भारत की मानसिक जीत! इंग्लैंड के खिलाफ ड्रॉ मैच में जज्बे की वह कहानी जिसे भूल पाना मुश्किल
अरे भाई, मैनचेस्टर के उस ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर जो हुआ, वो सच में कुछ कमाल था! सोचो जरा – पहली पारी में 311 रनों से पिछड़ने के बाद भी भारतीय टीम ने कैसे मैच को ड्रॉ तक खींच लिया? यह कोई साधारण ड्रॉ नहीं था दोस्तों, बल्कि एक ऐसी लड़ाई जिसने साबित कर दिया कि हमारी टीम में अब वो ‘खाओगे दम?’ वाला attitude आ चुका है। और सच कहूं तो, यही तो टेस्ट क्रिकेट का असली मजा है न?
जब हार तय लग रही थी… पर किसने सोचा था?
देखिए न, सचिन तेंदुलकर ने एक बार कहा था न – “क्रिकेट में कुछ भी असंभव नहीं”। और इस मैच ने तो उनकी बात सच साबित कर दी। भारत पहले ही सीरीज में 2-1 से आगे था, लेकिन पहली पारी में इंग्लैंड का 290 रनों का लीड? भई, कई experts तो मैच को भूलकर अगले टेस्ट की तैयारी करने की सलाह दे रहे थे। पर हमारे लड़कों ने क्या किया? उन्होंने तो जैसे पूरी स्क्रिप्ट ही पलट दी!
और सबसे मजेदार बात? पुजारा का वो क्लासिक 91 रनों का पारा… भई साहब, ये आदमी तो जैसे टेस्ट क्रिकेट के लिए ही बना है! उसके साथ पंत का वो धमाकेदार 89 रन? एक तरफ पुजारा की गंभीरता, दूसरी तरफ पंत का रिस्क लेने का जुनून – यही तो कॉम्बिनेशन काम आया। असल में, इन्होंने न सिर्फ रन बनाए बल्कि सबसे ज्यादा जरूरी चीज बचाई – टाइम। और यहीं से पलटवार शुरू हुआ।
आखिरी दिन का वो ड्रामा… दिल थाम लो!
अब आते हैं मैच के सबसे रोमांचक हिस्से पर – पांचवें दिन का हर ओवर। इंग्लैंड को जीत के लिए 368 रन चाहिए थे, और शुरुआत में तो लगा जैसे वो मोड में आ गए हैं। पर फिर? फिर तो बुमराह और शमी ने जो शो खड़ा किया, वो देखने लायक था! एक के बाद एक विकेट गिरते देख इंग्लैंड का कॉन्फिडेंस कैसे डगमगाया, ये तो उनके चेहरे के एक्सप्रेशन से ही पता चल रहा था।
और यहाँ एक बात समझनी जरूरी है – टेस्ट क्रिकेट में सिर्फ बल्लेबाजी नहीं चलती। हमारे गेंदबाजों ने ये साबित कर दिया कि अगर बॉलिंग यूनिट डिसिप्लिन्ड हो, तो मैच कैसे बचाया जा सकता है। इंग्लैंड के कप्तान रूट को तो आखिर में डिफेंसिव मोड में ही खेलना पड़ा – और यही तो हमारी सबसे बड़ी जीत थी!
टीम की प्रतिक्रियाएं: जोश से भरी हुई
मैच के बाद विराट कोहली का इंटरव्यू? भई, उनके चेहरे पर जो कॉन्फिडेंस था, वो तो कहने ही क्या! उन्होंने कहा – “हमने कभी हार नहीं मानी” – और ये सिर्फ शब्द नहीं थे, पूरी टीम ने मैदान पर यही साबित किया। वहीं दूसरी तरफ इंग्लैंड के कप्तान रूट की बातें सुनकर लगा कि वो भी हमारी टीम के प्रदर्शन से इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह पाए।
और हमारे कोच रवि शास्त्री? उन्होंने तो इस ड्रॉ को जीत के बराबर ही बता दिया। और सच कहूं तो, उनका ये कहना गलत भी नहीं था। क्योंकि जब आप प्रेशर में ऐसा प्रदर्शन करें, तो ये जीत से कम नहीं होता।
अब क्या? सीरीज का वो डिसाइडिंग मोमेंट!
तो अब सवाल यह है कि आगे क्या? पांचवां टेस्ट तो अब डो-ऑर-डाई मैच बन चुका है। भारत के लिए स्थिति साफ है – या तो जीतो, या ड्रॉ करके सीरीज अपने नाम करो। वहीं इंग्लैंड? उनके पास तो सिर्फ एक ही रास्ता बचा है – जीतो या घर जाओ।
एक बात तो तय है – ये मैच भारतीय टेस्ट टीम की बढ़ती ताकत का सबूत है। विदेशी पिच पर, प्रतिकूल हालात में, पिछड़ने के बावजूद मैच बचाने की ये क्षमता… यही तो हमारी नई पहचान बन रही है। और यकीन मानिए, ये सिर्फ शुरुआत है!
आखिरी बात: स्कोरकार्ड पर ड्रॉ, पर दिलों पर जीत!
दोस्तों, इस मैच को अगर आप सिर्फ स्कोरकार्ड से जज करेंगे तो शायद समझ नहीं पाएंगे। क्योंकि ये मैच सच में भारत की मानसिक जीत थी। जब इंग्लैंड के खिलाड़ियों के चेहरे पर निराशा थी, हर भारतीय फैन का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
और सबसे बड़ी बात? इस मैच ने साबित कर दिया कि T20 और ODI के इस दौर में भी, टेस्ट क्रिकेट का अपना एक अलग ही मजा है। वो मजा जहां चरित्र, धैर्य और हिम्मत की हमेशा जीत होती है। एकदम ज़बरदस्त। सच में!
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com