हजारों छोटे व्यवसाय डूबने के कगार पर! संगठनों की चिंता सही है या नहीं?
देखिए, भारत का MSME सेक्टर आजकल जिस मुसीबत से गुजर रहा है, वो कोई मामूली बात नहीं। अमेरिका ने जो नए टैरिफ लगाए हैं, उनका असर तो दिखने लगा है – छोटे कारोबारियों की कमर टूटने वाली है। और सच कहूं तो, ये सिर्फ उद्यमियों की समस्या नहीं रह गई है। पूरी इकोनॉमी के लिए ये चिंता की बात बन चुकी है। क्यों? क्योंकि जब छोटे व्यवसाय डूबेंगे, तो असर तो पूरे देश पर पड़ेगा ना?
पूरा माजरा क्या है? टैरिफ बढ़ने से क्या हुआ?
असल में बात ये है कि अमेरिका ने भारतीय सामानों पर टैरिफ बढ़ा दिए हैं। और ये कोई छोटा-मोटा इश्यू नहीं है। आपको पता ही होगा कि MSME सेक्टर को हमारी इकोनॉमी की ‘बैकबोन’ कहा जाता है – रोजगार देने से लेकर स्थानीय उत्पादन तक, हर चीज में इसकी अहम भूमिका है। लेकिन सच तो ये है कि पहले से ही कोविड और मंदी की मार झेल रहे ये उद्यमी, अब इस नए झटके को संभाल पाएंगे? शक है।
संगठनों की चेतावनी: “अब बचाओ, वरना…”
अब तो MSME संघ भी खुलकर बोल रहे हैं – सरकार को तुरंत कुछ करना होगा। वरना हालात ये हो जाएंगे कि हजारों फैक्ट्रियां और दुकानें बंद हो जाएंगी। समझिए ना, टैरिफ बढ़ने से हमारा सामान अमेरिका में महंगा हो गया है। नतीजा? मांग गिरी है, निर्यात घटा है, और छोटे व्यवसायों की आमदनी सिकुड़ रही है। सबसे डरावनी बात? लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में हैं। ये कोई छोटी-मोटी बात तो है नहीं!
क्या कर रही है सरकार? क्या कह रहे हैं उद्योगपति?
उद्योग जगत की मांग साफ है – सरकार को अमेरिका से बात करके टैरिफ कम करवाने होंगे। वरना… खैर, ‘वरना’ का मतलब आप समझ ही रहे होंगे। वाणिज्य मंत्रालय कह रहा है कि बातचीत चल रही है। लेकिन ईमानदारी से? अभी तक कुछ ठोस नहीं हुआ है। और तो और, कई उद्यमी तो मानने लगे हैं कि अब बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। दुखद, लेकिन सच्चाई।
आगे क्या? क्या कोई रास्ता बचा है?
अगर जल्द ही कोई राहत नहीं मिली तो… खैर, उस स्थिति के बारे में सोचना भी डरावना है। कुछ कारोबारी तो अब यूरोप और दूसरे मार्केट्स की तरफ देख रहे हैं। समझदारी की बात है – अमेरिका पर निर्भरता कम करो। पर सवाल ये है कि क्या ये इतना आसान है? और दीर्घकालिक असर की बात करें तो GDP ग्रोथ पर भी फर्क पड़ेगा। क्योंकि MSME का योगदान तो हम सभी जानते हैं।
आखिर में एक बात साफ है – ये संकट सिर्फ कुछ व्यवसायियों तक सीमित नहीं रहने वाला। पूरी इकोनॉमी हिल जाएगी। सरकार और उद्योग जगत को मिलकर कुछ करना होगा। वरना… खैर, वरना वाली स्थिति में हम सभी को भुगतना पड़ेगा। सच कहूं तो, अब समय आ गया है जब सभी को एक साथ आना होगा।
हजारों छोटे व्यवसाय डूब रहे हैं – आपके सवाल, हमारे जवाब
1. असल में छोटे व्यवसायों की हालत कितनी खराब है?
देखिए, सच तो यह है कि financial crisis तो बस शुरुआत है। Supply chain की दिक्कतें, ग्राहकों की कम होती जा रही खरीदारी – ये सब मिलकर एक ऐसा तूफ़ान बना रहे हैं जिसमें कई दुकानदार डूबने के कगार पर हैं। और हाँ, बंद होने का खतरा? वो तो बिल्कुल असली है।
2. सरकार वालों ने कुछ किया या नहीं?
ऐसे तो सरकार ने relief packages और loan schemes ज़रूर announce किए हैं। लेकिन यहाँ दिक्कत क्या है? ज़मीन पर असर नहीं दिख रहा। बहुत से छोटे दुकानदारों तक यह मदद पहुँच ही नहीं पा रही। कागज़ों में तो सब कुछ ठीक है, पर असलियत? वो आपसे बेहतर कौन जानता है!
3. तो फिर इस मुसीबत से कैसे निपटें?
सुनिए, यहाँ तीन चीज़ें काम आएँगी – पहला, expenses काटो जितना काट सकते हो। दूसरा, online platforms को गले लगाओ। और तीसरा सबसे ज़रूरी – ग्राहकों से बातचीत बनाए रखो। याद रखिए, आज के समय में silent रहना सबसे बड़ी गलती है।
4. यह समस्या सिर्फ हमारी है या पूरी दुनिया परेशान है?
नहीं, यह कोई सिर्फ भारत की मुसीबत नहीं है। पूरी दुनिया इससे जूझ रही है। पर हमारे छोटे व्यवसायों पर मार इसलिए ज़्यादा पड़ रही है क्योंकि resources तो हमारे पास पहले से ही कम थे। जैसे बारिश में छोटी नाव को तूफ़ान में डाल दो – समझ आया न मेरा मतलब?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com