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“भारत को भारत ही क्यों कहना चाहिए? RSS प्रमुख मोहन भागवत की महत्वपूर्ण बातें”

भारत को भारत ही क्यों कहना चाहिए? RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्या कहा, जानिए पूरा मामला

अरे भई, क्या आपने RSS प्रमुख मोहन भागवत के ताज़ा बयान पर हो रही बहस के बारे में सुना? हाल ही में ‘ज्ञान सभा’ नाम के एक शिक्षा सम्मेलन में उन्होंने एक ऐसी बात कही जिसने सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट्स तक सबको हिला कर रख दिया। उनका कहना था – “भारत को भारत ही कहना चाहिए”। सुनने में साधारण सी बात लगती है न? लेकिन असल में ये एक बड़ी राजनीतिक और सांस्कृतिक बहस का हिस्सा है। और हां, उन्होंने देश की आर्थिक ताकत पर भी ज़ोर दिया – जो कि आज के समय में उतना ही ज़रूरी है जितना कि सुबह की चाय!

अब सवाल यह है कि ये पूरा मामला क्या है? दरअसल, RSS और उससे जुड़े संगठन लंबे समय से भारतीय शिक्षा में ‘देशी’ मूल्यों को शामिल करने की वकालत करते आए हैं। भागवत जी तो खैर इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट हैं। पर क्या आपने नोटिस किया कि पिछले कुछ सालों से ‘India‘ बनाम ‘भारत’ की बहस कितनी तेज़ हुई है? कुछ लोगों को लगता है कि ये सिर्फ़ एक नाम का मसला है, जबकि दूसरों के लिए ये हमारी पहचान का सवाल है। थोड़ा कन्फ्यूजिंग है न?

भागवत जी ने अपने भाषण में कुछ दिलचस्प बातें कहीं। उनका कहना था – “दुनिया ताकत की भाषा समझती है”। और सच कहूं तो ये बात सौ फीसदी सही है। आप चाहे कितनी भी अच्छी बातें कर लें, अगर आपकी अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं है तो कोई सुनने वाला नहीं। है न मज़ेदार बात? उन्होंने शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपराओं को शामिल करने पर भी ज़ोर दिया। मतलब साफ है – पश्चिमी सिस्टम को बिल्कुल छोड़ दें, ऐसा नहीं, लेकिन अपनी जड़ों को भी न भूलें।

अब राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की बात करें तो… भाजपा वाले तो खुश होकर ताली बजा रहे हैं। उनका कहना है कि ये देश की असली पहचान को बचाने की कोशिश है। वहीं विपक्ष वालों को लगता है कि ये सब बेरोजगारी और महंगाई जैसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल है। और हां, एक्सपर्ट्स की राय? वो तो हमेशा की तरह दोनों तरफ है। कुछ कह रहे हैं कि नाम से ज्यादा काम पर ध्यान दो, तो कुछ का मानना है कि सांस्कृतिक पहचान भी उतनी ही अहम है।

अब आगे क्या होगा? देखिए, इस बयान के बाद तो लगता है कि “भारत vs India की बहस फिर से जोर पकड़ेगी। हो सकता है आने वाले दिनों में सरकारी दस्तावेज़ों में ‘भारत’ नाम को ज्यादा तरजीह मिलने लगे। और शिक्षा नीतियों में? वहां तो RSS और उसके सहयोगी संगठन पहले से ही सक्रिय हैं। शायद हमें जल्द ही कुछ नए बदलाव देखने को मिलें।

तो समझिए कि भागवत जी का ये भाषण सिर्फ़ एक नाम की बहस से कहीं आगे की बात है। ये हमारे आर्थिक और सांस्कृतिक आत्मविश्वास के बारे में है। और सच कहूं तो, दोनों ही मोर्चों पर काम करने की ज़रूरत है। अब देखना ये है कि ये बहस किस दिशा में जाती है – वैसे मेरे हिसाब से तो ये चर्चा अभी और गर्म होने वाली है। क्या आपको नहीं लगता?

RSS प्रमुख मोहन भागवत के विचार – जानिए क्या है उनकी सोच और क्यों है ये चर्चा में?

1. RSS प्रमुख मोहन भागवत ने ‘भारत’ नाम पर क्या कहा? असल में बात क्या है?

देखिए, मोहन भागवत जी की बात सुनकर लगता है कि उनका पक्ष बिल्कुल स्पष्ट है। उनका कहना है कि ‘भारत’ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की जड़ों से जुड़ा हुआ है। और सच कहूं तो, उनकी ये बात गलत भी नहीं लगती। ‘India’ की बजाय ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल? हालांकि ये थोड़ा controversial लग सकता है, पर उनका तर्क है कि ये हमारी राष्ट्रीय पहचान को और strong बनाता है। क्या आपको नहीं लगता?

2. ‘भारत’ नाम का असली मतलब क्या है? इतिहास में कहाँ जुड़ता है ये नाम?

अब यहाँ थोड़ा इतिहास की तरफ चलते हैं। ‘भारत’ नाम… ये कोई आजकल की बात तो है नहीं। प्राचीन ग्रंथों से लेकर हमारी संस्कृति तक, ये नाम हर जगह बसा हुआ है। राजा भरत के नाम पर रखा गया ये नाम सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि हमारी विरासत का प्रतीक है। Traditions, unity, सब कुछ इसी एक नाम में समाया हुआ। एक तरह से देखा जाए तो ये हमारी पहचान की नींव है। है न?

3. Official तौर पर क्या स्थिति है? ‘India’ और ‘भारत’ – क्या दोनों चल सकते हैं?

तो अब सवाल यह उठता है कि कानूनन क्या है इसका हल? असल में, भारत के संविधान के Article 1 में साफ लिखा है – “India, that is Bharat”। मतलब दोनों नाम official हैं। लेकिन… यहाँ एक बड़ा लेकिन आता है। RSS प्रमुख की मानें तो ‘भारत’ नाम को priority मिलनी चाहिए। पर सवाल ये है कि क्या वाकई ऐसा हो पाएगा? क्योंकि ‘India’ नाम तो अब global identity का हिस्सा बन चुका है। थोड़ा confusing है न?

4. जनता क्या सोचती है इस पर? किसके पक्ष में है लोग?

अब बात करते हैं public reaction की। और यहाँ तो कहानी बिल्कुल mixed है। कुछ लोग तो ‘भारत’ नाम के पीछे खड़े दिखते हैं – “हमारी roots, हमारी पहचान” वगैरह-वगैरह। वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि ‘India’ नाम से हमें कोई दिक्कत नहीं। Global stage पर ये नाम हमें पहचान दिलाता है। ईमानदारी से कहूं तो, दोनों तरफ के तर्क समझ में आते हैं। पर फैसला? वो तो समय ही बताएगा। आपका क्या ख्याल है?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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