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स्लीपर क्लास में मारामारी की असली वजह! AC कोच खाली क्यों रहते हैं? जानें सच्चाई

स्लीपर क्लास में मारामारी और AC कोच का सन्नाटा – असली कहानी क्या है?

अगर आपने कभी भारतीय रेल में सफर किया हो, तो यह दृश्य आपको जरूर हैरान करता होगा – एक तरफ स्लीपर क्लास में लोग एक-दूसरे पर चढ़े हुए, वेटिंग लिस्ट के नाम पर कबाड़ा… और दूसरी तरफ AC कोच में सन्नाटा! सच कहूं तो मैंने भी कई बार सोचा है – भई ये कैसा नाटक है? आखिर क्यों हम भारतीय यात्री इस तरह की जंगलराज वाली यात्रा को तरजीह देते हैं?

पैसा ही पैसा है भाई!

इसकी जड़ में है हमारी जेब। सीधे शब्दों में कहूं तो – स्लीपर क्लास का किराया AC कोच से लगभग आधा होता है। और भारत में जहां 80% लोग middle class या उससे नीचे आते हैं, वहां ये 50% का फर्क बहुत मायने रखता है। मान लीजिए, आपको दिल्ली से मुंबई जाना है। स्लीपर में 800 रुपये और AC में 1500। अब एक परिवार के 4 सदस्यों का सफर हो तो फर्क समझ आता है न? 2800 vs 6000!

और हां, गर्मी हो या सर्दी – ये ट्रेंड बदलता नहीं। मजे की बात ये है कि हम भारतीयों को discomfort की इतनी आदत हो चुकी है कि हम AC की सुविधा को luxury समझने लगे हैं। जबकि असल में ये तो basic comfort है। पर क्या करें – “जैसे चल रहा है, चलने दो” वाली मानसिकता!

वेटिंग लिस्ट का खेल – एक अजीब सा प्यार

अब ये रही सबसे मजेदार बात! हम भारतीयों को वेटिंग लिस्ट से एक अजीब सा प्यार हो गया है। जैसे कोई लॉटरी हो। “क्या पता कन्फर्म हो जाए!” वाली उम्मीद। AC कोच में तुरंत कन्फर्म सीट मिलने के बावजूद हम स्लीपर की वेटिंग लिस्ट में नाम लिखवाना पसंद करते हैं। क्यों? क्योंकि हमें लगता है – “अरे, कोई न कोई तो कैंसिल करेगा!” और सच कहूं तो 90% मामलों में सीट मिल भी जाती है।

मेरे एक दोस्त ने तो यहां तक कहा – “भई, वेटिंग लिस्ट में नाम आया हो और सीट मिल गई हो तो मजा ही कुछ और है!” है न अजीब साईकोलॉजी?

यात्रियों की आवाज – क्या कहते हैं लोग?

मैंने कुछ यात्रियों से बात की तो पता चला – “साहब, महीने में 30-40 हजार कमाने वाले के लिए AC ट्रेन में सफर करना luxury है।” एक अंकल ने तो बड़ा दिलचस्प जवाब दिया – “बेटा, जब हम गर्मी में बिना पंखे के सो सकते हैं तो AC ट्रेन क्या चीज है?” सच में, हमारी सहनशक्ति देखकर हैरानी होती है!

वहीं दूसरी ओर, रेलवे के बाबू लोग कहते हैं कि समस्या का हल dynamic pricing में हो सकता है। मतलब, ऑफ-सीजन में AC टिकट सस्ते कर दो। पर सवाल ये है कि क्या वाकई ये काम करेगा? मेरे ख्याल से नहीं, क्योंकि…

असली समस्या कहीं और है!

देखिए, मैंने एक पैटर्न नोटिस किया है। IRCTC की वेबसाइट पर AC कोच बुक करने की प्रक्रिया थोड़ी… खैर, जटिल है। बहुत सारे ऑप्शन, बहुत सारे steps। जबकि स्लीपर क्लास का टिकट लेना रेलवे स्टेशन पर टोकन लेने जितना आसान है। और हम भारतीयों को तो ‘कुछ भी complex’ पसंद नहीं आता न!

सोशल मीडिया पर तो लोग और भी मजेदार सुझाव देते हैं। कोई कहता है AC कोच में भी स्लीपर जैसी भीड़ कर दो! कोई कहता है स्लीपर के डिब्बे हटा दो! पर असल समाधान शायद इनमें से कोई भी नहीं है।

तो क्या होगा आगे?

मेरी नजर में, जब तक हमारी आम जनता की आय नहीं बढ़ती, तब तक ये हालात बदलने वाले नहीं। और रेलवे? वो तो बस अपनी मर्जी से चल रहा है। कभी स्लीपर के डिब्बे बढ़ा देता है, कभी AC के किराए में छूट दे देता है। पर असल बदलाव तो तब आएगा जब…

जब हम खुद ये सोचना शुरू करेंगे कि comfort luxury नहीं, जरूरत है। पर उस दिन के आने तक? स्लीपर क्लास में धक्का-मुक्की और AC कोच में सन्नाटा – ये सिलसिला चलता रहेगा। क्या कहते हो आप?

यह भी पढ़ें:

स्लीपर क्लास में मारामारी और AC कोच खाली रहने की सच्चाई – जानिए पूरी कहानी

1. स्लीपर क्लास में इतनी भीड़ क्यों होती है? क्या वजह है?

देखिए, बात बिल्कुल साफ है। स्लीपर क्लास भारत की जनता का प्यारा विकल्प है – और क्यों न हो? Affordable tickets, decent comfort, और हर ट्रेन में मिल जाता है। अब सोचिए, जब एक middle-class परिवार को 500km की यात्रा करनी हो, तो वो AC के लिए 3 गुना पैसे क्यों खर्च करे? सच तो ये है कि availability भी ज्यादा होती है SL में, इसलिए भीड़ स्वाभाविक है।

2. AC कोच अक्सर खाली क्यों दिखते हैं? क्या ये सच है?

असल में ये पूरी तरह सच नहीं है। AC कोच भी पूरे भर जाते हैं – पर सिर्फ peak seasons में! बाकी समय… हालात देखकर दिल दुख जाता है। मुख्य वजह? कीमत, बिल्कुल! एक 3AC का टिकट कभी-कभी SL से दोगुना से भी ज्यादा हो जाता है। और ईमानदारी से कहूं तो, जब तक आप business class में ट्रेवल नहीं कर रहे, ज्यादातर लोगों को ये खर्च बेमानी लगता है।

3. क्या ट्रेनों में सीटों का बंटवारा सही है? सिस्टम काम कर रहा है?

यहां बात थोड़ी पेचीदा हो जाती है। Indian Railways ने dynamic pricing लागू किया है – जो कि सिद्धांत में तो बढ़िया है। लेकिन असलियत? कुछ routes पर तो ये सही चल रहा है, पर ज्यादातर जगह SL और AC के बीच का अंतर बहुत ज्यादा है। एक तरफ तो SL में लोग एक-दूसरे पर चढ़कर सफर कर रहे होते हैं, दूसरी तरफ AC में सीटें खाली… क्या ये सही है? शायद नहीं।

4. सरकार इस ओर ध्यान दे रही है? कोई समाधान होगा?

अच्छा सवाल! कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए हैं – जैसे कि कुछ ट्रेनों में SL कोच बढ़ाए गए हैं। AC के rates में भी revision हुआ है। पर मेरी निजी राय? ये काफी नहीं है। नई ट्रेनें शुरू हो रही हैं हां, लेकिन demand तो बढ़ती ही जा रही है। एक बड़ी समस्या ये भी है कि off-season में AC कोचों का utilization बहुत कम हो जाता है। शायद इसके लिए कोई flexible pricing model चाहिए। क्या पता, भविष्य में कोई बेहतर समाधान निकले!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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