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ऑस्ट्रेलियाई उम्मीदवार का दावा: जेफरी एपस्टीन से तुलना के बावजूद नहीं बदलूंगा अपना नाम!

ऑस्ट्रेलियाई नेता का ज़बरदस्त जवाब: “Jeffrey Epstein जैसा नाम होने पर भी नहीं बदलूंगा अपनी पहचान!”

अजीब विडंबना देखिए – ऑस्ट्रेलिया के एक राजनीतिज्ञ को सिर्फ अपने नाम (Epstein) की वजह से ट्रोल किया जा रहा है। और उनका जवाब? बिल्कुल साफ – “नाम नहीं बदलूंगा!” सोशल मीडिया से लेकर राजनीति तक, ये मामला गर्मा गया है। असल में बात ये है कि उनका नाम उस कुख्यात Jeffrey Epstein से मिलता-जुलता है – जिसके बारे में आप जानते ही हैं। लेकिन यहां सवाल ये उठता है – क्या सिर्फ नाम की समानता से किसी को जज करना सही है?

पूरा मामला क्या है?

इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। Jeffrey Epstein – वो अमेरिकी फाइनेंसर जिसके बारे में कितनी भयानक कहानियां सुनने को मिलती हैं। नाबालिगों से लेकर हाई-प्रोफाइल लोगों तक… और फिर जेल में उसकी रहस्यमय मौत। सच कहूं तो, ये नाम सुनते ही दिमाग में एक डार्क इमेज आ जाती है।

अब इस ऑस्ट्रेलियाई नेता का दुर्भाग्य देखिए – उनका भी सरनेम Epstein है! हालांकि दोनों का आपस में कोई कनेक्शन नहीं, फिर भी लोग उन्हें ट्रोल करने से बाज नहीं आ रहे। राजनीतिक विरोधी तो जैसे इसी का इंतज़ार कर रहे थे। पर इस बार नेता साहब ने साफ कह दिया – “नाम नहीं बदलने वाला।” और सच कहूं तो, इसमें उनकी बात भी तो ठीक है ना?

लोग क्या कह रहे हैं?

इस मामले पर राय बंटी हुई है। एक तरफ उनके समर्थक उनकी हिम्मत की तारीफ कर रहे हैं। एक शख्स ने तो यहां तक कहा – “ये तो वैसा ही है जैसे कोई आपको गाली दे और आप उसकी भाषा सीखने लग जाएं!” दूसरी ओर विपक्ष वालों को लगता है कि ये जिद्द है। एक नेता ने तो ये तक कह डाला – “अगर नाम से दिक्कत हो रही है तो बदल लेना चाहिए।”

सोशल मीडिया पर तो मजा आ गया है। किसी ने पूछा – “अगर आपका नाम Hitler होता तो?” जवाब मिला – “तब भी नहीं बदलता! मेरी पहचान मेरे काम से होनी चाहिए, नाम से नहीं।” बात में दम तो है!

असली सवाल क्या है?

ये सिर्फ एक नाम का मामला नहीं रहा। देखा जाए तो ये एक बड़े सवाल की तरफ इशारा करता है – क्या हम किसी को सिर्फ उसके नाम से जज कर सकते हैं? ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में ये बहस अब नया मोड़ ले चुकी है।

अब सबकी नजर इस पर है कि ये फैसला नेता के लिए फायदेमंद साबित होगा या नहीं। कुछ का कहना है कि इससे उनकी ‘मजबूत इरादों वाले नेता’ की छवि बनेगी। वहीं दूसरों को लगता है कि ये उनके खिलाफ जा सकता है। पर एक बात तय है – ये मामला नाम और पहचान के बारे में गंभीर सोचने पर मजबूर कर देता है।

आखिर में, सवाल वही रह जाता है – क्या हम सच में इतने संकीर्ण सोच वाले हो गए हैं? सोचिएगा जरूर…

Source: NY Post – US News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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