8 डिफेंस सिस्टम पर इजरायल का धोखा? – कुछ जरूरी सवाल जो आपके दिमाग में घूम रहे होंगे

Barak-8 डिफेंस सिस्टम आखिर है क्या? और इसके पीछे किसका दिमाग काम कर रहा था?

देखिए, Barak-8 कोई आम मिसाइल डिफेंस सिस्टम नहीं है। यह तो वही है जैसे आपके मोहल्ले का सबसे तगड़ा गार्ड, लेकिन हवाई हमलों के लिए! भारत की DRDO और इजरायल की IAI (Israel Aerospace Industries) ने मिलकर इसे बनाया है। असल में, यह सिस्टम तब काम आता है जब कोई दुश्मन आप पर मिसाइल दाग दे। सोचिए, कितना जरूरी है यह?

तो इजरायल ने DRDO के साथ धोखा कैसे किया? पूरी कहानी समझिए

अब यहां बात दिलचस्प हो जाती है। कुछ लोग कह रहे हैं कि इजरायल ने बड़े चालाकी से काम लिया। टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और पैसे बांटने के मामले में DRDO को पीछे धकेल दिया। मतलब साफ है – सारा क्रेडिट और मुनाफा खुद लेने की कोशिश! कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि भारत के योगदान को जानबूझकर छोटा दिखाया गया। सच क्या है? अभी पूरी तस्वीर सामने आनी बाकी है।

DRDO की तरफ से क्या रिएक्शन आया है?

ईमानदारी से कहूं तो, अभी तक कोई ऑफिशियल बयान नहीं आया है। लेकिन… और यह बड़ा लेकिन है… कुछ अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि DRDO इस मामले को हल्के में नहीं ले रहा। शायद कुछ बड़ा कदम उठाया जाए। पर अभी तो इंतजार ही एकमात्र विकल्प है, है न?

भारत की सुरक्षा में Barak-8 की भूमिका: क्यों यह सिस्टम इतना खास है?

अब सबसे जरूरी बात। Barak-8 भारत की सुरक्षा के लिए क्या कर रहा है? सीधे शब्दों में कहूं तो – यह हमारी एयर डिफेंस को और भी मजबूत बना रहा है। नौसेना हो या वायुसेना, दोनों के लिए यह सिस्टम गेम-चेंजर साबित हो रहा है। दुश्मन की मिसाइलें हों या एयरक्राफ्ट, Barak-8 उन्हें निशाना बनाने में पूरी तरह सक्षम है। एक तरह से देखें तो यह हमारी सुरक्षा की एक और मजबूत परत है। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी तकनीक पर पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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