चीन को पीछे छोड़ 6.4 लाख करोड़ का ये आंकड़ा क्यों बन रहा है सरदर्द? असली कहानी समझिए!
देखिए, हाल में CRISIL की एक रिपोर्ट ने तो जैसे सरकारों के बजट पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। मजे की बात ये कि हमारे राज्य अब सामाजिक योजनाओं पर 6.4 लाख करोड़ खर्च करने वाले हैं – यानी GDP का लगभग 2%! चीन से भी ज्यादा। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या ये खर्च वाकई में सस्टेनेबल है? क्योंकि इसकी वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट जैसे जरूरी मोर्चे पीछे छूटते दिख रहे हैं।
मुफ्त की दावत: फायदा या नुकसान?
भईया, पिछले कुछ सालों में तो ‘मुफ्त की संस्कृति’ (freebie culture) ने जैसे राजनीति का चेहरा ही बदल दिया है। बिजली से लेकर बस यात्रा तक, नकद हस्तांतरण से लेकर पानी तक – सब कुछ मुफ्त! राजनीतिक दलों के लिए तो ये वोट बैंक का सबसे आसान फॉर्मूला बन गया है।
पर सच कहूं? एक तरफ तो ये गरीबों की मदद करता है, लेकिन दूसरी तरफ अर्थशास्त्री इसके लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स को लेकर चिंतित हैं। CRISIL की ही रिपोर्ट कहती है कि ये खर्चा राज्यों के वित्त पर इतना दबाव डाल रहा है कि… अस्पताल, सड़क और शिक्षा जैसी बुनियादी चीजें पीछे रह जाएंगी।
चीन से आगे तो हैं, पर क्या इसकी कीमत चुकाने को तैयार हैं हम?
यहां सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि हम चीन को सोशल स्पेंडिंग में पीछे छोड़ चुके हैं। पर देखिए न, चीन अपना पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रोडक्टिव सेक्टर्स में लगा रहा है, जबकि हमारे यहां तो मुफ्तखोरी का दौर चल निकला है।
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये सारी योजनाएं कर्ज लेकर चलाई जा रही हैं। और अगर यही ट्रेंड रहा तो? राजस्व घाटा आसमान छूएगा। फिर क्या होगा? गेस कीजिए…
क्या कह रहा है देश?
इस मुद्दे पर तो हर कोई अलग-अलग राग अलाप रहा है। अर्थशास्त्री चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि ये फ्रीबी कल्चर राज्यों को दिवालिया कर देगा। सत्ता में बैठे लोगों का कहना है कि गरीबों की मदद करना जरूरी है। विपक्ष? उनके लिए तो ये महज वोट बैंक पॉलिटिक्स है।
आम आदमी की राय? वो भी दो खेमों में बंटी है। कुछ लोग इसे अपना हक मानते हैं, तो कुछ को डर सता रहा है कि आगे टैक्स बढ़ेगा और बुनियादी सुविधाएं चौपट हो जाएंगी।
भविष्य के लिए रेड अलर्ट!
अगर अभी खर्चों पर लगाम नहीं लगी तो? राज्यों को भारी कर्ज के संकट से जूझना पड़ेगा। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट ठप्प होगा, नौकरियां कम होंगी, और GDP ग्रोथ रेट गिरेगा।
तो क्या सलाह दे रहे हैं एक्सपर्ट्स? बैलेंस्ड अप्रोच! सोशल वेलफेयर भी जरूरी है, पर साथ ही प्रोडक्टिव इन्वेस्टमेंट्स और राजस्व बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा। सिर्फ मुफ्तखोरी से तो देश आगे नहीं बढ़ेगा न भाई!
यह भी पढ़ें:
- China Urea Rare Earth Metal Anger India Economic Growth
- India China Relations
- India China Relations 2
अब देखिए, भारत ने चीन को पीछे छोड़कर एक बड़ी कामयाबी तो हासिल कर ली है – और यह बात गर्व महसूस करवाती है। लेकिन सच कहूं तो, यह 6.4 ट्रिलियन का आंकड़ा मुझे थोड़ा डरा भी रहा है। आपको नहीं लगता कि हमें इसके पीछे छिपे मतलब को समझने की जरूरत है?
असल में बात यह है कि अब हमें सिर्फ खुश होने के बजाय थोड़ा सतर्क भी रहना होगा। यह उतना ही जरूरी है जितना कि तेज रफ्तार गाड़ी चलाते समय ब्रेक का ध्यान रखना। एक तरफ तो यह आंकड़ा हमारी तरक्की दिखाता है, लेकिन दूसरी तरफ… अगर हमने सही कदम नहीं उठाए तो?
तो अब सवाल यह उठता है – आगे बढ़ने का रास्ता क्या है? मेरी नजर में तो दो चीजें बेहद अहम हैं – पहली, सही नीतियां जो जमीन पर काम कर सकें। और दूसरी… जनता का सहयोग। बिना इनके तो यह संख्या सिर्फ एक भारी-भरकम आंकड़ा बनकर रह जाएगी।
एकदम साफ बात है – अगर हमें सच में आगे जाना है, तो जागरूकता और मिल-जुलकर काम करने की मानसिकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी। वैसे भी, अकेले चलने से क्या फायदा? टीम वर्क तो हर जगह काम आता है!
चीन को पीछे छोड़कर 6.4 ट्रिलियन का ये मैजिक नंबर – क्या है पूरा खेल?
अरे भाई, आजकल हर जगह यही चर्चा है न? 6.4 ट्रिलियन… यानी 6,40,00,00,00,000 रुपये! (हां, इतने जीरो गिनते-गिनते आँखें थक जाएंगी)। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये आंकड़ा है क्या बला? और क्यों ये चीन को पीछे छोड़ने की बात कर रहा है? चलो, एक कप चाय पीते-पीते समझते हैं।
1. ये 6.4 ट्रिलियन वाली चीज़ है क्या? कोई लॉटरी नहीं तो?
नहीं यार, लॉटरी तो बिल्कुल नहीं! असल में, ये आंकड़ा हमारे देश के GDP यानी economic साइज़ से जुड़ा हुआ है। कुछ reports तो यहां तक कह रही हैं कि भारत चीन को पीछे छोड़ सकता है। वाह! लेकिन… हमेशा की तरह एक ‘लेकिन’ तो होना ही था। क्योंकि कुछ experts इसे खतरे की घंटी भी बता रहे हैं। कन्फ्यूज्ड? मैं भी था। आगे पढ़िए।
2. सच में? भारत चीन को पछाड़ सकता है? या फिर ये सिर्फ हवाई बातें हैं?
देखो, ईमानदारी से कहूं तो – हां, मगर पूरी कहानी थोड़ी अलग है। हाल के सालों में भारत की growth rate चीन से बेहतर ज़रूर है। पर एक मजेदार तथ्य – चीन की economy अभी भी हमसे पांच गुना बड़ी है! (हां, पांच गुना!) Experts की मानें तो long-term में हम चीन को पीछे छोड़ सकते हैं, पर उसके लिए manufacturing, exports और infrastructure पर ध्यान देना होगा। वरना ये सपना, सपना ही रह जाएगा।
3. अच्छा, ये ‘खतरा’ वाली बात क्या है? इतनी बड़ी economy तो अच्छी ही होनी चाहिए न?
अरे भई, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं न? कुछ analysts का कहना है कि rapid growth के साथ problems भी आती हैं – जैसे महंगाई बढ़ना, बेरोज़गारी, या फिर कर्ज़ का बोझ। ठीक वैसे ही जैसे तेज़ रफ्तार गाड़ी चलाने पर एक्सीडेंट का खतरा ज़्यादा होता है। हो सकता है ये आंकड़ा हमें future के इन्हीं risks के बारे में आगाह कर रहा हो। थोड़ा डरावना लगता है, है न?
4. हम जैसे आम आदमी के लिए इसका क्या मतलब है? क्या हम अमीर बन जाएंगे?
बिल्कुल सही सवाल पूछा! असल में, अगर economy मज़बूत होगी तो नौकरियां बढ़ेंगी, business के नए अवसर आएंगे और जीवन स्तर सुधरेगा। पर… हां यहां फिर एक ‘पर’ आ गया। अगर growth के साथ-साथ problems आईं, तो महंगाई बढ़ सकती है, बाज़ार unstable हो सकता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे बिना हेलमेट के बाइक चलाना – स्पीड तो मजा देती है, पर गिरने पर चोट भी लग सकती है। इसलिए सही policies और planning बेहद ज़रूरी हैं। वरना ये growth का सफर बहुत खतरनाक हो सकता है।
तो क्या सोच रहे हो? क्या भारत सच में चीन को पीछे छोड़ पाएगा? कमेंट में बताओ! और हां, अगर ये आर्टिकल पसंद आया हो तो शेयर जरूर करना। वैसे भी, 6.4 ट्रिलियन की बातें तो सबको पसंद आती हैं न? 😉
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com