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एक्सप्लेनर: आधार डेटाबेस कैसे काम करता है? सरकार इसे कहाँ और कैसे स्टोर करती है?

एक्सप्लेनर: आधार डेटाबेस कैसे काम करता है? सरकार इसे कहाँ और कैसे स्टोर करती है?

दोस्तों, हम सबने आधार कार्ड बनवाया है न? पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये पूरा सिस्टम कैसे चलता है? असल में, भारत का आधार दुनिया का सबसे बड़ा biometric डेटाबेस है – इसमें हम जैसे 130 करोड़ से ज़्यादा लोगों की जानकारी है! है न कमाल की बात? ये सिस्टम हमें वो unique 12-digit आईडी देता है जो हमारी उंगलियों के निशान, आँखों की पुतली और बेसिक डिटेल्स से जुड़ी होती है। आज हम बिल्कुल आसान भाषा में समझेंगे कि ये पूरा ढांचा कैसे काम करता है।

डिज़ाइन और संरचना: एक केंद्रीकृत तंत्र

अब सवाल यह है कि इतना बड़ा डेटाबेस कैसे मैनेज होता है? देखिए, UIDAI (यानी वो संस्था जो आधार चलाती है) ने इसे बेहद सुरक्षित तरीके से डिज़ाइन किया है। जब हम आधार बनवाने जाते हैं, तो वहाँ हमारी उंगलियों के निशान, आँखों की स्कैनिंग और फोटो ली जाती है – ये सब बायोमेट्रिक डेटा है। साथ ही नाम, पता और जन्मतिथि जैसी बेसिक जानकारी भी जुड़ जाती है। मज़े की बात ये कि ये सारा डेटा किसी कोड की तरह एन्क्रिप्टेड फॉर्म में स्टोर रहता है। ऐसा लगता है जैसे किसी सुपर सिक्योर वॉल्ट में रखा हो!

यूजर इंटरफेस और डेटा एक्सेस

अच्छा, अब आप सोच रहे होंगे कि इस डेटा तक पहुँच कैसे मिलती है? आम लोगों के लिए तो MyAadhaar पोर्टल या मोबाइल ऐप है – जहाँ OTP या फिंगरप्रिंट से वेरिफिकेशन हो जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि सरकारी दफ्तरों में ये प्रोसेस और भी तेज़ होता है? वहाँ तो API के ज़रिए मिलीसेकंड में वेरिफिकेशन हो जाता है! यानी आपका राशन कार्ड बनते वक्त क्लर्क जो फिंगरप्रिंट स्कैन करता है, वो तुरंत चेक हो जाता है। कुछ ही सेकंड में। टेक्नोलॉजी है न कमाल की!

प्रदर्शन और सुरक्षा तंत्र

सच कहूँ तो इस सिस्टम की सबसे बड़ी खूबी है इसकी स्पीड। सोचिए, ये एक सेकंड में लाखों रिक्वेस्ट्स हैंडल कर सकता है! पीछे क्या चल रहा है? बेहद स्ट्रॉन्ग एन्क्रिप्शन और कहीं-कहीं तो blockchain जैसी टेक्नोलॉजी भी। डेटा स्टोर होता है CIDR नाम के सेंट्रल रिपॉजिटरी में, जो देश के अलग-अलग डेटा सेंटर्स में फैला हुआ है। यानी अगर एक जगह प्रॉब्लम हो भी जाए, तो दूसरी जगह से डेटा मिल जाता है। स्मार्ट है न?

बायोमेट्रिक डेटा कलेक्शन की प्रक्रिया

याद है जब आपने आधार बनवाया था? वो आईरिस स्कैन वाला कैमरा और फिंगरप्रिंट मशीन? वो कोई आम डिवाइस नहीं होते। आईरिस स्कैन के लिए तो हाई-रेजोल्यूशन कैमरे लगते हैं जो आपकी आँखों के unique पैटर्न को पकड़ लेते हैं। और हैरानी की बात ये कि ये मशीनें रेगुलरली चेक भी की जाती हैं ताकि कोई गलती न हो। यानी जब आपका डेटा लिया जा रहा होता है, तो वो बिल्कुल सही होना चाहिए। एकदम प्रोफेशनल सिस्टम!

डेटा स्टोरेज और आपदा प्रबंधन

अब बात करते हैं स्टोरेज की। ये डेटा भारत के अलग-अलग जगहों पर बने टियर-IV डेटा सेंटर्स में रखा जाता है। यानी वो सेंटर्स जिनका 99.982% अपटाइम रहता है। मतलब? मतलब ये कि अगर बिजली चली भी जाए तो डीजल जनरेटर और UPS काम करने लगते हैं। और अगर कोई बड़ी प्रॉब्लम आ जाए, तो डेटा अपने आप दूसरे सर्वर पर शिफ्ट हो जाता है। साथ ही रेगुलर बैकअप्स भी लिए जाते हैं। यानी आपका डेटा सुरक्षित है… कम से कम थ्योरी में तो!

फायदे और चुनौतियाँ

एक तरफ तो आधार ने सब्सिडी का सीधा ट्रांसफर, धोखाधड़ी में कमी और नकली आईडी की समस्या को काफी हद तक सुलझा दिया है। पर दूसरी तरफ… हम सब जानते हैं न कि privacy को लेकर कितने सवाल उठे हैं? सुप्रीम कोर्ट केस हुआ था न Puttaswamy वाला? और कभी-कभी तो फिंगरप्रिंट वेरिफिकेशन फेल भी हो जाता है – खासकर बुजुर्गों या मजदूरों का जिनकी उंगलियाँ खुरदरी होती हैं। सच्चाई ये है कि कोई भी सिस्टम परफेक्ट नहीं होता।

निष्कर्ष: एक क्रांतिकारी पर असुरक्षित प्रणाली?

ईमानदारी से कहूँ तो, आधार ने भारत की governance को बदल कर रख दिया है। पर क्या ये परफेक्ट है? बिल्कुल नहीं। अभी और सुधार की ज़रूरत है – जैसे डेटा को और सुरक्षित रखना, एक्सेस पर कंट्रोल बढ़ाना। हो सकता है भविष्य में blockchain जैसी टेक्नोलॉजी इसमें और मदद करे। पर अंत में बात यही आती है कि efficiency और privacy के बीच संतुलन बनाना होगा। वरना… खैर, आप समझ ही गए होंगे!

यह भी पढ़ें:

आधार डेटाबेस के बारे में वो सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं (और कुछ ऐसे सवाल जो आप पूछने से हिचकिचाते हैं!)

1. आखिर ये आधार डेटाबेस है क्या बला? और काम कैसे करता है?

देखिए, सीधे शब्दों में कहें तो आधार डेटाबेस एक ऐसा डिजिटल लॉकर है जहां हर भारतीय का बायोमेट्रिक और पर्सनल डेटा जमा होता है। UIDAI वालों ने इसे बनाया है – यानी Unique Identification Authority of India। अब सवाल ये कि डेटा कैसे जमा होता है? तो जब आप आधार के लिए रजिस्टर करते हैं, तो आपकी उंगलियों के निशान, आंखों की पुतली और बेसिक जानकारी को सुपर सिक्योर तरीके से स्टोर कर लिया जाता है। एक तरह से समझ लीजिए, ये आपका डिजिटल आईडी प्रूफ है!

2. ये सारा डेटा रखा कहाँ जाता है? क्या कोई गुप्त गुफा में?

हाहा, नहीं यार! गुप्त गुफा तो नहीं, लेकिन भारत के अलग-अलग जगहों पर बने हाई-टेक डेटा सेंटर्स में इसे रखा जाता है। अब ये कोई आम सर्वर नहीं हैं – बल्कि जैसे किसी बैंक के वॉल्ट की सिक्योरिटी होती है, उससे कहीं ज्यादा सुरक्षित! UIDAI वाले कहते हैं कि इसमें मल्टी-लेयर सिक्योरिटी है, यानी डेटा तक अनाधिकृत लोगों की पहुँच नामुमकिन के बराबर है। पर सच कहूँ तो, आज के जमाने में कुछ भी 100% सुरक्षित नहीं, है न?

3. सबसे बड़ा सवाल: क्या ये हैक हो सकता है?

अरे भई, ये तो वही सवाल है जो मेरे दिमाग में भी आता रहता है! UIDAI वाले दावा करते हैं कि उन्होंने एडवांस्ड सिक्योरिटी सिस्टम लगा रखा है। डेटा पूरा एन्क्रिप्टेड है, और बायोमेट्रिक जानकारी तो किसी के साथ शेयर ही नहीं की जाती। लेकिन… हम सब जानते हैं न कि टेक्नोलॉजी की दुनिया में ‘पूरी तरह सुरक्षित’ जैसी कोई चीज़ नहीं होती। फिर भी, UIDAI लगातार सिक्योरिटी अपडेट करता रहता है। थोड़ा राहत की बात है!

4. आधार डेटाबेस: फायदे या नुकसान? (असल में क्या है सच्चाई?)

अब ये तो बिल्कुल वैसा ही सवाल है जैसे पूछें ‘इंटरनेट अच्छा है या बुरा?’! एक तरफ तो ये सिस्टम बेहद काम का है – सब्सिडी सीधे आपके बैंक में पहुँच जाती है, फर्जीवाड़ा कम हुआ है। लेकिन दूसरी तरफ… डेटा प्राइवेसी को लेकर सवाल तो उठते ही हैं। मेरा मानना है कि जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही इसमें भी हैं। आप क्या सोचते हैं?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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