संसद का बढ़ता खर्च: क्या हमारे नेता पैसे उड़ा रहे हैं या ये जायज़ है?
अभी-अभी संसद के खर्च के नए आंकड़े आए हैं, और हैरानी की बात नहीं – सत्र चलते ही खर्च आसमान छूने लगता है! सच कहूँ तो मुझे पहले से ही अंदाज़ा था, लेकिन जब असल नंबर्स देखे तो लगा – अरे भई! ये तो बहुत ज़्यादा है। सवाल यह है कि जब संसद बंद रहती है तब तो ये भवन भूतहा सा लगता है, फिर सत्र शुरू होते ही पैसों की बारिश क्यों शुरू हो जाती है? ये सिर्फ पैसे का मसला नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की कार्यशैली पर एक बड़ा सवाल है।
पहले इतिहास समझ लेते हैं
देखिए, इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। 50-60 के दशक में तो हमारे नेता सच में मेहनत करते थे – साल के 120-130 दिन संसद चलती थी! आज? बस 60-70 दिन। सच बताऊँ? मुझे लगता है ये आलस बढ़ने का नतीजा है। और जाहिर है, जब सत्र कम होंगे तो उन दिनों खर्च तो बढ़ेगा ही।
अब आते हैं खर्च बढ़ने के कारणों पर। सबसे पहले तो – भत्ते! जी हाँ, सांसदों और उनके स्टाफ को सत्र के दौरान अतिरिक्त भत्ता मिलता है। फिर सुरक्षा का खेल – जैसे ही सत्र शुरू होता है, security का पूरा circus लग जाता है। बिजली-पानी का बिल तो छोड़िए, ACs पूरे दिन चलते हैं। गैर-सत्र के दिनों में बस basic maintenance और कुछ committee meetings – उतने में कितना ही खर्च आएगा?
अब नंबर्स की बात करें
2022-23 के बजट के मुताबिक, सत्र के दिनों में daily खर्च 5-7 करोड़! और बाकी दिन? महज़ 1-2 करोड़। यानी सत्र शुरू होते ही खर्च 5 गुना! है न मज़ेदार? Technology ने कागज़ तो बचाया है, पर security और tech upgrade पर खर्च बढ़ा दिया है। मोबाइल recharge करते समय जैसे हम data pack के लिए extra pay करते हैं, वैसे ही!
एक दिलचस्प बात – paperless parliament की बात हो रही है। अच्छी बात है, पर क्या हमारे बुजुर्ग नेता tablets चलाना सीख पाएँगे? मुझे तो शक है।
राजनीति तो होगी ही!
सरकार कहती है ये सब जायज़ है – संसद चलेगी तो खर्च तो होगा ही। विपक्ष का रोना – “सत्र कम हो रहे हैं, गंभीरता नहीं दिखा रहे!” सच तो ये है कि दोनों पक्षों के अपने-अपने agenda हैं। कुछ experts का कहना है कि technology से efficiency बढ़ सकती है। पर मेरा सवाल – क्या हमारे नेता Zoom meeting भी ठीक से कर पाते हैं?
आगे की राह
असल में solution तो simple है – या तो सत्र बढ़ाओ (जो नेताओं को पसंद नहीं), या फिर खर्च कम करो। paperless parliament एक अच्छा कदम हो सकता है, पर इसमें समय लगेगा। और हाँ, transparency बेहद ज़रूरी है – tax payers का पैसा है आखिर!
मेरी निजी राय? संसद को साल में 150 दिन चलना चाहिए। हाँ, खर्च बढ़ेगा, पर democracy के लिए ये investment जायज़ है। वैसे भी, जब हम IPL के लिए हज़ारों करोड़ खर्च कर सकते हैं, तो अपने लोकतंत्र पर थोड़ा और क्यों नहीं?
अंत में एक बात – पैसा खर्च होना बुरी बात नहीं, बुरी बात है बिना accountability के पैसा उड़ाना। क्या हमारे नेता इस सबक को समझेंगे? वक्त बताएगा।
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1. आखिर संसद का खर्च सत्र के दिनों में इतना क्यों बढ़ जाता है?
देखिए, यहां समझने वाली बात यह है कि सत्र चल रहा हो तो पूरी संसद जिंदा हो उठती है। MPs से लेकर मंत्रियों तक, सबकी हलचल बढ़ जाती है – और जहां movement होगी, वहां पैसा तो खर्च होगा ही ना? Travel से लेकर hotel stays तक, security arrangements से लेकर daily allowances तक… ये सब मिलाकर बिल जमा होता है। और भी सर, documents की printing हो या technology का इस्तेमाल, ये सब छोटे-छोटे खर्चे मिलकर बड़ा आंकड़ा बना देते हैं।
2. सत्र नहीं चल रहा हो तो संसद में क्या चलता है?
अरे भई, ऐसा नहीं कि सत्र बंद होते ही सब सो जाते हैं! MPs अपने-अपने constituencies में जनता के काम निपटाते हैं, कमेटियों की meetings होती रहती हैं, policies पर research चलता रहता है। और संसद भवन? वहां तो maintenance का काम लगा ही रहता है। हां, एक फर्क जरूर होता है – रोजमर्रा के खर्चे थोड़े कम हो जाते हैं। पर काम तो चलता ही रहता है ना!
3. क्या सच में सत्र के दिनों में MPs को extra पैसे मिलते हैं?
सीधी बात – हां मिलते हैं। पर इसमें हैरानी वाली क्या बात है? आखिर दिल्ली आने-जाने, रहने-खाने का खर्चा तो निकलेगा ही ना! जो MPs दूर से आते हैं, उनके लिए तो travel और accommodation का इंतजाम होना लाजमी है। ईमानदारी से कहूं तो ये facilities जायज हैं, लेकिन हां, इससे खर्चे बढ़ते जरूर हैं।
4. क्या संसद के खर्चे को कंट्रोल करने के तरीके हो सकते हैं?
अब यहां दो बातें हैं। एक तरफ तो हम digital solutions अपना सकते हैं – जैसे e-documents से कागज बचाना, sessions को और efficient बनाना, फालतू के travel कम करना। लेकिन दूसरी तरफ… याद रखिए, ये संसद है बस स्टैंड नहीं! Democracy के लिए जरूरी है कि यह सही तरीके से चले। तो बैलेंस बनाना ही होगा। न ज्यादा, न कम – बस ठीक-ठाक।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com