61,000 करोड़ की राफेल मरीन डील: क्या फ्रांस भारत को देगा असली टेक्नोलॉजी, या फिर चकमा?
अभी-अभी खबर आई है कि भारत सरकार ने फ्रांस की कंपनी Safran के साथ एक बड़ा डिफेंस डील किया है – 61,000 करोड़ रुपये का! यानी आपके पूरे गांव को शायद सौ बार खरीदा जा सकता है। मजाक छोड़िए, असल बात ये है कि इस डील में हमें fifth-gen fighter jets के इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी मिलनी चाहिए। पर सवाल यह है – क्या वाकई मिलेगी? क्योंकि पिछली बार General Electric (GE) वाली डील में तो हमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का वो फायदा नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी।
राफेल डील का पिछला इतिहास: क्या इस बार होगा अलग?
देखिए, ये सिर्फ 26 Rafale-Marine jets खरीदने की बात नहीं है। असली मसला तो ये है कि क्या हम इंजन बनाने की पूरी तकनीक हासिल कर पाएंगे? हमारी नौसेना तो मजबूत होगी ही, लेकिन अगर हमें टेक्नोलॉजी मिल जाए तो ये गेम-चेंजर साबित हो सकता है। मगर… हमेशा एक मगर होता है न? GE वाले अनुभव के बाद सरकार भी थोड़ा सतर्क हो गई है। समझ सकते हैं – एक बार जले तो दूध को फूंक-फूंक कर पीते हैं।
अभी क्या चल रहा है? जांच, परख और शर्तों की जंग
Safran तो कह रही है कि वो पूरी टेक्नोलॉजी देगी, लेकिन हमारा रक्षा मंत्रालय है न, सीधे भरोसा करने वालों में से नहीं। इसीलिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई है जो हर छोटी-बड़ी बात की जांच करेगी। अगर सच में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर हो जाता है तो ये हमारे लिए ऐतिहासिक पल होगा। सोचिए – पहली बार हम fifth-generation fighter jets के इंजन खुद बना पाएंगे! लेकिन इतना आसान भी नहीं है।
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स? उम्मीदें और डर
कुछ डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये डील हमारे AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) प्रोग्राम के लिए बहुत मददगार होगी। वहीं दूसरी तरफ, राजनीतिक विपक्ष सवाल उठा रहा है – कहीं ये 2016 की राफेल डील जैसा विवाद तो नहीं? Safran ने तो अपनी तरफ से कह दिया है कि वो पूरा सहयोग करेगी, कोई छुपी हुई शर्तें नहीं हैं। पर हम भारतीय हैं न, हमें वादों से ज्यादा परिणाम पर भरोसा होता है।
आगे क्या? इस डील का भविष्य पर क्या असर होगा
अगर सब कुछ ठीक रहा तो ये डील भारत को defense manufacturing में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगी। लेकिन अगर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में कोई कमी रह गई तो? फिर तो हमें लंबे समय तक विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा। सरकार को इस डील पर फैसला लेने में अभी 3-6 महीने लग सकते हैं। इतना समय तो लगेगा ही न – इतने बड़े सौदे की हर शर्त को तो अच्छी तरह जांचना पड़ेगा। आखिरकार, ये सिर्फ एक डील नहीं, हमारे देश की सामरिक स्वायत्तता का सवाल है।
26 राफेल मरीन जेट्स डील: जानिए वो सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं!
1. ये राफेल मरीन जेट्स डील आखिर है क्या? और इतनी हाय-हाय क्यों?
देखिए, बात यह है कि भारत और फ्रांस के बीच 26 राफेल मरीन जेट्स (हां, समुद्र वाले वर्जन!) की डील चल रही है। कीमत? कोई 61,000 करोड़ रुपये के आसपास। अब सवाल यह कि इतने पैसे क्यों खर्च कर रहे हैं? असल में, ये जेट्स हमारी नौसेना की मुक्का-भिंचाई क्षमता को बढ़ाएंगे। मतलब चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के सामने हमारी पोजीशन और मजबूत होगी। समझे न?
2. सुनने में आ रहा है कि फ्रांस हमें ठग रहा है… सच क्या है?
ईमानदारी से कहूं तो कुछ एक्सपर्ट्स और मीडिया रिपोर्ट्स यही कह रहे हैं कि डील महंगी है और पारदर्शिता नहीं है। लेकिन सरकार और फ्रांस दोनों का कहना है – “यार, सब कुछ साफ-सुथरा है!” अब किस पर यकीन करें? ये तो समय ही बताएगा। हालांकि, पिछली डीलों के मुकाबले ये ज्यादा ट्रांसपेरेंट लग रही है।
3. ये मरीन जेट्स हमारी नौसेना के किस काम आएंगे?
अरे भाई, ये कोई साधारण जेट्स नहीं! टॉप-नॉच टेक्नोलॉजी, लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता, और सबसे मजेदार बात – ये हमारे विमानवाहक पोतों से भी उड़ान भर सकते हैं। मतलब समुद्र में हमारी सुरक्षा और पक्की हो जाएगी। एक तरह से समुद्री सीमा पर हमारी आँख और मुट्ठी दोनों बनेंगे ये जेट्स।
4. क्या ये वही पुरानी राफेल डील है या कुछ नया?
नहीं यार, बिल्कुल नई बात है! 2016 वाली डील तो वायुसेना के लिए थी – 36 जेट्स। ये नई डील नौसेना के लिए है – 26 जेट्स, वो भी समुद्र वाले वर्जन। और हाँ, इसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और मेक इन इंडिया जैसे मसले भी जुड़े हो सकते हैं। मतलब दोनों डीलों में जमीन-आसमान का फर्क है!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com