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अहमदाबाद स्कूल कांड: 10वीं की छात्रा ने चौथी मंजिल से कूदकर की आत्महत्या, इलाज के दौरान मौत

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अहमदाबाद स्कूल कांड: जब एक मासूम ज़िंदगी ने खुद को खत्म कर लिया

सोचिए, सुबह स्कूल जाते वक्त आपकी बेटी हंसती-खेलती दिखती है, और दोपहर तक…? अहमदाबाद के एक नामी स्कूल में 10वीं की मेधावी छात्रा ने चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। CCTV फुटेज देखकर रूह कांप जाती है – लड़की बिल्कुल सामान्य दिख रही थी, लॉबी में घूम रही थी, और फिर अचानक… बस। अस्पताल ले जाया गया मगर ज़िंदगी की जंग हार गई। सच कहूं तो ये सिर्फ एक परिवार का नहीं, पूरे समाज का सवाल है – क्या हमारे स्कूल सिर्फ नंबरों की फैक्ट्रियां बनकर रह गए हैं?

क्या वाकई कोई संकेत नहीं थे?

लड़की (जिसका नाम अभी सार्वजनिक नहीं हुआ) एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से थी। पढ़ाई में तेज, हमेशा हंसने वाली – परिवार वाले तो कह रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों से थोड़ा चुप-सी रहती थी। लेकिन किसने सोचा था कि ये चुप्पी इतनी भयानक होगी? हैरानी की बात ये कि स्कूल, जो अपने टॉप रैंक्स के लिए मशहूर था, आज एक दर्दनाक वारदात की वजह से चर्चा में है। सवाल ये उठता है – क्या मार्क्स और रैंकिंग के चक्कर में हम बच्चों की आंखों में छुपे दर्द को देखना भूल गए?

CCTV फुटेज ने खोली पोल

वो वीडियो जो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहा है… देखकर लगता है मानो किसी फिल्म का सीन हो। कोई हड़बड़ी नहीं, कोई डर नहीं – बस एक लड़की जो शायद अपने दर्द को छुपाने में माहिर थी। पुलिस ने फुटेज को ऑथेंटिक बताया है। परिवार वाले स्कूल को कोस रहे हैं, स्कूल वाले कह रहे हैं “हमें कुछ पता नहीं था”। FIR अभी दर्ज नहीं हुई, मगर लड़की के फोन और कमरे की तलाशी में क्या मिलेगा, ये सब जानने को बेताब हैं।

आंसुओं और सवालों का सैलाब

पिता का दर्द देखिए – “मेरी बेटी आज भी ज़िंदा होती अगर स्कूल ने थोड़ी सी भी तवज्जो दी होती।” स्कूल के दूसरे बच्चों के parents की नींद उड़ गई है। सब एक ही सवाल पूछ रहे हैं – क्या हमारे बच्चे सच में सुरक्षित हैं? शिक्षा विभाग ने जांच कमेटी बना दी है, मगर क्या ये कमेटियां कभी कुछ ठोस कर पाती हैं? मनोवैज्ञानिकों की राय साफ है – आजकल के बच्चे academic pressure और social media के बीच पिस रहे हैं। पर हम मानने को तैयार नहीं!

अब क्या? सिर्फ सवाल ही सवाल…

सच पूछिए तो इस घटना के बाद तो बस सवाल ही सवाल नज़र आते हैं। क्या स्कूल सच में बेकसूर है? क्या counseling sessions सिर्फ खानापूर्ति नहीं हैं? शिक्षा विभाग ने safety audits की बात तो की है, पर ये कागजी घोड़े तो नहीं साबित होंगे? सबसे बड़ी बात – क्या हम parents अपने बच्चों की आंखों में छुपे दर्द को पढ़ना भूल गए हैं? कुछ NGOs ने workshops शुरू करने का ऐलान किया है… पर क्या ये काफी होगा? सच तो ये है कि आज एक लड़की की जान गई, कल किसकी बारी होगी – ये सोचकर ही दिल दहल जाता है।

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अहमदाबाद स्कूल कांड: जानिए पूरी कहानी और उससे जुड़े सवाल

1. अहमदाबाद स्कूल कांड – क्या वाकई में हुआ ये सब?

देखिए, ये केस दिल दहला देने वाला है। एक 10वीं की मासूम छात्रा… स्कूल की चौथी मंजिल से कूदी। अस्पताल ले जाने के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। सच कहूं तो ये खबर पढ़कर रूह कांप जाती है।

2. सवाल यह है कि आखिर क्यों लिया ऐसा कदम?

अभी तक तो पक्की जानकारी नहीं मिली। लेकिन सुनने में आ रहा है कि पढ़ाई का प्रेशर या फिर कोई personal problem हो सकता है। हालांकि, पुलिस अभी investigation कर रही है। एक तरफ तो हम सब जानते हैं कि आजकल के बच्चों पर कितना pressure होता है… लेकिन दूसरी तरफ, क्या ये सब इतना बड़ा कदम उठाने की वजह बन सकता है?

3. स्कूल की तरफ से क्या हुआ?

स्कूल वालों ने तो मामले पर दुख जताया है। Internal committee बनाई है जांच के लिए। Mental health पर focus बढ़ाने की बात भी कर रहे हैं। पर सच पूछो तो, क्या ये सब afterthoughts नहीं लगते? ऐसी घटनाओं के बाद ही हमें याद आता है कि counseling जरूरी है।

4. सबसे बड़ा सवाल – क्या हम रोक सकते थे इसे?

ईमानदारी से कहूं तो… हां, शायद। अगर थोड़ी सी भी सचेतता होती। Regular counseling होती, parents थोड़ा more involved होते, teachers बच्चों की mental state पर नजर रखते। पर ये सब तभी होगा जब हम मानेंगे कि बच्चों पर pressure है। और ये सच है – आजकल के बच्चे जिस pressure में जी रहे हैं, वो हमारे जमाने से कहीं ज्यादा है। सोचने वाली बात है, है न?

एक बात और – ऐसे मामलों में सिर्फ blame game खेलने से कुछ नहीं होगा। असल जरूरत है system को बदलने की। वरना… आप जानते हैं न कि आगे क्या होगा?

Source: Hindustan Times – India News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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